Thursday, December 26, 2013

mai aur tu

ek nami si meri aankho ..me tujh se door hoker rahti hai
ek kami si mere jivan me hai jo mujhse ye kahti hai
ke tujh bin kaise ji rahi hu main kaise saans leti hu
kyu mai har pal teri yaadon ka daaman thaam leti hu
kya hai jo kosish ke baad bhi tu dur nahi ja paata hai
har jagah har samay bus tu hi tu mujhe najar aata hai
milon ka faasla hai humare  beech phir bhi ye judaav kaisa
aankho  ko roshan kar raha hai tera ishq ye ujala kaisa
man ki man se dor bandh jo gayi bina kuch kahe hi
kya kahun mai mujhe to tu kabhi mila hi nahi
ek aas hai tujhse milne ki iss dil me ek vishwaas hai
mujhse milega tu mujhe is baat ki har pal aas hai
kuch na kahungi tujh se milkar mai maun rahungi
bus apni khamoshi se hi mai tujko sab kahungi
samajh lena tum bhi meri wo moook bhasa
aur de dena naino se hi mere dil ko dilasa

Monday, December 23, 2013

मेरी माँ

सबकुछ है मेरे पास तेरा जो प्यार है
इस प्यार पे मेरा दिल ओ जान निसार है
तूने मुझे जनम दिया नहीं तो क्या हुआ
पर इस जीवन पे तेरा भी अधि कार है
तुझसे मिलकर लगा मुझे की मेरी
जिन्दगी तेरी गोद मे बीती है
तेरा वो मुझे छेड़ कर चिढाना
बहुत अच्छा लगता है
तेरा हर बात पे मुस्कुराना
अच्छा लगता है
धीरे से आकर मेरे गाल को छूना
गले से लगाना अच्छा लगता है
अब तो तेरे बिना जीना मुझे
मुश्किल सा लगता है
माँ ऐसी सहेली बन गयी है
जिसेसब बताना अच्छा लगता है
तू पास नहीं मेरे बस ये ही 
दुःख बहुत बड़ा है
चली जाये गी माँ तू बहुत दूर मुझसे
और तेरे दूर जआना रुला देगा मुझे
सबके सामने तो रो नहीं पाऊँगी
पर अकेले आंसू बहुत आयेंगे
तेरे जाने के बाद तेरे साथ गुजरे
वो लम्हे बहुत याद आयेंगे
पता नहीं माँ क्यों तुझसे
इतना प्यार हो गया है
तेरी इस राखी का दिल तेरे लिए
बस तलबगार हो गया है
तेरा वो स्नेह मैं भूला न पाउंगी
लगता है मुझे तुझ बिन माँ
कैसे अकेले रह पाउंगी
कैसे रह पाऊँगी कैसे रह पाउंगी

tere pyar ko apnau kaise

tere pyar ka geet main apni jindgi ki baansuri pe bajau kaise
jo pyar tere liye iss dil me hai wo pyar honto tak lau kaise
dil sagar me jo lahre uth gaye hain unhe ab kinare le jau kaise
ho gaye tujhse itni preet mujhe us preet ka farz nibhau kaise
kuch rishton ka naam nahi hota or tere mera rishta logo ko batau kaise
tere sath jine ki khwaish hai to tujse itni door hokar mar jau kaise
pyar me mile ye jaruri to nahi or mile bina tujhse rah paun kaise
aakhir dil bhi to nadan hai zid karta hai tu bata isse samjhau kaise
tere pyar ki mala ko apne shringaar ka gahna main banau kaise
jo dekhti hain khwaab meri aankhe un aankho se unhe mitau kaise
dil ke registaan me boond bankar barasta hai tera pyar ab isse rok paun kaise
tere kadmo ki aahat jo dil pe dastak deti hai usse apna dhyan hatau kaise
ab to jeena mushkil hai mera tujh bin ye bata tujh bin ab ji paun kaise
rakhi

