Tuesday, September 22, 2015

एक पैगाम तेरे नाम

मेरा पैगाम तो तुझ तक पहुंचा होगा
जब ख़त तूने मेरा खोला होगा
आँखों से आंसू तो छलके होंगे
जब आखिरी सलाम मेरा पढ़ा होगा
छोड़ दिया मैंने इंतज़ार करना अब
तुझे अब ये समझ आ गया होगा
रूह में उतर गया था जो इश्क़ तेरा
उसे कतरा कतरा अब ढलना होगा
मैं तो छोड़ चली हूँ राहे जिंदगी में तुझे
अब अकेले ही ये सफ़र तय करना होगा
याद तो आउंगी मैं तुझे हमेशा ही याद रख
पर तेरे आंसुओं के सैलाब को रुकना होगा
पत्थर दिल को तेरे मोम न बना सकी मैं कभी
पर अब पल पल उसे जल के पिघलना होगा
रूह तेरी पुकारेगी मुझे पर मैं सुन न सकुंगी
तेरी आवाज़ को अपना रुख बदलना होगा
तूने जो गिराई हैं बिजलियाँ मुझ पे जरा गौर करना
उनकी तपिश में अब तुझको जलना होगा
मोहब्बत कभी न मिटी है न मिट पायेगी कभी
तुझे मगर मुरझाकर भी खिलना होगा
गुरूर तो टूटेगा एक दिन तेरा ओ साकी
क्योंकि आदमी है तूझे मिटटी में मिलना होगा
उस दिन मेरा ये ख़त पढ़ना निकल कर तू
जब तुझे जिंदगी छोड़ मौत की राह पे चलना होगा
मेरे ख्याल तुझे जीने भी नही देंगे तड़पेगा तू मौत को
जिस अज़ाब से मैं गुजर रही हूँ तुझे भी गुज़रना होगा ।
#राखीशर्मा

Sunday, September 13, 2015

प्यार के ब्यान

कुछ अहसास प्यार के आज बयां हो ही गए
वो तेरी हसीं बाँहों के पल मुझे मिल ही गए
आखिर क्यों रोका था तूने खुद को अब तक ये बता
क्यों कर रखा था इस प्यार को मुझसे जुदा
बेकरारी में भी करार की आज हद नही रही
इस दिल को आज जैसी  प्यार की तालाब नही रही
वो तेरी बाँहों में मिलने वाला सुकून जन्नत से बढ़कर है
तेरा प्यार मेरे लिए इस दुनिया से हटकर है
वो बेचैनियों का आलम अब भी बाहें पसारे है
रह रह कर दिल  मेरा अब भी तुझको पुकारे है
ये कैसी बेकरारी तुम मुझमे छोड़ गए हो
मुझको खुद से कुछ इस कदर जोड़ गए हो
अहसास अब भी वैसा ही है मेरे लबों पे तेरे लबों का
मेरे पास लफ्ज़ ही नही है इनको ब्यान करने का
ये कैसी रुमानियत तुमने मुझमे भर दी है
मेरी दिल की धड़कन भी अपने मुताबिक कर दी है
#राखी

Friday, September 11, 2015

इतना सा अफ़साना

छ लम्हे साथ जो बिताये हमने वो कैद है यादों में
जी थी जिन्दगी मैंने जो वो तेरे साथ जस्बातों में
वो रास्ते का सफ़र जब मैं तुम्हारे साथ थी
चली जब दोनों के दिलों में वो प्यार की बयार थी
नैनो ने नैनो की मौन भाषा बिन कहे ही समझ ली थी
कुछ इज़हार और इकरार की बातें हम दोनों ने जो की थी
बेपर्दा इश्क बिना कहे ही आँखों से ब्यान हो गया
मोहब्बत का अफसाना वो उस सफ़र में जवान हो गया
नर्म हाथों का स्पर्श मेरे हाथों पर आज भी वैसा ही है
इतने दिनों बाद भी प्यार का खुमार वैसा ही है
तू तो एक हवा का झोका था जो तूफ़ान बन के आया
मेरी रूह को तूने अपनी रिमझिम प्यार की बारिश से भिगाया
वो फ़साना प्यार का दिल में जिन्दा रहेगा मरते दम तक
जब भी तनहा होती हूँ मैं आवाज तेरी ही सुनती हु दूर तलक
पता है मुझे वो पलछिन अब लौट के फिर न आयेंगे
मेरे नैन शायद तुम्हे कभी देख न पाएंगे
अफसाना ये तेरी मेरी मोहब्बत का किसको सुनाऊ
कैसे मैं अपने इस दुखी दिल को तेरे बिना राहत दिलाऊं
काश के किस्मत वो लम्हे एक बार फिर ले आये
के तू फिर ऐसी ही किसी सफ़र में मुझसे रूबरू हो जाये
राखी शर्मा

