Saturday, April 12, 2014

कैसी बेरुखी

उन्हें तो न तब फर्क पड़ता था न अब पड़ता है
मोहब्बत और नफरत दोनों बराबर है उनके लिए
बेजार तो हम हुए है ज़र्रा ज़र्रा बिखरे है
मोहब्बत में भी और नफरत में भी
सुर्ख आँखों में आंसू लिए दर दर घूमती हूँ
कोई आके तो देखे मैं किस कदर तुझे ढूँढती हूँ
प्यार में मेरी यादें भी नीलाम हो गयी हैं
और मैं लोगों से अब भी तेरा पता पूछती हूँ

मुझे एक ख़ुशी का टुकड़ा उधार दे दो
थोड़ी देर के लिए यार का दीदार दे दो
सारी उम्र इसके लिए चाहे सजा दे दो।
और अगर कम लगे तो फांसी दे दो
राखी