Friday, November 1, 2013

दिवाली कहाँ अब

कहाँ गयी वो दिवाली की धूम जो पहले हुआ करती थी
रौशनी घरो में इतनी नहीं जितनी की रिलो में हुआ करती थी
छोटे से अपने घेर को मै दियो से सजाया करती थी
नन्हे नन्हे हाथो से रंगोली बनाया करती थी
याद है मुझको दोस्तों के संग वो पटाके फोड़ना
वो आनार वो राकेट को आकाश में छोड़ना
चकरी चलर वो उस पर जोर से कूदना
फुलझड़ी को ले हाथो में इधर उधर घूमना
जब दिवाली आती थी हम खूब खुश हुआ करते थे
तय्यारी दिवाली की बहुत पहले शुरू किया करते थे
आज भी दिवाली आती है पैर उसमे वो बात कहाँ
पहले जैसे अब दिल में वो जस्बात कहाँ
दिवाली हो या होली हो कोई उमंग न उमड़ती है
अब बस दिवाली जेब पे भरी पड़ती है
फिर वो रौनक कहाँ जो तब हुआ करती थी
हर बार दिवाली आने की बस चाह हुआ करती थी।
अब तो बस औपचारिकता है दिवाली मनानी पड़ती है
अब ये जब भी आती है सब पे भारी पड़ती है
राखी शर्मा

दिवाली कहाँ अब

कहाँ गयी वो दिवाली की धूम जो पहले हुआ करती थी
रौशनी घरो में इतनी नहीं जितनी की रिलो में हुआ करती थी
छोटे से अपने घेर को मै दियो से सजाया करती थी
नन्हे नन्हे हाथो से रंगोली बनाया करती थी
याद है मुझको दोस्तों के संग वो पटाके फोड़ना
वो आनार वो राकेट को आकाश में छोड़ना
चकरी चलर वो उस पर जोर से कूदना
फुलझड़ी को ले हाथो में इधर उधर घूमना
जब दिवाली आती थी हम खूब खुश हुआ करते थे
तय्यारी दिवाली की बहुत पहले शुरू किया करते थे
आज भी दिवाली आती है पैर उसमे वो बात कहाँ
पहले जैसे अब दिल में वो जस्बात कहाँ
दिवाली हो या होली हो कोई उमंग न उमड़ती है
अब बस दिवाली जेब पे भरी पड़ती है
फिर वो रौनक कहाँ जो तब हुआ करती थी
हर बार दिवाली आने की बस चाह हुआ करती थी।
अब तो बस औपचारिकता है दिवाली मनानी पड़ती है
अब ये जब भी आती है सब पे भारी पड़ती है

Friday, August 30, 2013

हाय रे औरत तेरी किस्मत -भाग तीन

तीन दिन बाद मनोज घर आया।उसके आने के बाद गोविन्द का घर आना बंद हो गया। फुलवा अब ये जान चुकी थी की उसकी जिन्दगी में अब गोविन्द को पाने की कोई उम्मीद नहीं बची है।फुलवा एक मेहनती लड़की जल्द ही उसने घर का सब काम संभाल लिया।घर के लोग उससे बड़े खुश थे। बहुत बड़ा परिवार था उसका अब। पर उसकी जिन्दगी का खालीपन वो कोई नहीं भर सकता था। क्या एक औरत सिर्फ हवस की भूखी होती है ?उसके अंदर जस्बात नहीं होते?अगर नहीं होते तो क्या मनोज के साथ वो खुश नहीं रहती।एक कहावत है जाके पैर न फटी बेवाई सो क्या जाने पीर पराई।ये सही भी है ।जब तक अपने उपर बितती है तभी ही पता चलता है। वो जी तो रही थी पर वो खुश नहीं थी। एकांत के वो लम्हे उसे भाते नहीं थे। डरने लगी थी वो और हमेशा उन लम्हों से खुद को बचने की कोशिश में रहती थी। मन की कुंठा किसी से कह भी तो नहीं सकती थी।
वहां उसकी महुआ की शादी एक अधेड़ के साथ तय करदी उसकी माँ ने।उसके दो बच्चे थे। ज़मींदार था वो और महुआ वो तो सब कुछ बिना बोले ही सहती जा रही थी। गरीबी देखि थी उसने शायद इस्सी वजह से उसका मुंह बंद था। फुलवा  ने विराध भी भी किया पर महुआ ने उससे रोक दिया ।क्योंकि इसे पता था की उसकी शादी से उसके घर के लोगो का भी फायदा है। महुआ का विवाह हो गया और दो बच्चो की जिम्मेदारी संभाल ली उसने। पर शादी के बाद उसने कभी अपनी माँ और बहनों को काम पर जाने की नौबत नहीं आने दी। महुआ पर दो लडको की जिम्मेदारी थी दोनों उम्र में ग्यारह और तेरह साल के थे पर अमीर बाप के बिगडैल बच्चे थे ।महुआ को सब पता था कि वो सारा दिन यहाँ वहां घुमने के अलावा दुसरो को अरेशान करने के अलावा कुछ नहीं करते थे पर वो उनकी सौतेली माँ थी कहती भी तो क्या?उसने धीरे धीरे बच्चो से अपनापन बढाया। एक दिन वो घर में अकेली थी छोटा बेटा  वहां खेल रहा था अच्चानक उसे चोट लगी उसने भागकर बच्चे को गोद में उठा लिया। और मरहम पट्टी की। छोटा उससे घुलमिल गया ।एक दिन छोटे ने बताया की उनकी माँ मरी नहीं थी उसे मार दिया गया था। महुआ ये सुन कर डर गयी ।वो सोचने लगी की आखिर क्यों उसके पति ने अपनी पत्नी को मार डाला।घर के नौकरों से भी पूछने की उसकी हिम्मत नहीं थी। पर वो समझ चुकी थी की कुछ तो जरुर है और वो पता लगा के रहेगी।
उधर फुलवा माँ बन चुकी थी ।उसने एक सुन्दर बच्चे को जनम दिया था ।बच्चे के आने से उसकी जिन्दगी का खालीपन भरने लगा था। मनोज भी खुश था।अनु और नीरा की भी जिन्दगी चल रही थी।अनु शादी नहीं करना चाहती थी ।वो शहर जाने के सपने देखा करती थी।उसने अपने ख्वाबो की दुनिया बसा ली थी और उसी में जीती चाहती थी।एक दिन अपने ख्वाबों को पूरा करने की चाह में वो देर रात घर से निकल गयी। सुबह उसने ट्रेन पकड़ी और जा पहुंची एक बड़े शहर में। मुंबई रेलवे स्टेशन पर उतरी तो उसने सोचा भी नहीं था उसकी जिन्दगी में अगला मोड़ कितनी जल्दी आने को है।वो स्टेशन से बाहर आई और शहर की चकाचौंध में खो गयी। चलते चलते वो थक गयी ।भूख भी लगी थी। उसने दस रूपए निकाले और वडा पाव्र लेकर खाने लगी। वो चली जा रही थी कि पीछे से कार से टकरा गयी और फिर उसे होश न रहा। आख खुली तो खुद को एक आलिशान घर में पाया।

