Sunday, December 28, 2014

अब मैं लिखना सीख गयी हु


एक बात है जो कहनी है मुझे तुझसे
की तेरी ही तरबियत का असर है ये
जो मैं  कुछ लिखना सीख गयी हूँ
मुझे न तो शब्दों का पता है न उनकी समझ
पर उनको कविता की माला में पिरोना सीख गयी हूँ
कुछ तो तेरी रहमत है मुझ पर कुछ मेरा हुनर है
मैं अहसासों की लडिया बना सीख गयी हूँ
मैं एक अदना सी औरत कैसे किस तरह ये
शब्दों का ये रंगीन जादू करना सीख गयी हूँ
तुझे अहसास नहीं है पर ज़र्रा हूँ मैं इस माटी
और ज़र्रा ज़र्रा जोड़ जोड़ के महल बनाना जान गयी हूँ
करती हूँ बेबाक बातें औरअनकही बातें जाने अनजाने
उन बातों का मतलब क्या है अब  मैं पहचान गयी हूँ
मैं हल्का हो जाता मेरा जब तुझसे बात करूँ मैं
तूने ही मुझसे कहा था कहना तेरा मान गयी हूँ
बस ऐसे ही मुझसे तू यूँही जुडी रहना अब
स्नेह लुटाना माँ यूँही तेरी बाहों में आ जो गयी हूँ ।
राखी शर्मा

Wednesday, December 17, 2014

कैसी हैवानियत

कैसा जिहाद कैसे ज़िहादी इन्होंने तो इंसानियत की सीमा लांघ दी
आज क्यों है पाकिस्तान इतना ग़मगीन इन्होंने ही तो अपने घर इन्हें पनाह दी
हमेशा इसने हौसला ही बढ़ाया है इन आतंकियों का
आज इन पर पड़ी तो इन्होंने अपने आँखे गीली कर दी
भूल गए क्या 26/11 हम कैसे भूलते इनकी जो करतूत थी
संसद पे जो हमला कराया वो भी तो इन्ही की एक भूल थी
वो हम ही हिंदुस्तानी हैं जिनको गम है इनके मासूम के मरने का
नहीं तो इनकी इंसानियत तो चादर ओढ़ कर कहीं दूर जाकर सो रही
अब आँख न खुली इनकी तो लानत है इनपर और दो पनाह इन हैवानो को
तुम्हे तुम्हारे ही देश में मार डालेंगे ये आतंकी तोड़ डालेंगे तुम्हारे मकानों को
अब भी समय है सभल जाओ अब तो इनका साथ न दो इन्हें मिलकर मार गिराओ
अपने पैर की बेवाइ फटी तो हुआ न दर्द हम भी ये दर्द हरसू झेलते हैं
पल अपनों को खोने का दंश क्या होता है हम भी इसी को सोचते हैं
दुखद है ये जी उ होने मासूमों को मार डाला उन्होंने अपनी बुज़दिली का सबूत दे डाला।
राखी शर्मा

Friday, December 12, 2014

आ कहीं खो जाएं

आ मिल के हम दोनों साथ बैठ जाएं
नए ख्वाब कोई जिंदगी से चुन लाएं
एक दूसरे की बाँहों में कुछ यूँ खो जाएं
दुनिया से हम आज बेखबर हो जाएं
तू और में प्यार की धुन कोई गुनगुनाएं
सांसों से साँसे  रूह से रूह मिल जाए
आ मिल के हम प्यार का फूल अपने
इस दिल के चमन में खिलाएं
तू तू न रहे मैं मैं न रहूँ बस
मिलकर हम एक हो जाएं
आ आज प्यार को एक नई रह दिखाएँ
एक दूजे में हम कुछ यूँ खो जाएं
राखी शर्मा

Saturday, November 29, 2014

ये कैसी मोहब्बत


मेरी रूह तक कांप गयी है उससे ओ पत्थर दिल
तेरी बातों के नश्तर मेरे दिल में चुभ गए
बस एक ही मलाल रह गया है मेरे दिल में
कि तू इतना बेदर्द कैसे हो गया है मेरे लिए
तुझे पता है मैंने बेपनाह मोहब्बत की है तुझसे
पर अब तू अगर मेरे पास आके भीख भी मांगेगा न
तो भी मुह फेर लुंगी तुझसे मैं ये याद रखना तू
क्योंकि तुझ जैसे पत्थर दिल के साथ रहकर
मैं भी दरख़्त बन गयी हु और महसूस नहीं होते
मुझे अब कैसे भी मोहब्बत के जज़्बात
ये कैसी मोहब्बत है तेरी जिससे रूबरू हुई
हूँ मैं जिससे अब थी मैं अनजान
राखी शर्मा

