Sunday, April 22, 2018

कैसी विडंबना

पता नही भारत की विडंबना कहूँ या हम सब के नसीब का दोष बलात्कार के विरोध में इतना हिंदू मुस्लिम हो गया कि सब असल मुद्दे को भूलकर मज़हब को लेकर ज्यादा आक्रोशित हो गए ।हिन्दू मुस्लिम को गालियां दी रहे हैं और मुस्लिम हिन्दू को ।एक बात मेरी समझ से परे है कि बलात्कार को भी धार्मिक बना दिया गया है । दोषी कौन है है असल में।
सिस्टम को दोष दे रहे हैं सरकार को भला बुरा कहकर अपनी भड़ास निकाल रहे है । पर अपनी मानसिकता को क्यों नहीं कुरेद रहे हम । उसके अंदर का जो गंद है उसको क्यों नहीं साफ करते । न तो किसी के मां बाप ने परिवार ने ही कोई धर्म किसी को ये संस्कार देता है कि आप बलात्कार करो ।हम जिस समाज में रहते हैं क्या वो हमें ये कहता है कि बच्चों का यौन शोषण करो ।मेरे ख़याल से ऐसा कतई नही है । फिर क्यों हम मज़हब और जात पात के और समाज का रोना रोते है जबकि गन्दगी तो हमारे अपने दिमाग में है ।
हम ख़ुद क्यों नही समझते का कहूँ समझना नही चाहते कि हमारा मानसिक संतुलन बिगड़ रहा है । धर्म कोई भी हो अगर वो आपको एक अच्छा इंसान न बना सके इंसानियत न सीखा सके तो लानत है ऐसे धर्म पर फिर वो धर्म नही बस एक पागलपन है ।
हम बलात्कार के लिए सरकार से जवाब मांग रहे पेर क्या हमने कभी उनसे महंगाई के लिए जवाब मांगा ।?
क्या रोज़गार के अवसर बढ़ाने के लिए हम कभी धरने पर बैठे ?
क्या शिक्षा सुधार के लिये हमने कोई पत्र सरकार को लिखा ?
कितने लोग यातायात में सुधार के लिए सरकार को सवाल पूछते नज़र आये ।
किसने सवाल उठाया कि शहरीकरण के चलते हम तनावपूर्ण वातावरण में क्यों जियें?
  और भी न जाने कितने अनछुए पहलू हैं जिनसे हम ये कहकर मुंह फेर लेते कि इनकी चिंता हम क्यों करें ये सरकार का काम है।
क्यों सारे मज़हब एक होकर इन सारे सवालों के जवाब नही ढूंढते ।आखिर कब तक मज़हब के नाम पर हम सब का शोषण करेंगे ये राजनीतिज्ञ ।
ज़रा सोचिए !!!!!
#बातबेबाक