Monday, August 26, 2013

हाय रे औरत तेरी किस्मत -भाग दो

फुलवा की शादी का दिन था ।एक दुल्हन की तरह वो भी सजी धजी ।पैर उसकी आँखों में वो चमक न थी जो होनी चाहिए थी। आखिर उसके अरमान शादी के हवन कुंद में जलकर सुवाहा जो होने जा रहे थी ।घर में ख़ुशी का माहौल था। फुलवा के दिल में जो विराना था उसकी किसी को खबर नहीं थी।उसकी बहने सब जानती थी।महुआ सबकुछ जानती थी पर वो करती भी तो क्या। खैर शादी की सारी रस्मे हो चुकी थी। बस विदाई बाकी थी। और वो भी हो गयी। नीरा की आँख भर आई क्युकी फुलवा उसे हमेशा सबसे बचाती थी माँ को कभी मारने नहीं दिया उसने नीरा को। फुलवा के घर से जाते ही दिनचर्या पहले जैसे हो गयी। वहां फुलवा अपनी ससुराल पहुँच गयी थी। ससुराल जाते ही उसका मन और खिन्न हो गया। सब अजनबी थे। वो ये ही सोच रही थी कि क्या हो गया सब ।सारी औरते उसके पास बैठी थी।तभी एक आवाज़ सुनकर वो चौक पड़ी। उसकी खोयी मुस्कान वापस आ गयी। और आँखों में चमक उसके सामने गोविन्द खड़ा था ।पर घूँगट की आड़ में वो उसे देख नहीं पाया था।अब वो घडी आ पहुंची थी जब फुलवा और मनोज आमने सामने थे। मनोज बहुत ही सीधा साधा था पर फुलवा को चाहता बहुत था। पर फुलवा वो तो पता नहीं किस भूलभुलैया में घूम रही थी। मनोज जितना फुलवा के पास आने की कोशिश करता फुलवा उतना ही उससे दूर जाने की पर आखिर कब तक।मनोज उस पर जबरजस्ती नहीं करना चाहता था वो ये ही सोच रहा था की अभी वो दोनों अजनबी हैं पर एक मर्द कैसे अपने आप को संभालता और तब जब की जिसे वो सबसे ज्यादा चाहता हो वो उसके पास हो।उसने फुलवा को अपनी बाहों में भर लिया और फुलवा भी कब तक खुद को कैसे संभालती।फुलवा की आँखों में नींद का नाम नहीं था ।खुद को आईने में देख कर सोच रही थी की एक ही रात में उसकी जिन्दगी बदल गयी। पौ फट चुकी थी। फुलवा अपनी साडी  समेटकर उठी और नहाने चली गयी। मनोज का घर ठीक ठाक था ।वहां बहुत बड़ा आँगन था ।आँगन में खुले बाल सुखा रही थी तभी कुछ आहट हुई वो भाग कर कमरे में चली गयी और मनोज से जा टकराई ।मनोज भी शायद तैयार नहीं था और दोनों धडाम से गिर पड़े और फुलवा का सर दीवार से जा टकराया और खून की धारा बह निकली। नयी नवेली दुल्हन का ये हाल देखकर मनोज डर गया ।भागकर उसने फुलवा को उठाया और अपनी माँ को आवाज दी और खुद डॉक्टर को बुलाने चल पड़ा।चोट गहरी थी बस सब लगे बहु की सेवा करने में ।पे फुलवा की आँखे को गोविन्द की एक झलक पाने को बरक़रार थी। मनोज काफी परेशान था। बस वो लग गया फुलवा की देख रेख में। फुलवा  को अगले दिन अपने घर जाना था पगफेरी की रस्म के लिए।मनोज के साथ चल पड़ी वो घर ।उसकी बहाने उसके माथे पर पट्टी देखकर सहम गयी ।माँ का मन भी कई सवालो से घिर गया पर जब सब पता चला तो हसे बिना नहीं रह सके सब। उसकी माँ ने गोविन्द से उसे वहीँ छोड़ जाने की बात रखी ।