Monday, September 7, 2015

एक सच ये भी

वो रोज़ जलाती है खुद को उस आग में
चंद रुपयों के लिए और बुझाती है पेट की आग
आखिर सवाल उसका नही उसके साथ उसके अपनों का भी तो है जिनसे बंधी है वो और न जाने
कब तक इस आग में झुलसेगी वो
क्यों जिस्म को बेचने की सज़ा आखिर उसे मिली
आत्मा को झकझोर के रख देता है ये सवाल
रोज़ नोची जाती है उसकी अस्मिता और वो
खुद को फिर अगले दिन के लिए संभाल लेती है
ये समाज कहता है की ये उनका पेशा है और शायद ये सच भी है पर ये मज़बूरी की दास्तान भी तो है
क्या कीमत नही देता ये पुरुष और गुनहगार वो अकेली
क्या खरीदार नही जानता की ये नैतिकता नही क्या
वो कुसूरवार नही क्या वो नही हर रहा उसके सपने
हाँ वो वैश्या है और ये ही उसका धंधा है पर क्या
तूने ये सोचा है कभी हे पुरुष की तू कौन है खरीदार
या व्याभिचारी ???????

#राखीशर्मा

Wednesday, July 29, 2015

एक बात

जिस्म को छु के तो कोई भी प्यार जता लेता है
कोई रूह से प्यार जताए तो क्या बात है
देखते तो हैं सब जिस्म की शोखियां
किसी को रूह से मोहब्बत हो जाये तो क्या बात है
औरत के जिस्म को बेपर्दा करके तो की मोहब्बत
उसके जिस्म को ढांप के हो जाये मोहब्बत तो क्या बात है
हवस अपनी आँखों से मिटाकर कभी तो महसूस करो
स्नेह का दिया जलाओ अपनी रूह में तो क्या बात है
उसकी सिसकियाँ तुमने सुनी नही कभी उसके आँखों से आंसूं गिरने का कारण न बनो तो क्या बात है
अपनी हैवानियत से हमेशा उसे डरते हो तुम कभी अपनी इंसानियत उसे दिखाओ तो क्या बात है
वैसे तो छु जाते हो उसे तुम पर दिल की भावनाओं को भी उसकी छु जाओ तो क्या बात है
वो तो हमेशा ही तुम्हारे प्यार में मारने को तैयार रहती है तुम उसे जिन्दा रहने का अहसास दिलाओ तो क्या बात है
कहकर तो देखो ये जिंदगी उसकी है और किसी की नही न तुम्हे वो पलकों पे बिठा ले तो क्या बात है ।
राखी शर्मा 

Saturday, July 18, 2015

बदलाव तुझसे इश्क़ के बाद

परिभाषा ही बदल गयी है इश्क़ की मेरे ज़हन में जबसे तुझे इश्क़ किया है मैंने
इस कदर बेजार होकर बिखरी हूँ मैं की खुद को तार तार किया है मैंने
न जाने कौन सी दुश्मनी थी तेरी मुझे जो इस कदर ठुकरा के चल दिए
रूह और मन  का श्रृंगार भी किया है  अहसासों से तेरी  खातिर मैंने
खुद को समझा लिया है मैंने बस ये आँखे नहीं मानती है मेरी
तेरे सपने जिन्होंने देखे थे उनको आंसुओं की माला पिरोते देखा है मैंने
दिल रह रह के सोचता है तेरी जानिब पूछता है तुझ बिन क्यों जीना स्वीकार किया है मैंने
पर मेरे पास सवालों का कोई जवाब नही अब तो बस चुपी को ही अंगीकार किया है मैंने
मेरी उलझन कोई न जाने न कोई समझे मेरी पीर अपने ज़ख्मो के लहू को खुद ही पिया है मैंने
छले मेरी रूह पे जो है नमक उनपे छिड़क के उस दुःख को भी सहन किया है मैंने
अपनी जिंदगी से तुझे निकाल दिया  और जहर ये कड़वा  भी पिया है मैंने
न मैं जिन्दा न मैं मुर्दा अपने इस हाल का जिम्मेदार तुझे ही बना दिया है मैंने
दुआ और बदुआ कुछ नही निकलती है तेरे लिए दिल का ये बोझ हटा दिया है मैंने
राखी शर्मा

