Monday, January 19, 2015

नारी हूँ न

रोज़ टूट कर मैं फिर जुड़ जाती हूँ
नारी हूँ न अपना फ़र्ज़ निभाती हूँ
दिल के टुकड़े तो होते हैं कई बार मेरे
उन टुकड़ों को जोड़ कर मैं नया दिल बनाती हूँ।
नारी हूँ...........
ये कैसा विरोधाभास है मेरे जीवन का
जीवन को अपने अकारण ही जीती चली जाती हूँ।
कई रूप है मेरे उन सब का भी बोझ ढोती चली जाती हूँ।
अपने मन को मार के सब की खवाइशें पूरी करती चली जाती हूँ।
नारी हूँ..........
मैं अपनी ज़ात की फितरत को हमेशा ही निभाती हूँ
प्रेम भी है मुझे और प्रेमी के लिए बलिदान भी कर जाती हूँ
कोई कायर कहे मुझे तो कहे पर जिम्मेदारियों पर खरी उतर जाती हूँ।
अपनी जिंदगी मैं हमेशा दूसरों के नाम कर जाती हूँ।
नारी हूँ..........
येही विडम्बना है मेरी बस एहि मेरा नसीब है
दूसरों के लिए जिन ही मेरी जिंदगी का उसूल है
अब जब उसी रब ने किया है मेरा फैसला तो फिर
हाँ मैं कहती हूँ की उस रब का दिया हर ज़ुल्म मुझे कबूल है ।
नारी हूँ..........
राखी शर्मा

Sunday, January 18, 2015

कलम है बेताब

मेरी कलम आज बेताब है महबूब लिखने को
फिर से वो कोशिश कर रही स्याही से शब्द उकेरने को
कागज़ जे खाके में वो भर रही है स्याही से अल्फ़ाज़
कर रही है कोशिश आज फिर आखरों से तेरी तस्वीर बनाने को
तन्हाई में ये ज़ुल्म अपने पे रोज़ कर लेती है तुझसे रूबरू होने को
हर बार ढूंढती है तुझे अपने ही शब्दों में बात करने को
कैसे इसके मन में आया तुझे कागज़ पे गढ़ने को
क्यों ये ही आज आतुर हो गयी तुझसे मिलने को
कुछ कहने से पहले ही खुद ही चल पड़ी लिखने को
मन किया मेरा भी सुबह सुबह तेरी आँखे पढ़ने को
क्या करती कलम से गुज़ारिश की तेरी तस्वीर बनाने को
बस मुक्म्मल से कुछ शब्द लिख डाले तेरी तारीफ
करने को ।
राखी शर्मा

Wednesday, January 14, 2015

रूह की तड़प

स्याह रातों में मेरी रूह निकल जाती है
मेरे जिस्म से
तेरी तलाश में और पहुँच जाती है तेरे पास
तुझे बैठ कर निहारती है वो रोज़ क्योंकि
जब ऐसा होता है न मेरा जिस्म महकता है
शायद ये मुझे अहसास कराता है कि
तेरी क्या जगह है मेरी बेमानी सी जिंदगी में
सुबह होते ही लौट आती है वापस मेरी रूह
और फिर से उसे इंतज़ार रहता है शाम का
क्योंकि जो सुकून तेरे दीदार मिलता है न उसे
वो शायद कहीं भी महसूस नहीं करती वो भी
मेरी ही तरह तेरे दीदार को तरसती है ।
राखी शर्मा

Thursday, January 1, 2015

मेरा इश्क़

बेज़ुबान है इश्क़ मेरा समझना है तो दिल के जज़्बात समझ
कैसे करूँ बयान ऐ मोहब्बत तू कभी तो मेरे अहसास समझ
खलिश नहीं मुझे कोई न ही कोई शिकवा तुझसे है
मेरे लिखे अल्फ़ाज़ों की तू कभी तो ज़बान समझ

ज़ात ही मेरी कुछ ऐसा है कि मैं हल्फ़ कैसे उठाऊ मौला
कैसे खुद को तेरे इश्क़ के मुक़दमे से बचाऊं मौला
कैद है ज़िन्दगी मेरी तेरी आँखो के कारागार में
कैसे इसकी सलाखों को मैं  तोड़ के आज़ाद हो जाउँ मौला

गज़ब ये मेरी आज कल तासीर हो गयी है
तेरे दीदार की तलब बड़ी ही गहरी हो गयी है
कैसे इन आँखों में तेरी प्यास को बुझाऊँ
मुझसे ज्यादा मुझे तेरी ज़िन्दगी प्यारी हो गयी है

गमगीन मेरी मोहब्बत का फ़साना हो गया है
मेरा ये नाज़ुक सा दिल तेरी अदाओं का दीवाना हो गया है
रश्क़ है अब मुझे खुद की मोहब्बत पर क्योंकि
बड़ा ही दिलकश अपना फ़साना हो गया है।

राखी शर्मा

औरत की कहानी

कैसी ये औरत की कहानी है है मोहब्बत भी करती है औरों से भी छुपानी है
हाथों में फूल लेकर सोचती है कि क्या ये भी उसी की तरह कमजोरी की निशानी है
हर दुःख हर सुख में मुस्कुराती ही रहती वो उफ्फ्फ करे भी तो कोई नहीं सुनता
हर तरफ कहीं भी देखो चाहे औरत ही भुगत रही सब कुछ ये हर औरत की जुबानी है।
रब ने ही औरत को इतना सहनशील बनाया लबों पे हँसी और आँखों में पानी है ।
जब भी सुनती हूँ किसी औरत की दास्ताँ लगता है मुझे ये मेरी ही कहानी है ।
राखी शर्मा