गोविन्द तो कुछ कह ही नहीं पाए पे फुलवा ने ही रुकने से मन कर दिया। उसने महुआ को गोविन्द के बारे में बताया और उसका घर न रुकने का कारन भी।बस आ गयी वो मन में गोविन्द से मिलने की आस लिए।जब घर पहुंचे तो  घर में ग़मगीन महौल था ।फूफा जी की तबियत काफी ख़राब थी और बुआ जी ने बुलवा भेज था की कोई आ जाये ।पर जाये कौन बाबूजी तो पहले ही बीमार थे। आखिर मनोज को ही जाना पड़ा। मनोज जाना नहीं चाहता था। क्युकी फुलवा को भी चोट लगी थी। उसने फुलवा से पुछा तो वो कुछ न बोली।खैर वो चला गया ।रात हो चली थी फुलवा को भी दर्द के मारे नींद नहीं आ रही थी। ठण्ड भी थी। वो उठी और शाल लेकर बाहर आई। बाहर चूले में आग थी उसने हाथों  को सेकने  के लिए अंगारे एक मिटटी के बर्तन में भरे और अन्दर जाने लगी तभी वो सन्न रह गयी सामने गोविन्द खड़ा था। उसके चेहरे पर हैरानी थी।लालटेन की हलकी रौशनी में भी वो फुलवा को पहचान गया और उसके मुह से बस ये ही निकला फुलवा तू। फुलवा जल्दी से कमरे में भागी पर गोविन्द भी उसके पीछे हो लिया। फुलवा के मन में तो जैसे सितार बजने लगे। इससे पहले वो कुछ कह पाती गोविन्द ने उसके माथे को छुआ और पुछा की ये सब कैसे। फुलवा की आँखों से अश्रुधरा बह निकली और वो भाग कर गोविन्द की बाहों में समां गयी।गोविन्द को कुछ समझ नहीं आया ।उसने फुला को खुद से अलग करना चाहा पर फुलवा वो तो खो ही गयी थी।
फुलवा ने सारी व्यथा गोविन्द से कह दी। रात गहरी हो चुकी थी गोविन्द मनोज का चचेरा भाई था। वो फुलवा से बोल की अब उसे जाना है ।फुलवा उसे जाने नहीं दे रही थी। गोविन्द उससे अगले दिन मिलना का वादा कर जाने लगा तो फुलवा ने उसे धक्का दे दिया वो पलंग पे गिर पड़ा और फुलवा उसके सीने पे सर रख कर लेट गयी। फुलवा को कब नींद आई उससे पता न चला। सुबह उसकी आँख खुली तो वो अकेली थी। उसे लगा जैसे उसने रात कोई सपना देखा हो। वो आज पहले से ठीक थी। उसने आज खुद को अच्छे से संवारा और श्रींगार किया ।उसे रात का इंतज़ार था।दिनभर तो वो औरतो से घिरी रहरी थी। शाम को गोविन्द डॉक्टर को लेकर आया ।वो पट्टी कर गया और दावा दे गया ।मनोज की माँ ने गोविन्द से कहा की वो अपनी भाभी का ध्यान रखे।अब तो वो ही हो गया जो फुलवा चाहती थी। गोविन्द और उसकी नन्द उसके पास रहे ।नन्द को भी नींद आ गयी वो भी सोने चली गयी। सन्नाटा चारो तरफ फ़ैल गया था।फुलवा गोविन्द के साथ के लिए तड़प रही थी ।वो जानती थी की अगर मनोज आ गया तो वो गोविन्द को करीब कभी नहीं जा सकेगी। कहीं पर गोविन्द के दिल में फुलवा को पाने की चाह थी ।आखिर कब तक दिल के समंदर की लहरों को रोक पाते दोनों ।आखि र दोनों एक दुसरे के हो ही गए। और वो रात फुलवा की जिन्दगी में कभी न भूलने वाली रात बन गयी।
क्रमशः