बदलाव तुझसे इश्क़ के बाद

परिभाषा ही बदल गयी है इश्क़ की मेरे ज़हन में जबसे तुझे इश्क़ किया है मैंने
इस कदर बेजार होकर बिखरी हूँ मैं की खुद को तार तार किया है मैंने
न जाने कौन सी दुश्मनी थी तेरी मुझे जो इस कदर ठुकरा के चल दिए
रूह और मन  का श्रृंगार भी किया है  अहसासों से तेरी  खातिर मैंने
खुद को समझा लिया है मैंने बस ये आँखे नहीं मानती है मेरी
तेरे सपने जिन्होंने देखे थे उनको आंसुओं की माला पिरोते देखा है मैंने
दिल रह रह के सोचता है तेरी जानिब पूछता है तुझ बिन क्यों जीना स्वीकार किया है मैंने
पर मेरे पास सवालों का कोई जवाब नही अब तो बस चुपी को ही अंगीकार किया है मैंने
मेरी उलझन कोई न जाने न कोई समझे मेरी पीर अपने ज़ख्मो के लहू को खुद ही पिया है मैंने
छले मेरी रूह पे जो है नमक उनपे छिड़क के उस दुःख को भी सहन किया है मैंने
अपनी जिंदगी से तुझे निकाल दिया  और जहर ये कड़वा  भी पिया है मैंने
न मैं जिन्दा न मैं मुर्दा अपने इस हाल का जिम्मेदार तुझे ही बना दिया है मैंने
दुआ और बदुआ कुछ नही निकलती है तेरे लिए दिल का ये बोझ हटा दिया है मैंने
राखी शर्मा

Tuesday, July 7, 2015

कैसे जियुं तुझ बिन

सुन ले दिलबर जानिए क्यों जुदा हम हुए ...2

रफ्ता रफ्ता मैं चलूँ मर मर के जियुं
मोहब्बत याद आये वो
कैसे ये मदहोशी है चुप सी ख़ामोशी है मोहब्बत याद आये जो
वो जो तू मिला ये दिल खिला जाने क्यों इश्क़ हो हो गया
क्यों लाडे ये नैन खोया दिल का चैन
मुझमे तू शामिल हो गया
फिर क्यों जुदा हम हुए

प्यास है दिल मेरा प्यासी है रूह आके दे जा तू करार
जाने कैसे तुझसे मिलूं क्या क्या मैं जातां करूँ
मिल जा बस एक बार
ये जो आग है बुझती नही बदल सा इस पे बरस जा तू
क्यों रूह मेरी पुकारे तुझे चला आ कहीं से तू
तू आजा रे आ भी जा

आँखों में नमी सी है धड़कन थमी सी है
तेरी बातें याद आएं वो
तेरी आँखों की मस्ती तेरी शरारत मुझको
फिर छेड़ जाये तो
वो तेरे लब हंसी कातिल नजर वो अंगड़ाइयां वो दीवानापन
तेरी प्यार की मदहोशियाँ उफ्फ मेरी खामोशियाँ
मुझको फिर से जाता जा तू

ज़हर मेरे हाथ है मौत भी पास है तुझ बिन जिया जाये न
इल्तज़ा उस रब से है मरना मैं चाहूँ फिर भी क्यों मुझको मौत आये न
मैं न चाहूँ वो जिंदगी जिसमे मेरा यार नहीं
कैसे जियुं अब इस जहाँ में जिसमे मेरा प्यार नही
अब तो मुझको बुला ले तू ...
रफ्ता रफ्ता मैं चलूँ मर मर के जियूँ...

