Wednesday, July 29, 2015

एक बात

जिस्म को छु के तो कोई भी प्यार जता लेता है
कोई रूह से प्यार जताए तो क्या बात है
देखते तो हैं सब जिस्म की शोखियां
किसी को रूह से मोहब्बत हो जाये तो क्या बात है
औरत के जिस्म को बेपर्दा करके तो की मोहब्बत
उसके जिस्म को ढांप के हो जाये मोहब्बत तो क्या बात है
हवस अपनी आँखों से मिटाकर कभी तो महसूस करो
स्नेह का दिया जलाओ अपनी रूह में तो क्या बात है
उसकी सिसकियाँ तुमने सुनी नही कभी उसके आँखों से आंसूं गिरने का कारण न बनो तो क्या बात है
अपनी हैवानियत से हमेशा उसे डरते हो तुम कभी अपनी इंसानियत उसे दिखाओ तो क्या बात है
वैसे तो छु जाते हो उसे तुम पर दिल की भावनाओं को भी उसकी छु जाओ तो क्या बात है
वो तो हमेशा ही तुम्हारे प्यार में मारने को तैयार रहती है तुम उसे जिन्दा रहने का अहसास दिलाओ तो क्या बात है
कहकर तो देखो ये जिंदगी उसकी है और किसी की नही न तुम्हे वो पलकों पे बिठा ले तो क्या बात है ।
राखी शर्मा 

Saturday, July 18, 2015

बदलाव तुझसे इश्क़ के बाद

परिभाषा ही बदल गयी है इश्क़ की मेरे ज़हन में जबसे तुझे इश्क़ किया है मैंने
इस कदर बेजार होकर बिखरी हूँ मैं की खुद को तार तार किया है मैंने
न जाने कौन सी दुश्मनी थी तेरी मुझे जो इस कदर ठुकरा के चल दिए
रूह और मन  का श्रृंगार भी किया है  अहसासों से तेरी  खातिर मैंने
खुद को समझा लिया है मैंने बस ये आँखे नहीं मानती है मेरी
तेरे सपने जिन्होंने देखे थे उनको आंसुओं की माला पिरोते देखा है मैंने
दिल रह रह के सोचता है तेरी जानिब पूछता है तुझ बिन क्यों जीना स्वीकार किया है मैंने
पर मेरे पास सवालों का कोई जवाब नही अब तो बस चुपी को ही अंगीकार किया है मैंने
मेरी उलझन कोई न जाने न कोई समझे मेरी पीर अपने ज़ख्मो के लहू को खुद ही पिया है मैंने
छले मेरी रूह पे जो है नमक उनपे छिड़क के उस दुःख को भी सहन किया है मैंने
अपनी जिंदगी से तुझे निकाल दिया  और जहर ये कड़वा  भी पिया है मैंने
न मैं जिन्दा न मैं मुर्दा अपने इस हाल का जिम्मेदार तुझे ही बना दिया है मैंने
दुआ और बदुआ कुछ नही निकलती है तेरे लिए दिल का ये बोझ हटा दिया है मैंने
राखी शर्मा

बदलाव तुझसे इश्क़ के बाद

परिभाषा ही बदल गयी है इश्क़ की मेरे ज़हन में जबसे तुझे इश्क़ किया है मैंने
इस कदर बेजार होकर बिखरी हूँ मैं की खुद को तार तार किया है मैंने
न जाने कौन सी दुश्मनी थी तेरी मुझे जो इस कदर ठुकरा के चल दिए
रूह और मन  का श्रृंगार भी किया है  अहसासों से तेरी  खातिर मैंने
खुद को समझा लिया है मैंने बस ये आँखे नहीं मानती है मेरी
तेरे सपने जिन्होंने देखे थे उनको आंसुओं की माला पिरोते देखा है मैंने
दिल रह रह के सोचता है तेरी जानिब पूछता है तुझ बिन क्यों जीना स्वीकार किया है मैंने
पर मेरे पास सवालों का कोई जवाब नही अब तो बस चुपी को ही अंगीकार किया है मैंने
मेरी उलझन कोई न जाने न कोई समझे मेरी पीर अपने ज़ख्मो के लहू को खुद ही पिया है मैंने
छले मेरी रूह पे जो है नमक उनपे छिड़क के उस दुःख को भी सहन किया है मैंने
अपनी जिंदगी से तुझे निकाल दिया  और जहर ये कड़वा  भी पिया है मैंने
न मैं जिन्दा न मैं मुर्दा अपने इस हाल का जिम्मेदार तुझे ही बना दिया है मैंने
दुआ और बदुआ कुछ नही निकलती है तेरे लिए दिल का ये बोझ हटा दिया है मैंने
राखी शर्मा

Tuesday, July 7, 2015

कैसे जियुं तुझ बिन

सुन ले दिलबर जानिए क्यों जुदा हम हुए ...2

रफ्ता रफ्ता मैं चलूँ मर मर के जियुं
मोहब्बत याद आये वो
कैसे ये मदहोशी है चुप सी ख़ामोशी है मोहब्बत याद आये जो
वो जो तू मिला ये दिल खिला जाने क्यों इश्क़ हो हो गया
क्यों लाडे ये नैन खोया दिल का चैन
मुझमे तू शामिल हो गया
फिर क्यों जुदा हम हुए

