Friday, June 28, 2019

रुदन कंठ से न निकले
दुखों का ज्वारभाटा है
ऐसे कैसे जीवन पूरा हो
खुशियों का सन्नाटा है

समाधि हुआ जीवन खुशहाल
हर तरफ नज़रों के भेदी बाण
कहाँ मिली है स्वतंत्र भूमि
कण कण मांगे बलिदान

रुदन क्रंदन आत्माओं का
जिव्हा करे न कोई मलाल
अंतिम सांस तक भटके प्राणी
करता नही ईश्वर कमाल

कचोटती है मन की पीड़ा हरपल
किस से जाकर करें सवाल
मूक बन बैठा हर कोई यहां
कैसे काटे माया जाल

मेरा अंतस भी घबराता है
ये कौन मुझे सताता  है
अंदर है या बाहर कोई
व्यक्तित्व कौन लजाता है ।

मैंने पिया हर शब्द गरल
जीवन हुआ नही सरल
आशाएं फिर भी क्यों
फिरती मेरे मानस पटल

हुआ कैसा ये मुक्ति बोध
उसमें भी लगे कई अवरोध
कैसे मकड़जाल से निकले
प्रभु तेरा ये बालक अबोध
#राखी

Monday, May 27, 2019

याद

वस्ल की रात तो खुदा याद न आया
अब तो हिज़्र है तब भी बस तुम याद आते हो
#राखी

Saturday, March 23, 2019

कैसी आज़ादी

कौन कहता है कि जब औरत के पास पैसा और नाम आ जाता है तो वो आज़ाद हो जाती है,जनाब आंखे खोल देखिए और दिमाग से सोचिये । कौन सी आज़ादी क्या उसे पता होता है क्या की असल आज़ादी है क्या ? मुंह खोलकर कुछ भी बोल देने से सच साबित नहीं होता वो लड़ रही हैं आज भी , अपने हक़ के लिए नही बल्कि समाज में खुद के सम्मान के लिए ।चाहे वो कितनी भी अमीर हो रुतबे वाली हो वो शरीर से बेशक आज़ाद हो पर मानसिक गुलामी से शायद कभी आज़ाद नहीं होगी क्योंकि उसके दिमाग को पंगु बना दिया गया है जन्म से ही । अपने आस पास नज़र घुमाएं आपको ऐसी अमीर मानसिक अपंग स्त्रियां दिख जाएंगी ।
#राखी
#एकख्यालयूँही