रानी लक्षमी बाई

रानी लक्ष्मी बाई को नमन
हे लक्ष्मी तुम अवतार बन के आई
माँ दुर्गा सा रूप लिए दुष्टो का संहार करने आई
तुमने इस धरा पर जनम जो लिया था
इसको अपने बलिदान से पावन किया था
तुमने दिखा दिया की नारी नहीं निर्बल
तुमने जाता दिया बन जाती है वो सबल
तुमने मातृभूमि के लिए जो देशभक्ति दिखाई
नमन है तुमको मेरा ग्वालियर की माई
तुमने अपना जीवन सार्थक बनाया
जो करने  आई थी वो करके दिखाया
आज की नारी को सिखाया की ज्वाला बन जा
अपने सारे दुखो को पल में राख कर जा
नर की छत्र छाया की तू मोहताज नहीं है
पराजीत कर सके जो तुझे किसी मे वो आग नहीं है
नमन है तुझको  ओ झांसी की रानी
बन गयी जो तू देश के लिए मर्दानी
तेरा ये सदा उपकार हम पे रहेगा
याद तुझे ये भारत हल पल करेगा
जिवंत है तू अब हमारे दिलों में
बस गयी है रानी तू सभी के स्वरों में
राखी शर्मा

Sunday, July 5, 2015

क्यों है तुझसे मोहब्बत

मुझे मोहब्बत तेरे मस्तक से नहीं उसकी चमक से है
मुझे मोहब्बत तेरी आँखों से नही तेरी कातिल नजर से है
नाक जिससे तू सांस लेती है मोहब्बत सांसो की खुशबु से है।
वो तेरे गुलाबी होंठ मोहब्बत मुझे उनमें बसने वाले रास से है
तेरी सूरत से मोहब्बत नही उस पर आने वाली दमक से है
वो तेरी सुराईदार गर्दन मोहब्बत उसमे पड़े तेरे हार से है
तेरे कानो में पड़ी बालियां मोहब्बत उनकी झंकार से है
तेरे हाथों पड़ी चूड़ियाँ मोहब्बत उनकी खनखनाहट से है
वो टी पायल है तेरे पैरों की मोहब्बत उनकी छमछामाहट से है
जब तू चलती गई बलखा के तो मोहब्बत तेरी चाल से है
दीवाना बना दिया है कसम से मोहब्बत तुझ बेमिसाल से है
न मुझे तेरे किरदार ऐ कुछ मतलब है नई तेरी ज़ात से ओ हसीना
मोहब्बत तुझसे जुडी हर छोटी बड़ी आम और ख़ास बात से है ।
मुझे मोहब्बत तेरे दिल से और तेरी आत्मा में बसने वाले हर जस्बात से है
राखी शर्मा

Wednesday, July 1, 2015

पहरे क्यों

आखिर किसने पहरे लगा दिए है तुम पर जो याद भी नही करते 
इन बारिशों के मौसम में भी तुम भीगने की फ़रियाद नही करते
क्यों इस कदर बेरुखी का आलम हो गया है मेरी ही तरफ तुम्हारा
आखिर अब मुझसे वो पहले वाली प्यार की गुफ्तगू नही करते
पता है उलझनों में तो हो तुम पर मेरी जुल्फों को अब संवारा नही करते
वो पहले सी बात नही रही क्योंकि बरबस ही तुम मुझे निहारा नही करते
आँखों में वो पहले सी कशिश कहीं नही है अब मुझे तुम जान कह के पुकारा नही करते
कजरारी आँखों को दरिया बताना अब दरियाओं में डूबना गंवारा नही करते
पहले सा कुछ नही रहा अब और तुम ऐसे तो नीरस जिंदगी गुज़ारा नही करते
प्यार खत्म हो गया है हमारे बीच फिर भी तुम मेरे जीवन से किनारा नही करते
बड़ी ही तकलीफ देह है तेरी ख़ामोशी जा हम भी तेरे जैसे संगदिल के लिए जीवन बेज़ार नही करते
हम भी कहते है आज सबको की हम तुझसे भी प्यार नही करते प्यार नही करते............
राखी शर्मा