प्यास है दिल मेरा प्यासी है रूह आके दे जा तू करार
जाने कैसे तुझसे मिलूं क्या क्या मैं जातां करूँ
मिल जा बस एक बार
ये जो आग है बुझती नही बदल सा इस पे बरस जा तू
क्यों रूह मेरी पुकारे तुझे चला आ कहीं से तू
तू आजा रे आ भी जा

आँखों में नमी सी है धड़कन थमी सी है
तेरी बातें याद आएं वो
तेरी आँखों की मस्ती तेरी शरारत मुझको
फिर छेड़ जाये तो
वो तेरे लब हंसी कातिल नजर वो अंगड़ाइयां वो दीवानापन
तेरी प्यार की मदहोशियाँ उफ्फ मेरी खामोशियाँ
मुझको फिर से जाता जा तू

ज़हर मेरे हाथ है मौत भी पास है तुझ बिन जिया जाये न
इल्तज़ा उस रब से है मरना मैं चाहूँ फिर भी क्यों मुझको मौत आये न
मैं न चाहूँ वो जिंदगी जिसमे मेरा यार नहीं
कैसे जियुं अब इस जहाँ में जिसमे मेरा प्यार नही
अब तो मुझको बुला ले तू ...
रफ्ता रफ्ता मैं चलूँ मर मर के जियूँ...

रानी लक्षमी बाई

रानी लक्ष्मी बाई को नमन
हे लक्ष्मी तुम अवतार बन के आई
माँ दुर्गा सा रूप लिए दुष्टो का संहार करने आई
तुमने इस धरा पर जनम जो लिया था
इसको अपने बलिदान से पावन किया था
तुमने दिखा दिया की नारी नहीं निर्बल
तुमने जाता दिया बन जाती है वो सबल
तुमने मातृभूमि के लिए जो देशभक्ति दिखाई
नमन है तुमको मेरा ग्वालियर की माई
तुमने अपना जीवन सार्थक बनाया
जो करने  आई थी वो करके दिखाया
आज की नारी को सिखाया की ज्वाला बन जा
अपने सारे दुखो को पल में राख कर जा
नर की छत्र छाया की तू मोहताज नहीं है
पराजीत कर सके जो तुझे किसी मे वो आग नहीं है
नमन है तुझको  ओ झांसी की रानी
बन गयी जो तू देश के लिए मर्दानी
तेरा ये सदा उपकार हम पे रहेगा
याद तुझे ये भारत हल पल करेगा
जिवंत है तू अब हमारे दिलों में
बस गयी है रानी तू सभी के स्वरों में
राखी शर्मा

Sunday, July 5, 2015

क्यों है तुझसे मोहब्बत

मुझे मोहब्बत तेरे मस्तक से नहीं उसकी चमक से है
मुझे मोहब्बत तेरी आँखों से नही तेरी कातिल नजर से है
नाक जिससे तू सांस लेती है मोहब्बत सांसो की खुशबु से है।
वो तेरे गुलाबी होंठ मोहब्बत मुझे उनमें बसने वाले रास से है
तेरी सूरत से मोहब्बत नही उस पर आने वाली दमक से है
वो तेरी सुराईदार गर्दन मोहब्बत उसमे पड़े तेरे हार से है
तेरे कानो में पड़ी बालियां मोहब्बत उनकी झंकार से है
तेरे हाथों पड़ी चूड़ियाँ मोहब्बत उनकी खनखनाहट से है
वो टी पायल है तेरे पैरों की मोहब्बत उनकी छमछामाहट से है
जब तू चलती गई बलखा के तो मोहब्बत तेरी चाल से है
दीवाना बना दिया है कसम से मोहब्बत तुझ बेमिसाल से है
न मुझे तेरे किरदार ऐ कुछ मतलब है नई तेरी ज़ात से ओ हसीना
मोहब्बत तुझसे जुडी हर छोटी बड़ी आम और ख़ास बात से है ।
मुझे मोहब्बत तेरे दिल से और तेरी आत्मा में बसने वाले हर जस्बात से है
राखी शर्मा

Wednesday, July 1, 2015

पहरे क्यों

आखिर किसने पहरे लगा दिए है तुम पर जो याद भी नही करते 
इन बारिशों के मौसम में भी तुम भीगने की फ़रियाद नही करते
क्यों इस कदर बेरुखी का आलम हो गया है मेरी ही तरफ तुम्हारा
आखिर अब मुझसे वो पहले वाली प्यार की गुफ्तगू नही करते
पता है उलझनों में तो हो तुम पर मेरी जुल्फों को अब संवारा नही करते
वो पहले सी बात नही रही क्योंकि बरबस ही तुम मुझे निहारा नही करते
आँखों में वो पहले सी कशिश कहीं नही है अब मुझे तुम जान कह के पुकारा नही करते
कजरारी आँखों को दरिया बताना अब दरियाओं में डूबना गंवारा नही करते
पहले सा कुछ नही रहा अब और तुम ऐसे तो नीरस जिंदगी गुज़ारा नही करते
प्यार खत्म हो गया है हमारे बीच फिर भी तुम मेरे जीवन से किनारा नही करते
बड़ी ही तकलीफ देह है तेरी ख़ामोशी जा हम भी तेरे जैसे संगदिल के लिए जीवन बेज़ार नही करते
हम भी कहते है आज सबको की हम तुझसे भी प्यार नही करते प्यार नही करते............
राखी शर्मा