Sunday, August 25, 2013

हाय रे औरत तेरी किस्मत -कहानी भाग 1

नीरा वैसे तो एक आम लड़की  थी पर उसकी कहानी कोई नहीं जानता। बिहार के सुदूर इलाके में जन्मी थी वो। घर में उसके अलावा तीन बड़ी बहनें और थी ।पिता तो उसके पैदा होने से पहले ही चल बसे थे। नीरा छोटी थी पर वक़्त की ठोकरों ने उसे बड़ा बना दिया था। जब से होश संभाला उसने फटे कपड़ो के अलावा कुछ नहीं मिला था तन ढकने को। पर फिर भी वो खुश थी अपनी जिंदगी में। उसकी माँ और बड़ी बहाने रोज खेतो में काम करने जाया करती थी। नीरा को भी अपने साथ ले जाती थी। वो पांच साल की अबोध बच्ची कुछ कर तो नहीं पाती थी पर फिर भी सबको पानी पिलाने की जिम्मेदारी उसी की थी। वो बच्चो के साथ मिटटी में खेल करती थी। गोरा रंग हिरनी सी आँखे और मासूम चेहरा उसकी खासियत थे। उसकी माँ अपनी सारा दिन जी तोड़ मेहनत करती थी । घर में चुल्हा जलने का एक येही जरिया था। उसकी  सबसे बड़ी बहन तेरह साल की थी ।समय अपनी गति से चल रहा था ।बस रोज की वही भागदौड़ में जीवन का पता ही नहीं चलता था। नीरा अब दस साल की हो चली थी ।नीरा की माँ अब उसकी बहनों की शादी करना चाहती थी ।
पर गरीबी ने उसके हाथ बांध रखे थे।सावन आ गया था सब बहने मेला देखने जा रही थी ।गाँव की सारी लडकियां एक साथ मिलकर चल पड़ी दुसरे गाँव ।नीरा की बड़ी बहन फुलवा अनु महुआ भी नीरा का हाथ थामे चल रही थी। मेले की रोनक तो देखते ही बनती थी ।सब की आँखे चकाचौंध हो गयी। सारी खुश थी ।फुलवा के चेहरे पर हलकी सी मुस्कराहट थी।
वो  किसी को देखकर शर्मा रही थी ।जाने कौन था वो नौजवान जो उसे एकटक देखे जा रहा था ।फुलवा भी उसे देखती और फिर नजरे झुक लेती। उसके मन की देहलीज पैर प्यार दस्तक दे चूका था और वो उस अनजाने अजनबी से आँखे चार कर बैठी थी। आने वाली जिन्दगी से बेखबर वो उस अजनबी के प्रेमपाश में बंधी जा रही थी ।शाम हो चली थी सब लडकियां गाँव कीतरफ वापस चल पड़ी। फुलवा का मन नहीं था अजनबी को छोड़ के जाने का ।आखिर उसने पूछ ही लिया उसका नाम ।गोविन्द ये सुनकर वो बहुत खुश हुयी और गोविन्द भी उससे मिलने का वादा  करके अपने घर चला गया। अब फुलवा को कहीं चैन नहीं था ।उसे तो हर घडी गोविन्द से मिलने की तड़प थी। उसकी हालत उसकी बहनों से छिपी नहीं थी। वो रोज महुआ को लेकर नदी किनारे जाया करती थी। पर गोविन्द को तो जैसे सुध ही नहीं थी। फुलवा की सहेली की शादी थी । शादी में फुलवा भी गयी।जब वापस घर आ रही थी तो पीछे से किसी ने आवाज दी। आवाज़ सुनकर वो पलती तो सामने एक नौजवान खड़ा था ।फुलवा ने देखा पर कुछ बोली नहीं ।वो नौजवान फुलवा  संग ब्याह करना चाहता था पर फुलवा का दिल तो किसी और का कैदी था। उसने नौजवान ने फुलवा से बात करनी चाही पर फुलवा कुछ न बोली और वहां से भाग गयी।वो नौजवान मनोज था जो फुलवा पर फ़िदा हो चला था। अगले दिन तडके वो फुलवा की माँ से मिला और अपनी इच्छा जताई। उसकी माँ को क्या ऐतराज होता ।फुलवा की माँ ने तुरंत हाँ कर दी। और शादी पक्की हो गयी। शादी में अभी समय था पर फुलवा रात दिन जल रही थी ।वो  ये शादी नहीं करना चाहती थी। वो अब भी नदी किनारे गोविन्द का इन्तजार किया करती थी। सर्दी आ गयी थी ।हर तरफ कोहरा और ठण्ड का फैलाव था ।नीरा माँ माँ के साथ गयी थी खेतो में महुआ भी साथ थी।घर में फुलवा थी ।उसकी शादी नजदीक आ रही थी। उसकी माँ ने उसे अब खेतो में ले जाना बंद कर दिया था।फुलवा ने घर का काम निबटाया और मटका लेकर अपनी सहेली के साथ चल दी।
नदी किनारे सब औरतें अपने काम में लगी थी पर फुलवा न जाने किस उधेड़बुन में थी। उसकी सहेली ने आवाज लगे घर नहीं चलना है क्या? उसे तो तब पता चला की वो कहाँ है।अब भी शायद वो गोविन्द की यादों से निकल नहीं पायी थी। हलकी धुप और सर्द मौसम उसे सुहावना नहीं लग रहा था। उसकी शादी का दिन आ गया था पर वो खुश नहीं थी। किसी से कह भी तो नहीं सकती थी और अगर कहती  भी तो क्या ।जैसे ढूँढती अपने गोविन्द को इतनी बड़ी दुनिया में ।