सिलसिले

खत्म कर दिए हैं मैंने मोहब्बत के सभी सिलसिले तुझसे
तेरी ज़ात से मुझे मुक्म्मल नफरत सी हो गयी है
कैसा तेरा किरदार जो मोहब्बत भी न सम्हाली मेरी
और किसी और चेहरे पे तू निसार हो गया है
कैसे तुझसे वफायें निभाऊं इतनी हिम्मत कहाँ से लाऊँ
मुश्किल बड़ा अब ये इम्तिहान हो गया है
मेरी ही गलतियां है जो तुझसे इश्क़ की डोर बांधी मैंने
कैसे ये गलतियों का अम्बार हो गया है
ख़त्म कैसे करू बता अब ये मोहब्बत अपनी रूह से मैं
के तुझसे रूहानी प्यार हो गया  है।
राखी शर्मा

तुम्हारी आँखे

दिलकश हैं तुम्हारी आँखे बहुत जब भीं देखा इनमे डूब ही गया
कुछ तो रहम खाओ इस दीवाने पे मेरा तो सब कुछ तुमने लूट ही लिया
आँखों से मचाकर कत्लेआम पूछती हो मुझसे क्या खता हो गयी
दिल में इस कदर उतर गयी की लगता है जिंदगी तुम बिन सजा हो गयी
काजल जो लगाया तुमने चिलमन और ज्यादा सुर्ख और रंगीन हो गयी
तुम्हारी आँखे तो मेरे लिए जन्नत सी हसीन और तुम मेरे लिए हूर हो गयी
मेरी इल्तज़ा सुनती जाना ओ हसीना के तुम्हारी आँखे दिल में बस गयी हैं

वो बेवफा

मेरी बात सुनते ही गज़ब की ख़ामोशी छा गई उनमे
मैंने तो बस ये पुछा कि किसी से वफ़ा की है क्या कभी??????
बहुत देर के बाद सोच के बोले कभी किसी से इतनी मोहब्बत ही नही की मैंने
तुम तो वफ़ा की बात करती हो मुझे तो ये तक याद नही की मोहब्बत कब की
सुनकर उनकी ये बातें मेरी आँखों में आंसू बाह निकले और मैंने कहा
जो मैंने तुमसे मोहब्बत की उसका क्या मैं तो खुद गुनहगार बन गयी
तुमसे ये सवाल करके अपनी नज़रों में ही खुद को ही गिरा लिया
वो फिर बोले मोहब्बत होती तुम्हे तो ये सवाल ही क्यों करती तुम
कुछ सवालों के जवाब मेरी आँखों में ढूँढो तो खुद ही मिल जाएंगे
कैसी मोहब्बत है ये जो इलज़ाम दिलबर पे सरेआम लगाती है
और फिर मुझे दोषी बता के अपनी आँख से आंसू गिराती हो
दिल में झांक के देखो तो तुम्हे पता चले की कौन गुनाहगार है
मैं तो बेबस सी बस उसे देखती ही रह गयी और ये ही कहा कि मेरे दिल की गहराई तू क्या जान पायेगा जो मुझे प्यार ही न करे
जिस आग में जली हूँ मैं अब तक तुझे तो उसकी आंच भी नही लगी
जा आज़ाद है तू मेरे हर सवाल से हर इलज़ाम से और बेवफा के दाग से

राखी शर्मा

तुझसे मोहब्बत

है।
वो तेरे गुलाबी होंठ मोहब्बत मुझे उनमें बसने वाले रास से है
तेरी सूरत से मोहब्बत नही उस पर आने वाली दमक से है
वो तेरी सुराईदार गर्दन मोहब्बत उसमे पड़े तेरे हार से है
तेरे कानो में पड़ी बालियां मोहब्बत उनकी झंकार से है
तेरे हाथों पड़ी चूड़ियाँ मोहब्बत उनकी खनखनाहट से है
वो टी पायल है तेरे पैरों की मोहब्बत उनकी छमछामाहट से है
जब तू चलती गई बलखा के तो मोहब्बत तेरी चाल से है
दीवाना बना दिया है कसम से मोहब्बत तुझ बेमिसाल से है
न मुझे तेरे किरदार ऐ कुछ मतलब है नई तेरी ज़ात से ओ हसीना
मोहब्बत तुझसे जुडी हर छोटी बड़ी आम और ख़ास बात से है ।
मुझे मोहब्बत तेरे दिल से और तेरी आत्मा में बसने वाले हर जस्बात से है
राखी शर्मा