सिलसिले

खत्म कर दिए हैं मैंने मोहब्बत के सभी सिलसिले तुझसे
तेरी ज़ात से मुझे मुक्म्मल नफरत सी हो गयी है
कैसा तेरा किरदार जो मोहब्बत भी न सम्हाली मेरी
और किसी और चेहरे पे तू निसार हो गया है
कैसे तुझसे वफायें निभाऊं इतनी हिम्मत कहाँ से लाऊँ
मुश्किल बड़ा अब ये इम्तिहान हो गया है
मेरी ही गलतियां है जो तुझसे इश्क़ की डोर बांधी मैंने
कैसे ये गलतियों का अम्बार हो गया है
ख़त्म कैसे करू बता अब ये मोहब्बत अपनी रूह से मैं
के तुझसे रूहानी प्यार हो गया  है।
राखी शर्मा

तुम्हारी आँखे

दिलकश हैं तुम्हारी आँखे बहुत जब भीं देखा इनमे डूब ही गया
कुछ तो रहम खाओ इस दीवाने पे मेरा तो सब कुछ तुमने लूट ही लिया
आँखों से मचाकर कत्लेआम पूछती हो मुझसे क्या खता हो गयी
दिल में इस कदर उतर गयी की लगता है जिंदगी तुम बिन सजा हो गयी
काजल जो लगाया तुमने चिलमन और ज्यादा सुर्ख और रंगीन हो गयी
तुम्हारी आँखे तो मेरे लिए जन्नत सी हसीन और तुम मेरे लिए हूर हो गयी
मेरी इल्तज़ा सुनती जाना ओ हसीना के तुम्हारी आँखे दिल में बस गयी हैं

वो बेवफा

मेरी बात सुनते ही गज़ब की ख़ामोशी छा गई उनमे
मैंने तो बस ये पुछा कि किसी से वफ़ा की है क्या कभी??????
बहुत देर के बाद सोच के बोले कभी किसी से इतनी मोहब्बत ही नही की मैंने
तुम तो वफ़ा की बात करती हो मुझे तो ये तक याद नही की मोहब्बत कब की
सुनकर उनकी ये बातें मेरी आँखों में आंसू बाह निकले और मैंने कहा
जो मैंने तुमसे मोहब्बत की उसका क्या मैं तो खुद गुनहगार बन गयी
तुमसे ये सवाल करके अपनी नज़रों में ही खुद को ही गिरा लिया
वो फिर बोले मोहब्बत होती तुम्हे तो ये सवाल ही क्यों करती तुम
कुछ सवालों के जवाब मेरी आँखों में ढूँढो तो खुद ही मिल जाएंगे
कैसी मोहब्बत है ये जो इलज़ाम दिलबर पे सरेआम लगाती है
और फिर मुझे दोषी बता के अपनी आँख से आंसू गिराती हो
दिल में झांक के देखो तो तुम्हे पता चले की कौन गुनाहगार है
मैं तो बेबस सी बस उसे देखती ही रह गयी और ये ही कहा कि मेरे दिल की गहराई तू क्या जान पायेगा जो मुझे प्यार ही न करे
जिस आग में जली हूँ मैं अब तक तुझे तो उसकी आंच भी नही लगी
जा आज़ाद है तू मेरे हर सवाल से हर इलज़ाम से और बेवफा के दाग से

राखी शर्मा

तुझसे मोहब्बत

है।
वो तेरे गुलाबी होंठ मोहब्बत मुझे उनमें बसने वाले रास से है
तेरी सूरत से मोहब्बत नही उस पर आने वाली दमक से है
वो तेरी सुराईदार गर्दन मोहब्बत उसमे पड़े तेरे हार से है
तेरे कानो में पड़ी बालियां मोहब्बत उनकी झंकार से है
तेरे हाथों पड़ी चूड़ियाँ मोहब्बत उनकी खनखनाहट से है
वो टी पायल है तेरे पैरों की मोहब्बत उनकी छमछामाहट से है
जब तू चलती गई बलखा के तो मोहब्बत तेरी चाल से है
दीवाना बना दिया है कसम से मोहब्बत तुझ बेमिसाल से है
न मुझे तेरे किरदार ऐ कुछ मतलब है नई तेरी ज़ात से ओ हसीना
मोहब्बत तुझसे जुडी हर छोटी बड़ी आम और ख़ास बात से है ।
मुझे मोहब्बत तेरे दिल से और तेरी आत्मा में बसने वाले हर जस्बात से है
राखी शर्मा