 

Tuesday, August 20, 2013

मेरे बाद

मरने के बाद मेरी बात करोगे मेरी सारी बातों को याद करोगे
मिलेंगे नहीं तुम्हे हम फिर अपनी आँखों को आंसुओं से आबाद करोगे
आँखे बंद होंगी हमारी  होंठ सिले होंगेऔर सांसें रुकी होंगी   तब तुम्हे अहसास होगा हमारे बिना तुम्हारी जिन्दगी कितनी अधूरी होगी
तुम बात करोगे मुझे पर मेरी जुबां खामोश होगी
तुम पूछोगे सवाल मुझसे पर मै निरूतर होउंगी
मैं जिन्दगी से हारी हुई कफ़न में लिपटी रहूंगी
पर आत्मा मेरी सबको  देख रही होगी
तुम्हे भी अहसास तो हो जायेगा मुझसे दूर होकर
कि मर मिटी मै तुम्हारे लिए ये जिन्दगी खोकर
सब होंगे वहां एक मेरे सिवा आँखों में आंसू लिए
मै तो चल पडूँगी सबको छोड़ के उस खुद से मिलने के लिए
मेरी लाश को हाथ मत लगाना भूलकर भी तुम
क्योंकि तुम्हारा स्पर्श मुझे मरने पर मुझे महसूस होगा
तड़प जाउंगी मरने के बाद भी वो लम्हा कितना मनहूस होगा
क्योंकि मेरे मरने कि सिर्फ तुम ही वजह ही वजह होगे
और मेरे साथ साथ तुम भी गुनाहगार होगे