Friday, June 12, 2015

काश

काश के किस्मत लिखना मेरे बस में होता तो
मैं अपने हाथ से तेरे नाम की लकीर मिटा देती
काश के समझ पता तू मेरे जज़्बातों को कभी
कसम से मैं तुझ पे अपनी जान तक लूटा देती
अगर गुनाह सिर्फ मेरा होता ये मोहब्बत तो
बस मैं अपने आप को ही इसकी सजा देती
खुद को तनहा छोड़ना मेरे बस में नही अब
मैं कैसे तेरी मोहब्बत को दिल से भुला देती
तुझे शौक है तो बन जा बेवफा ओ मेरे हबीब
मैं कैसे खुद को दुनिया से बेवफा कहलवा देती
नुमाइश नहीं होती रूहानी प्यार की हमदम
फिर कैसे ये राज़ मैं दुनिया को बता देती
जो नम कर गया है दर्द से तू मेरी आँखे
कैसे इसके आंसुओं को मैं इन आँखों में छुपा लेती
फितरत है मेरी किस्मत की शायद दगा देना मुझे
पर मैं कैसे अपना दिल तोड़ के खुद को हँसा लेती
गम न कर तुझसे बहुत दूर चली जाउंगी मैं ये हमनवा
जाना ही था दूर तुझसे तो क्यों तुझे अपना पता देती
खुदा हाफिज है मेरी जान तुझे  तू रहे अमन चैन से
मैं कैसे तेरे पास रह्कर अपने ज़ख्मो पे नमक लगा लेती ।
राखी शर्मा

Monday, June 1, 2015

जिन्दा है क्या मोहब्बत

तेरे ख़तों जो आज भी पढ़कर लगता है की जिन्दा है तेरी मोहब्बत कहीं
आँखों में मेरी पसरी ख़ामोशी को पढ़ कभी तू बसी है तस्वीर इनमे कहीं
लबों का रंग आज भी गुलाबी है मेरा बस्ते हैं इनमे तेरव लबों के अहसास कहीं
दिल में झाँक कर देख मेरे कभी आज भी लगी है तेरी तस्वीर दीवारों पे कहीं
हाथों की मेहंदी बेरंग है मगर लगता है छुपा हुआ इसमें आज भी तेरा नाम कहीं
करती तो हूँ मैं कोशिश तेरी मोहब्बत को मिटाने की पर लिखी है रूह पे ये दास्ताँ कहीं
होती तो हूँ रूबरू मैं रोज़ हज़ारों से लेकिन तुझे देखने की चाहत बसी है मन में कही
कैसे बेवफा हो जाऊं खुद से मैं ऐ हमदम समाई है तेरी गुमनाम  मोहब्बत मुझमे कहीं ।
राखी शर्मा

एक सच

आज मैं ऑफिस देर से आई बॉस ने मुझे खरी खरी सुनाई
होंटों से तो मैं कुछ बोली नही पर अश्रुधारा अपनी रोक न पायी
ये देख बॉस मेरे घबरा गए और डर के मारे सकपका गए
मैं तो रो ही रही थी ये देख के उन्हें पसीने और आ गए
लेट तो मैं कई दफा होती थी पर ऐसा कभी मंजर नही होता था
उनके सामने इस तरह मेरा रवैया कभी नहीं होता था
आखिर मैंने अपनी सिली हुई जुबां खोली
दबी हुई आवाज़ में मैं उनसे रुंधे गले से बोली
ममता आज शर्मसार कचरे के डिब्बे में फैक दी गयी है
आज फिर औरत की ममता शर्मसार हो गयी है
निकली तो थी घर से मैं समय पर रास्ते में भीड़ ने मुझे रोका
दिल को जो कचोट दे ऐसा एक मंजर मैंने देखा
एक नवज़ात बच्ची कचरे के डिब्बे में पड़ी थी
उसकी किल्कारिकारियां सबने ही सुनी थी
पर किसी में हिम्मत नही थी जो उसे अपनाये
उस नन्ही जान को लावारिस देख के उदार हो जाये
आखिर मैं एक माँ थी तो उससे कैसे ऐसे छोड़ देती
कैसे उससे तक़दीर के भरोसे मारने को छोड़ देती
मेरी अंदर की औरत ने मुझे आगे बढ़ने न दिया
उस अनजान से बंधी अनदेखी डोर ने मुझे जाने न दिया
उठा लिया गोद में उसे दुलार जो किया शायद समझ
गयी वो भी की किसी ने उसे प्यार तो किया
उसे मैंने कानूनी तौर पर गोद लेने की ठानी
पर मेरे आगे थी मेरे परिवार और नौकरी की परेशानी
अचानक मुझे एक संस्था की याद आई जो
बेसहारा और मजलूम बच्चीयों की करती निगरानी
उसका खर्च वहन करने की मैंने तो ज़िम्मेदारी उठाई
उस बच्ची को फिर वहां भर्ती करा कर आई
मेरी भी मजबूरियां है जो उसे घर नहीं ला पायी
जो मुझसे होगा उसके लिए  लड़ूंगी किस्मत से लड़ाई
इसिलिये मैं लेट हुई अपने ऑफिस  से आज
सर आप किसे देंगे मेरे लेट होने का इलज़ाम
मेरे अंदर की औरत को या उसकी निष्ठुर माँ को ??????????????
राखी शर्मा

