Friday, June 27, 2014

ये रात अँधेरी

ये रात कितनी अँधेरी है जाने क्यों
चाँद और धरती में इतनी दूरी है
काश के मिट जाते सब फासले
तुजसे दूर रहकर पिघलती रूह मेरी है।
रफ्ता रफ्ता लम्हे गुज़रते हैं
हम तिल तिल यूँही मरते हैं
काश के रूह मेरी आज़ाद हो जाये
तेरे प्यार में क़ैद हम तरसते है
कुछ नहीं है दरमियान बस
एक आस के ही बाकि  है
तुझसे मिलने का अरमानो में
एक ख्वाब ही बाकी है।
तेरा पता पूछते फिरते है
बदहवास से हम और
जाने कहाँ कहाँ फिरते है
तेरी तलाश में  हम
तू नजर नहीं आता न
कोई सुराग मिलता है
हो गए हैं जिन्दगी में उदास
और परेशान से हम
न रोग मिटता है हमारा
न मौत आती है
जिन्दगी बस हमे ठोकर
ही दिलाती है
काश के मिल जायें कुछ
हसीं लम्हे हमे
कैसे भूले तुझे के आज भी
तेरी याद आके हमे
बहुत तडपती है।
राखी