Saturday, August 17, 2013

तेरे ग़म की पनाहों में

जब भी जिक्र हुआ तेरा मोहब्बत के अफसानो में
हमारा नाम ही आया है तेरे दीवानों में
तुम तो मोहब्बत करके भूल गए हमे और हम जीते रहे
मरते रहे तेरी ही यादों के मकानों में
दुनिया ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी मुझे इल्जाम देने में
पर फिर भी जी रही हूँ मै उनके तानो में
जिन्दगी ख़तम भी नहीं होती है मेरी कोशिश बहुत कीमैंने
छुटकारा नहीं मिलता तेरे बीते अफसानो से
प्यार का जहर इस कदर भर गया है मुझमे की अब बस
टूट ही जाती हु तेरे नाम के आ जाने से
नशा है ये शराब से बढकर अब समझ आया दिखता
है साफ़ मेरी आँखों के टूटे पैमानों में
मेरी बज़्म में भी तूही है आकर देख ले तू अब यहाँ कयोंकि.
जिक्र तेरा अब भी है मेरे आशियानों में
सुर्ख जो ये आँखे हो गयी इनका सबब जान ले तू आकर
दिल के सूखे रेगिस्तानो में
अब तो घर भी मेरा कब्रिस्तान हो गया क्योंकि आता
नहीं भी है इन वीरानों में
दिल का टूटना कुछ इस कदर कर गया असर मुझ पर
कि उमर ही गुज़रेगी अब मेखानो में
पीना शौक तो न था मेरा पर क्या करूँ मैं आज भी
मेरी रूह भटकती है तेरे ही गलियारों में
रंज मुझे ये नहीं कि तू छुट गया पर कैसे छोड़ दू
खुद को तेरी यादों के शामियानो में
जब भी दिया गम ही दिया उसने और छोड़ दिया मुझे
अकेला इस गम के अंधियारों में
गम का आलम और ये दुनिया क्या समझेगी मुझे रहती
हूं बस अपने गम की पनाहों में
राखी

Wednesday, August 14, 2013

तुम मेरा अतीत

वक़्त बहुत हो गुआ तुझसे मिले पर इन आँखों में तेरी तस्वीर क्यों है
तोड़ दिया जिसने दिल मेरा और यकीं मोहबत से वो आज भी प्यार के काबिल क्यों है
जिसकी यादो को चुन चुन के जीवनसे निकाल दिया मैंने
वो फिर भी मेरी जिन्दगी में शामिल क्यों है
उसकी चाहत रास न आई फिर भी मेरे दिल पर उसका असर क्यों है
ख़तम हो गया है जो मेल उस से पैर आज भी जीवंत उसका प्यार मुझमे क्यों है
वो है भी नहीं मेरे आस पास पर मेरी रगों में दौड़ता उसका इश्क क्यों है
हर सवाल का जवाब है मेरे पास पर उसके सवाल पर मेरी जुबान चुप क्यों है
रखा नहीं उस से कोई रिश्ता मैंने पर उसकी याद में डूबा ये दिल क्यों है
बर्बाद कर गया वो मुझे इस क़दर पर फिर भी उस पर ये रहम क्यों है
क़ैद कर दिया मुझे उसे अपनी यादो में पैर इस कदर टूट कर इश्क क्यों है
राखी

संभावना

शादी के कई साल तक
साथ रहने के बाद भी
बिछड़ना चाहते थे वो
क्योंकि एक सी दिनचर्या
ने नीरसता भर दी थी
उनके संबंधो में
तब वो बहाने खोजने लगे
और एक दुसरे की कमियों को
बढ़ा चढा कर बोलने लगे
धीरे धीरे आई समंधो की खट्टास से
उनका संग रहना असंभव हो चला था
ऐसे में किसी को बिना बताये वे अलग अलग रहने लगे
फिर जब तन्हयिओन में निपट अकेले हो गए
तब उन्हें याद आया कि एक ही घर में रहते हुए
हँस कर मिलना साथ साथ चाय नाश्ता लेना
दिनभर गप्पे हाकना कभी झाड पोछ और
कभी धुले कपडे तह करना शाम की चाय
रात का खाना और टहलते हुए दूर निकल जाना
उसके बाद भी बहुत कुछ एक साथ
नींद के आगोश में जाने तक वे फिर लौट आये
साथ साथ रहने केलिए
घर को फिर सजाया जा रहा है
और साथ में रहना खुद को शिखाया जा रहा है