क्यों मैं प्यार किया करती थी

मुझे प्यार में रुसवाइयों का दर कभी न था
मैं तो प्यार में तन्हाइयों से डरा करती थी
और वही हुआ जिसका हमे ज्यादा डर था
मैं तो तुमसे बेइंतहा प्यार किया करती थी
छोड़ ही गए मुझे इन रास्तों पर तुम तन्हा
आखिर तुम ही हो वो रकीब मेरे जिस पे
में खुद से ज्यादा विश्वास किया करती थी
आज दिल का वो आँगन सुना हो गया है
जहाँ मैं हरपल तुम्हारा इंतज़ार किया करती थी
जो भी खिले थे प्यार के फूल वो मुरझा गए
जिनसे मैं खुद को गुलज़ार किया करती थी
खोकर तुमको एक बात पूछती हूँ खुद से
क्यों तुम पर वक़्त बर्बाद किया करती थी
काश के वो ज़माना वापस आ जाये फिर से
जब तुम्हारे प्यार में खुद को ज़ार ज़ार किया करती थी
अब लौट के कभी मत आना मेरे रूबरू ओ हमनवा
अब वो मौसम गया जब खुद को तार तार किया करती थी।
राखी शर्मा

Friday, May 29, 2015

जिन्दा है तू मुझमे

तेरे ख़तों जो आज भी पढ़कर लगता है की जिन्दा है तेरी मोहब्बत कहीं
आँखों में मेरी पसरी ख़ामोशी को पढ़ कभी तू बसी है तस्वीर इनमे कहीं
लबों का रंग आज भी गुलाबी है मेरा बस्ते हैं इनमे तेरव लबों के अहसास कहीं
दिल में झाँक कर देख मेरे कभी आज भी लगी है तेरी तस्वीर दीवारों पे कहीं
हाथों की मेहंदी बेरंग है मगर लगता है छुपा हुआ इसमें आज भी तेरा नाम कहीं
करती तो हूँ मैं कोशिश तेरी मोहब्बत को मिटाने की पर लिखी है रूह पे ये दास्ताँ कहीं
होती तो हूँ रूबरू मैं रोज़ हज़ारों से लेकिन तुझे देखने की चाहत बसी है मन में कही
कैसे बेवफा हो जाऊं खुद से मैं ऐ हमदम समाई है तेरी गुमनाम  मोहब्बत मुझमे कहीं ।
राखी शर्मा

Wednesday, May 27, 2015

दिल रोये हमारे

वो मेरे दिल के जख्म देख के रोये
मैं अपने ज़ख्म दिखा के रोई
वो अपने गम बता के रोये औरमैं
अपने गम छुपा के रोई
बरसों पहले वो मुझसे बिछड़ के रोये और
बरसो बाद मैं उनसे रूबरू होकर रोई
ताल्लुक़ बड़ा गहरा है उनसे वो मेरे सीने में तूफ़ान उठा के रोये
और मैं अपने दिल की आग को दबा के रोई
राखी शर्मा

