Wednesday, May 28, 2014

अनोखा अनुभव

सुना है क्या तुमने कभी ये
पत्थर भी आवाज़ लगाते हैं
ये ठूंठ खड़े पहाड़ भी हमे
अपने पास बुलाते है
कभी  जाकर तो देखो दोस्तों
प्रकृति की उस गोद में जहाँ
बाहें पासरे ये पेड खड़े है
तुम्हारे इंतज़ार में
कभी बैठो कुछ देर किसी झील
के किनारे और निहारो आकाश
में उड़ते पंछियों को
कितना सुखद अहसास है
एक अलग ही आकर्षण है प्रकृति
की गोद में
चढो कभी पहाड़ों पर ऊँची नीची
पगडंडियों से और देखो
नजारा उपर से धरती का
कैसा मनमोहक अहसास है
कैसा ये अनुभव जो मुझे बार
आकर्षित करता है अपनी और
और मैं खिची चली आती हु
बिना किसी डोर।

Monday, May 19, 2014

मेरी किताब

आँखों में सपने  सुनहरे सजाने लगी हु मैं
क्यों आजकल अकेले में मुस्कुराने लगी हु मैं
मेरा हर ख्वाब तुझसे जुड़ गया है मेरी किताब
तुझे अपने दिल के और पास लाने लगी हु  मैं

जब भी कलम चलती है मेरी तुझ पे लिखने
स्याही से ख्वाब उकेरने लगी हु मैं
लिखे हुए शब्दों को फिर से सहेजकर
माला की तरह पिरोने लगी हूँ मैं

तू एक बच्चे की तरह हो गयी है मेरे
जिस वक़्त बेवक्त गोद में उठाये फिरती हूँ मैं
और जब कभी मन करता है खेलने का
कलम से पन्नो पर खेलने लगी हूँ मैं

मुझे तेरी आदत सी हो गयी है ऐसी
एक प्रेयसी की तरह तुझे प्रेम करने लगी हु मैं
और तुझे अपने पास न पाकर जाने क्यू
अधीर और चिंतित सी होने लगी हूँ मैं

बस अब जिन्दगी कटेगी तेरे साथ मेरी
और उस जिन्दगी को अभी से सोचने लगी हूँ मैं
अब तो तुझसे जुदाई मुश्किल है तुझसे
तेरे साथ हर लम्हा जीने लगी हूँ मैं


Friday, May 9, 2014

मेरी शादी

घर में मेरी शादी की बाते होने लगी थी
और मैं भी नए सपने सजोने लगी थी
मुझे देखने लड़के वाले आ रहे थे
सब अपने अपने कयास लगा रहे थे
सबकी बाते सुनती थी और चुप थी मैं
सोचती रहती थी की क्या करुँगी मैं
मुझको सब पाठ पड़ा रहे थे लगा ऐसे
जैसे वो सामान खरीदने आ रहे थे
वो दिन जब लड़का देखने आया
मुझे डर ने बहुत दिर तक सताया
पर फिर हिम्मत आई न जाने कहाँ से
मैं भी चल दी चुप चाप वहां से
सामने जाके बैठ गयो उनके मैं भी
लड़के ने कुछ भी न पूछा पर मैं बोली
मैंने ही अपनी जबान पहले खोली
कुछ बातों के बाद मैं अंदर चली गयी
डर के मारे मेरी दिल की धड़कन बढ़ गयी
पता चला की शादी की हाँ हो गयी
कल तक जो मैं थी आज वो दुल्हन बन गयी
मेरे घर को सजाया जा रहा था
सामान शादी का लाया जा रहा था
मन भी नयी दुनिया को सोचता था
पिया के घर का सपना हरसू देखता था
हल्दी जब मुझको लगायी जा रही थी
होंटो पे मुस्कान आई जा रही थी
भाभी कर रही थी मुझसे ठिठोली
और मैं हो रही थी अब यहाँ अकेली
सुर्ख जोड़ा मुझको पहनाया जा रहा था
सोलह श्रृंगार भी मेरा किया जा रहा था
आँखों में मेरी एक चमक सी आ गयी थी
चुनरी मेरी अब भी लहरा रही थी
दुल्हन जब मुझको बनाया जा रहा था
सुरूर सा दिल पे मेरे छाया जा रहा था
आई जब वरमाला लेके मैं दर पे अपने
तब पिया को देख न पायी
लाज लगी मुजको कुछ इस तरह की
अंखियों को अपनी उठा ही न पाई
फेरो पर पिया संग बैठी घबराई हुई
थोडा दरी थोडा सकुचाई हुई मैं
कन्यादान मेरा किया जा रहा था
बाबा का घर अब छुटा जा रहा था
साथ फेरे लिए मैंने पिया संग अपने
मन में सजा के कुछ कोमल सपने
मुझे डोली में बैठाया जा रहा था
घर से विदा अब किया जा रहा था
इस देहरी पे मेने अपना बच्पन बिताया
और अब पिया और उसके घर को अपनाया
छोड़ चली मैं अपने बाबा के घर को
अपना लिया अपने सजन सांवरे को।


Saturday, May 3, 2014

हमारा प्यार

बीत रही है मेरी जिन्दगी तेरी पलकों की छाँवओन में
तू दूर है तो क्या पर अब भी महसूस करते है खुद को तेरी बाँहों में
कभीसोचा की तेरे करीब आ जाऊ मैं
फिर सोचा की ऐसे ही रह जाऊ मैं
और आलम ऐ तन्हाई भी हमे याद तेरी दिलाती है
तू तो आता नहीं है पर आँखे राहों पे बिछ जाती हैं
करती है जिन्दगी मुझपे सितम के
ये तुझसे दूर मुझको क्यों रखती है
छोटे से मेरे दिल आजकल जाने क्यों
बड़ी बड़ी ख्वाइश मचलती है
माना मैंने की हम नदी के दो किनारे है                             पर हमे जो साथ जोड़े हुए है वो
हमारे प्यार की बौछारें है