Friday, November 1, 2013

दिवाली कहाँ अब

कहाँ गयी वो दिवाली की धूम जो पहले हुआ करती थी
रौशनी घरो में इतनी नहीं जितनी की रिलो में हुआ करती थी
छोटे से अपने घेर को मै दियो से सजाया करती थी
नन्हे नन्हे हाथो से रंगोली बनाया करती थी
याद है मुझको दोस्तों के संग वो पटाके फोड़ना
वो आनार वो राकेट को आकाश में छोड़ना
चकरी चलर वो उस पर जोर से कूदना
फुलझड़ी को ले हाथो में इधर उधर घूमना
जब दिवाली आती थी हम खूब खुश हुआ करते थे
तय्यारी दिवाली की बहुत पहले शुरू किया करते थे
आज भी दिवाली आती है पैर उसमे वो बात कहाँ
पहले जैसे अब दिल में वो जस्बात कहाँ
दिवाली हो या होली हो कोई उमंग न उमड़ती है
अब बस दिवाली जेब पे भरी पड़ती है
फिर वो रौनक कहाँ जो तब हुआ करती थी
हर बार दिवाली आने की बस चाह हुआ करती थी।
अब तो बस औपचारिकता है दिवाली मनानी पड़ती है
अब ये जब भी आती है सब पे भारी पड़ती है
राखी शर्मा

दिवाली कहाँ अब

कहाँ गयी वो दिवाली की धूम जो पहले हुआ करती थी
रौशनी घरो में इतनी नहीं जितनी की रिलो में हुआ करती थी
छोटे से अपने घेर को मै दियो से सजाया करती थी
नन्हे नन्हे हाथो से रंगोली बनाया करती थी
याद है मुझको दोस्तों के संग वो पटाके फोड़ना
वो आनार वो राकेट को आकाश में छोड़ना
चकरी चलर वो उस पर जोर से कूदना
फुलझड़ी को ले हाथो में इधर उधर घूमना
जब दिवाली आती थी हम खूब खुश हुआ करते थे
तय्यारी दिवाली की बहुत पहले शुरू किया करते थे
आज भी दिवाली आती है पैर उसमे वो बात कहाँ
पहले जैसे अब दिल में वो जस्बात कहाँ
दिवाली हो या होली हो कोई उमंग न उमड़ती है
अब बस दिवाली जेब पे भरी पड़ती है
फिर वो रौनक कहाँ जो तब हुआ करती थी
हर बार दिवाली आने की बस चाह हुआ करती थी।
अब तो बस औपचारिकता है दिवाली मनानी पड़ती है
अब ये जब भी आती है सब पे भारी पड़ती है