Sunday, July 27, 2014

मेरी किस्मत

जाने कितनी बार खरीदी और बेची गयी हूँ मैं
इस समाज ने कितनी बार बोली लगाई मेरी
मुझे जिन्दगी जीने का हक नहीं था क्या
मुझे आज़ाद रहने का शौक नहीं था क्या
मेरे माँ बाप क्यों लाये थे मुझे दुनिया में
क्यों फैक दिया मुझे उन्होंने ओस नर्क में
जहाँ रोज़ मेरी जिस्म और रूह को नोच जाता है
मेरी हर चीख को दबाया और ज़ख्म को कुरेदा जाता है
मुझे रखा  जाता है एक सामान की तरह
हाल कर दिया जाता है शमशान की तरह
मैं भी शायद आदि हो जाती हूँ सब सहने की
कोशिश करू भी तो कैसे इन सब से निकलने की
हर तरफ भेडिये मुझे दबोचने को तैयार बैठे है
किस पे करूँ भरोसा सब मेरे तलबगार बैठे हैं
जीना मेरा इतना ही है या मेरी ये नादानी है
मेरे नसीब में दो जून रोटी और सिर्फ पानी है
कर के एक की हवस पूरी अब उसके लिए मैं बेकार हूँ
और फिर से बाज़ार में बिकने को मैं तैयार हूँ।
राखी

Wednesday, July 23, 2014

एक अरमान

जी शिद्दत से तुम मुझे गले लगाते हो
कसम से मेरे अरमानो को पंख मिलते हैं
लगता है कितने जन्मो से बिछड़े हो मुझसे
जिन्दगी को जीने के कितने रंग  मिलते हैं
तुम्हारी वो अनकाही बाते जो लबो पे आती नहीं
क्यों लबों  की ख़ामोशी अब तुम्हारे टूट जाती नहीं
समझ न सकी आज तक तुम्हारी चाहत को मैं
अब तक अनजान हूँ तुम्हारी कई बातों से मैं
तुमको देख भी लूं तो सुकून दिल को हो जाता है
क्या ऐसे भी कभी प्यार  हो जाता है
जब बातें करते हो तुम तुमको निहारती रहती हूँ
तुम्हारी बातों का अर्थ निकालती ही रह जाती हूँ
काश ये मुम्कम्मल मेरा जहाँ तुझसे से हो जाये
ये अधूरी प्यास तेरे साथ से पूरी हो जाये
कुछ बातें होती है जिनका जिस्म से कोई ताल्लूक नहीं
मुझे इस दुनिया की बातों से कोई मतलब नहीं
तुझमे  ही बस्ती है मेरी दुनिया और मेरा जहान
तुझे पाना मेरा बस बन गया एक अरमान ।
राखी

Monday, July 21, 2014

तेरी याद

एक नमी सी मेरी आँखों में तुझ से दूर होकर रहती है
एक कमी सी है मेरे जीवन में जो मुझसे ये कहती है
के तुझ बिन कैसे जी रही हूँ कैसे सांस लेती हूँ
क्यूँ हर पल मैं तेरी यादों का दामन थाम लेती हूँ
मीलों का फासला है हमारे बीच फिर भी ये जुडाव कैसा
आँखों को रोशन करता है मेरी ये इश्क का उजाला कैसा
मन की मन से डोर बांध गयी बिना कुछ कहे ही
क्या कहूँ तुझसे जब तू मुझसे  कभी मिला ही नहीं
एक आस है तुझसे मिलने की इस दिल में एक विश्वास है
मुझसे मिलेगा तु शायद इस बात का हरपल अहसास है
कुछ नहीं कहूँगी तुझसे मिलकर मैं मौन रहूंगी
बस अपनी ख़ामोशी से ही मई सब कुछ कहूँगी
समझ लेना तुम मेरे नैनो की मूक भाषा
और दे देना नैनो से सी मेरे दिल को दिलासा
राखी शर्मा

Thursday, July 17, 2014

बारिश और तुम

आज जैसे ही पानी बरसा और बूँदें मुझे  छूने लगी
बरबस तेरी यादें ने मुझे घेर लिया अपनी बाहों में
तेरे पहलु में बिताये वो बीते पल याद आने लगे
मेरे इस दिल की बगिया के फूल मुस्कुराने लगे
वो तुम्हारा प्यारा स्पर्श बहुत याद आया मुझे
तुम्हारी उन अटखेलियों ने बहुत सताया मुझे
इतने बातूनी तो नहीं तुम जितनी की मैं हूँ
इतने शरारती भी नहीं हो तुम जितनी मैं हूँ
एक सादगी है तुम में जो मुझे तुम्हारी ओर खीचती है
तुम्हारे प्यार पेड जो मेरे दिल में है उसे वो सींचती है
तुम्हारी खामोश निगाहों  की भाषा पढ़ लेती हूँ मैं
तुम्हारे बिन बोले ही सबकुछ समझ लेती हूँ मैं
तुम्हारे साथ बिताये कुछ पल भुलाये नहीं जाते
उन हसीं लम्हों के वो मंजर दिल से मिटाए नहीं जाते
तुम्हारे साथ चाय की चुस्कियां याद आती है
बारिश में साथ चले जब वो खामोशियाँ याद आती हैं
थोडा ही सही वो मुकम्मल जहाँ तो मिला मेरे प्यार को
एक टुकड़ा प्यार मिला मेरी जिन्दगी के जहाँ को
ये रूहानी प्यार अब मैं भी महसूस करती हूँ
कुछ पल साथ बैठ बात करने को मैं भी तरसती हूँ।
राखी