अनमोल पल

जब भी बारिश की बूंदे मेरा तन भिगोती हैं एक अजीब सी कसक दिल में होती है
बूंदों में हम भीग तो जाते हैं पर हमारे दिल में एक हलचल जरुर होती है।
नर्म बाहों के घेरे हमे जब आकर घेर लेते हैं उनसे निकल ने को हम मचलते हैं
अधरों की भाषा अधर ही समझते हैं उनमे कितनी प्यास है ये तो लब ही जानते है
तुम्हारे उंगलियो का बरबस ही मुझे छू जाना कितनी कोमल हूँ मैं ये बस अहसास समझते हैं
मौन आखों की अभिव्यक्ति को बस आँखे ही पहचानती हैं
क्या तुम्हारे दिल में है क्या मेरे दिल में है धड़कन ही जानती है
साँसों से साँसे उल्जहती है और दिल में तूफ़ान उठते हैं
बारिश के इस मौसम में दोनों तरफ आग बराबर लगती है
धड़कन से धड़कन जुडती है और आँखों से आँखे मिलती हैं
वो घडी जहाँ में ऐसे है जिसको ये दुनिया तरसती है।
मधुर कल्पना के वो पल  जो हमको मिलते हैं हर बार दिल
में वोही भाव उमड़ते हैं
मोहब्बत के वो अनमोल पल  जी भर कर हम जीते हैं
कभी न ख़तम जो प्यास हो उसे बुझाने की कोशिश करते हैं।

कैसे बताऊँ तुझे

दूर दूर रहती हूँ इसी कारण तुमसे क कहीं डूब न जाऊं इन आँखों के समन्दर में
मुझसे एसइ भूल न हो जाए जो रुसवा करे तुमको और और जीने न दे मुझको
लिख रही हूँ छोटी पाती पर प्रेम की दास्ताँ दिखता नहीं है मुझे साफ़ रास्ता
घना कोहरा छाया रहता है आँखों पर सुनती हूँ रोज तुम्हारी धड़कन रफ्ता रफ्ता
तेरी आखों में मैंने अपना चेहरा देखा है तेरी बातों में अपना अक्स देखा है
कई बार तेरे आँखों के आंसू में खुद को बहते हुए देखा है।
तेरी आँहो की पुकार इतनी दूर से भी सुनाई देती है
तेरे बिना बोले ही तेरी हर बात सुनाई देती है।
तुझे कहना है बहुत कुछ परकैसे कहूँ मै
अब तू ही बता ये प्यार का दर्द कैसे सहूँ  मैं

Tuesday, August 13, 2013

Tumko hi dekha hai

Subah ke ugate suraj me maine tumko hi dekha hai
Taaro khili in raato me maine tumko hi dekha hai
Chandrama ki chandni me maine tumko hi dekha hai
Fulo ki muskano me maine tumko hi dekha hai
Apne aap se tumko maine baate karte dekha hai
Har jagah sirf sirf aur sirf maine tumko hi dekha hai
Karke mujhko diwana tum najar chura kar chale gaye
Meri jindgi viraan karke tufaan uthakar chale gaye
Mujhse kya hai khata hui ye bina batakar chale gaye
Jina ek majburi hai tum mujhe tadpakar chale gaye
Meri duniya me kyu aaye jo yun ruthkar chale gaye
Apni in najro ko maine tumhe dhoondte dekha hai
Duniya mujhse kehti hai tumko bhula ker ji lu main
Apne sare jakhmo ko sine me dafan kar lu nain
Meri ye majburi hai ke tunko kaise bhuku main
Aisa kaisa kar lu main koi kya jaane kya hu mai
Tumhari un yaadoan ko khud se juda kaise kar lu main
Aaj is dil se maine tufaan gujarte dekha hai
Ghar basa liya maine per fir bhi kuch kami si hai
Tumhare binmeri jindgi kuch aduri si hai
Mere jivan ke palchhin tumahre  bina nahi katte hain
Tumko dekhne ke liye mere nain taraste rehte hain
Mere is chatak dil ko bus megha ki chahat
hai
Apne is chatak ko maine tumhe bulate dekha hai

Monday, August 12, 2013

Uski yaadein

Quaid hu mai teri yaado ke pinjre me
Pancchi ki tarah
Jaise wo fadfadata hai wahan se nikalne ko
Aise hi mai bhi tadapti hu teri yado ke pinjre se nikalne ko
Mar ke hi molegi aazadi mujhe aur raah takti hu ab marne ko
Kaash ki mere pyar me wo mukaam hota
Tujhe ye rab meri jindgi me likh deta
Bahut khushkismat hote tujhe pa ke hum
Chahe tujhe dekar wo hume wo saare
gum de deta
Kabhi kabhi taras aata hai apne aap per
Kyu ithi ruswayion bhi dil tujhe dil tujhe bhool nahi pata
Kabhi nahi mil sakta tu hume phir bhi dil se jud gaya ye kaisa nata
Chatak ki tarah mera dil pyaasa hai bus uski mohabbat ke liye
Dur rehkar hum tadapte hai uski ek jhalak ke liye