Tuesday, May 19, 2015

मन की बात

पानी तो बरसता है पर उस से मन की प्यास नहीँ बुझती
ठंडी हवांये तो चलती है सर्दियों में पर मेरी तपिश तब भी कम नही होती
खुशबू तो फैलाता है बसंत मगर उसकी खुशबु तेरी खुशबु को मुझसे दूर नही कर पाता
गर्मियों की तपिश से मेरी तपिश का क्या मुकाबला मुझसे विरह मेरा कोई नही छीन पाता
मन में जो खलिश है वो कहीं बढ़कर है उन सब दुखों से जो ये ज़माना मुझे दे जाता
आखिर क्या बात है जो ये ज़माना एकाकी सी मेरी हस्ती का मजाक है बनाता
गुलाम मेरा मन जो जकड़ा है तेरी यादों की जंजीरो में क़ैदी
बनकर
खोकला कर दिया है इसने मुझे अंदर से जंजाल मेरे दिल का निकल क्यों नही जाता
कैफ़ियत की हद है ज़ालिम दूर रहकर भी तू कभी मेरे इस दिल से निकल नही पाता
कागज़ की तरह हुयी हस्ती मेरी जिसपे जो स्याही से एक बार लिखा वो मिट नही पाता
सीना छलनी है मेरी कभी झाँक कर तो देख बाहर से हर ज़ख्म नज़र नही आता
कोई भी मुकाम क्यों न लूँ मैं पर एक तेरी मोहब्बत का मुकाम पाना मेरी हसरत बन जाता
मिट जायेगी क्या रूह मेरी तड़प कर जब तक तेरी यादों का सफर उसकी याद से उतर नही जाता ।
राखी शर्मा

Saturday, May 2, 2015

उसका असर

रूह में मेरी इस तरह उतर गया वो मेरा चाहनेवाला
कि अब तो मेरा फ़क्त ये बदन रह गया है
ले गया अपने साथ मुझे भी वो जो मेरा रहनुमा नहीं था
अब वो ही एकलौता मेरी यादों का हमसफ़र बन गया है
इस बदन  का तो बस खाका रह गया ऐ मेरे मुंतज़िर
मेरी रूह मेरे ख्याल और ख्वाबो में इस तरह घर कर गया है
अब तो जान बाकी रह गयी है मुझमे एक अमानत उसकी
वर्ना वो तो मेरी धड़कनो को भी अपने मुताबिक़ कर गया है।
राखी शर्मा

उसका असर

रूह में मेरी इस तरह उतर गया वो मेरा चाहनेवाला
कि अब तो मेरा फ़क्त ये बदन रह गया है
ले गया अपने साथ मुझे भी वो जो मेरा रहनुमा नहीं था
अब वो ही एकलौता मेरी यादों का हमसफ़र बन गया है
इस बदन  का तो बस खाका रह गया ऐ मेरे मुंतज़िर
मेरी रूह मेरे ख्याल और ख्वाबो में इस तरह घर कर गया है
अब तो जान बाकी रह गयी है मुझमे एक अमानत उसकी
वर्ना वो तो मेरी धड़कनो को भी अपने मुताबिक़ कर गया है।
राखी शर्मा

Thursday, April 30, 2015

मेरा बयान

इश्क हो गया तो उम्मीद खो गयी
तेरे प्यार की मैं मुरीद हो गयी
न इसकी कोई मंज़िल न कोई ठिकाना
मेरी हालत कुछ गंभीर हो गयी
डूबी हूँ जबसे तेरी आँखो के समंदर में
मैं तो जैसे तेरी हीर हो गयी
बंद पिंजरे में पक्षी की तरह तड़पती हूँ
ऐसी मेरी तासीर हो गयी
दीन दुनिया से बेखबर हो तुझमे खोयी हूँ
मेरी तो रातें रंगीन हो गयी
मसला ऐ मोहब्बत इससे बढ़कर क्या होगा
कि मैं तेरे इश्क़ में फ़क़ीर हो गयी
न मेरा कोई मज़हब रहा न ही कोई ज़ात मौला
मैं शायद पाकीज़ा पीर हो गयी
तवज्जो दे ऐ मेरे हमनवा अब तो तू मुझको
के मैं ज़र्रों में ही कहीं विलीन हो गयी ।
राखी शर्मा