Friday, June 12, 2015

काश

काश के किस्मत लिखना मेरे बस में होता तो
मैं अपने हाथ से तेरे नाम की लकीर मिटा देती
काश के समझ पता तू मेरे जज़्बातों को कभी
कसम से मैं तुझ पे अपनी जान तक लूटा देती
अगर गुनाह सिर्फ मेरा होता ये मोहब्बत तो
बस मैं अपने आप को ही इसकी सजा देती
खुद को तनहा छोड़ना मेरे बस में नही अब
मैं कैसे तेरी मोहब्बत को दिल से भुला देती
तुझे शौक है तो बन जा बेवफा ओ मेरे हबीब
मैं कैसे खुद को दुनिया से बेवफा कहलवा देती
नुमाइश नहीं होती रूहानी प्यार की हमदम
फिर कैसे ये राज़ मैं दुनिया को बता देती
जो नम कर गया है दर्द से तू मेरी आँखे
कैसे इसके आंसुओं को मैं इन आँखों में छुपा लेती
फितरत है मेरी किस्मत की शायद दगा देना मुझे
पर मैं कैसे अपना दिल तोड़ के खुद को हँसा लेती
गम न कर तुझसे बहुत दूर चली जाउंगी मैं ये हमनवा
जाना ही था दूर तुझसे तो क्यों तुझे अपना पता देती
खुदा हाफिज है मेरी जान तुझे  तू रहे अमन चैन से
मैं कैसे तेरे पास रह्कर अपने ज़ख्मो पे नमक लगा लेती ।
राखी शर्मा

Monday, June 1, 2015

जिन्दा है क्या मोहब्बत

तेरे ख़तों जो आज भी पढ़कर लगता है की जिन्दा है तेरी मोहब्बत कहीं
आँखों में मेरी पसरी ख़ामोशी को पढ़ कभी तू बसी है तस्वीर इनमे कहीं
लबों का रंग आज भी गुलाबी है मेरा बस्ते हैं इनमे तेरव लबों के अहसास कहीं
दिल में झाँक कर देख मेरे कभी आज भी लगी है तेरी तस्वीर दीवारों पे कहीं
हाथों की मेहंदी बेरंग है मगर लगता है छुपा हुआ इसमें आज भी तेरा नाम कहीं
करती तो हूँ मैं कोशिश तेरी मोहब्बत को मिटाने की पर लिखी है रूह पे ये दास्ताँ कहीं
होती तो हूँ रूबरू मैं रोज़ हज़ारों से लेकिन तुझे देखने की चाहत बसी है मन में कही
कैसे बेवफा हो जाऊं खुद से मैं ऐ हमदम समाई है तेरी गुमनाम  मोहब्बत मुझमे कहीं ।
राखी शर्मा

एक सच

आज मैं ऑफिस देर से आई बॉस ने मुझे खरी खरी सुनाई
होंटों से तो मैं कुछ बोली नही पर अश्रुधारा अपनी रोक न पायी
ये देख बॉस मेरे घबरा गए और डर के मारे सकपका गए
मैं तो रो ही रही थी ये देख के उन्हें पसीने और आ गए
लेट तो मैं कई दफा होती थी पर ऐसा कभी मंजर नही होता था
उनके सामने इस तरह मेरा रवैया कभी नहीं होता था
आखिर मैंने अपनी सिली हुई जुबां खोली
दबी हुई आवाज़ में मैं उनसे रुंधे गले से बोली
ममता आज शर्मसार कचरे के डिब्बे में फैक दी गयी है
आज फिर औरत की ममता शर्मसार हो गयी है
निकली तो थी घर से मैं समय पर रास्ते में भीड़ ने मुझे रोका
दिल को जो कचोट दे ऐसा एक मंजर मैंने देखा
एक नवज़ात बच्ची कचरे के डिब्बे में पड़ी थी
उसकी किल्कारिकारियां सबने ही सुनी थी
पर किसी में हिम्मत नही थी जो उसे अपनाये
उस नन्ही जान को लावारिस देख के उदार हो जाये
आखिर मैं एक माँ थी तो उससे कैसे ऐसे छोड़ देती
कैसे उससे तक़दीर के भरोसे मारने को छोड़ देती
मेरी अंदर की औरत ने मुझे आगे बढ़ने न दिया
उस अनजान से बंधी अनदेखी डोर ने मुझे जाने न दिया
उठा लिया गोद में उसे दुलार जो किया शायद समझ
गयी वो भी की किसी ने उसे प्यार तो किया
उसे मैंने कानूनी तौर पर गोद लेने की ठानी
पर मेरे आगे थी मेरे परिवार और नौकरी की परेशानी
अचानक मुझे एक संस्था की याद आई जो
बेसहारा और मजलूम बच्चीयों की करती निगरानी
उसका खर्च वहन करने की मैंने तो ज़िम्मेदारी उठाई
उस बच्ची को फिर वहां भर्ती करा कर आई
मेरी भी मजबूरियां है जो उसे घर नहीं ला पायी
जो मुझसे होगा उसके लिए  लड़ूंगी किस्मत से लड़ाई
इसिलिये मैं लेट हुई अपने ऑफिस  से आज
सर आप किसे देंगे मेरे लेट होने का इलज़ाम
मेरे अंदर की औरत को या उसकी निष्ठुर माँ को ??????????????
राखी शर्मा

क्यों मैं प्यार किया करती थी

मुझे प्यार में रुसवाइयों का दर कभी न था
मैं तो प्यार में तन्हाइयों से डरा करती थी
और वही हुआ जिसका हमे ज्यादा डर था
मैं तो तुमसे बेइंतहा प्यार किया करती थी
छोड़ ही गए मुझे इन रास्तों पर तुम तन्हा
आखिर तुम ही हो वो रकीब मेरे जिस पे
में खुद से ज्यादा विश्वास किया करती थी
आज दिल का वो आँगन सुना हो गया है
जहाँ मैं हरपल तुम्हारा इंतज़ार किया करती थी
जो भी खिले थे प्यार के फूल वो मुरझा गए
जिनसे मैं खुद को गुलज़ार किया करती थी
खोकर तुमको एक बात पूछती हूँ खुद से
क्यों तुम पर वक़्त बर्बाद किया करती थी
काश के वो ज़माना वापस आ जाये फिर से
जब तुम्हारे प्यार में खुद को ज़ार ज़ार किया करती थी
अब लौट के कभी मत आना मेरे रूबरू ओ हमनवा
अब वो मौसम गया जब खुद को तार तार किया करती थी।
राखी शर्मा