Wednesday, November 19, 2014

तेरे प्यार का गीत जिंदगी की बांसुरी पे बजाऊं कैसे


तेरे प्यार का गीत मैं अपनी जिंदगी की बांसुरी पे बजाऊं कैसे
जो प्यार तेरे लिए इस दिल में है वो प्यार होंठो तक लाऊँ कैसे
दिल के सागर में जो लहरे उठ गयी हैं उन्हें किनारे तक ले जाऊं कैसे
हो गयी है तुझसे जो इतनी प्रीत उस प्रीत का फ़र्ज़ निभाऊं कैसे
कुछ रिश्तों का तो नाम ही नहीं होता मैं तेरा मेरा रिश्ता लोगों को बताऊँ कैसे
तेरे साथ जीने की ख्वाइश है तो तुजसे इतनी दूर होकर मर जाऊँ कैसे
हम दोनों कभी मिल पाएं कभी ये जरुरी तो नहीं और मिले बिना तुझसे रह पाऊं कैसे
आखिर ये दिल भी तो नादाँ है ज़िद करता हैअब तू ही बता इसे समझाऊं कैसे
तेरे प्यार की माला को अपने सगरिंगार का गहन मैं बनाऊ कैसे
ये जो ख्वाब देखती हैं मेरी आँखे उन ख्वाबों को अपनी आँखों से मिटाऊं कैसे
दिल के रेगिस्तान में बूंदे बनकर बरसता है तेरा प्यार मैं इसे रोक पाऊँ कैसे
तेरे प्यार की आहट जो दिल पे दस्तक देती है तू बता उससे अपना ध्यान हटाउ कैसे
जिन मुश्किल हो गया है मेरा तेरे बिन तू ही बोल तुझ बिन मैं जी पाऊं कैसे

Friday, November 7, 2014

रूहानी प्यार

तेरे साथ जब से रूहानी प्यार के अहसास से गुजरी हु
सच कहूँ तुझे देखे बिना भी अब मेरा वक़्त कट जाता है
तुझसे मिलने की चाहत भी नहीं होती अब तो दिल में
तेरी यादों में ही मुझे सच्चा और गहरा सकूं आ जाता है
तुझसे मिलने की तलब अब नहीं होती है रोजाना मुझे
करार तेरे साथ गुज़रे लम्हों से ही मिल जाता है मुझे
वाजिब है शायद मुक्कम्मल मेरी मोहब्बत हो गयी है अब
क्युकी तेरे साथ होने का अहसास हर पल हो जाता है मुझे
तू दूर होकर भी मेरी रगों में समाया है लहू बनकर
तेरा मुझमे बहना हर वक़्त इस तरह भाता है मुझेमैं तो पूरी तरह से तेरे रंग में रंग के रंगीन हो गयी हु अब
बस तेरा टूट के चाहना अब याद आता है मुझे
मोहब्बत की इससे ज्यादा क्या इन्तेहाँ होगी अब
की तेरा मुझमे होने का अहसास रूमानी कर जाता है मुझे।
राखी शर्मा

Monday, October 13, 2014

काश अगले जनम में वो मेरे पापा माँ बन जाएँ

काश के ये रिश्ते इतने मजबूत हो जाएँ
के अगले जनम में भी हम आप से रिश्ता बनाएं
अगर वो मेरे पापा बन जाए और वो मेरी माँ बन जाये
हाय कितनी हसीं होगी जिन्दगी मेरी जब दोनों मुझे अपने बाँहों के झूले में झुलाये
और पापा बनके मुझे रात को लोरी गा के सुलाए
मम्मी को  मैं करू तंग और पापा मुझे उसके गुस्से से बचाए
वो आलम इतना सुंदर हो जब दोनों मिलकर मेरा बर्थडे मनाये
जब मुझे बुखार हो तो पापा मुझे प्यार से खाना  खिलाये
है कमाल हो जब दोनों मुझ पर अपना प्यार लुटाये
हो जाये क़यामत जब दोनों एक साथ मुझे पे गुस्सा दिखाए
काश कभी हिम साथ साथ घुमने  जाएँ और मुझे दोनों अपनी गोद में बिठाकर फोटो खिचाये
माँ को हर वक़्त तंग करू और उन शरारतों में पापा मेरा साथ निभाएं
पापा से करू मैं ढेर सारी बातें और रात को उनकी गोद में सर रख के सो जाऊं
जब मां के सर में दर्द हो तो अपने नन्हे हाथों से उनका सर मैं दबाऊँ
पापा जब मेरे ऑफिस से आये तो पानी का गिलास ले के दौड़ के जाऊ
और पैर फिसल जाये मेरा और मैं फर्श पे गिर जाऊं
पापा  प्यास भूल मुझे गोद  में उठा के साइन से लगा ले और मैं धीरे धीरे मुस्कुराऊ
माँ को चिंता हो जाये और फिर झूठा गुस्सा दिखाए मैं उनके आंसू फिर भी देख पाऊ
पापा माँ के साथ बैठ के अपने नन्हे से घर को मैं सजाऊं
हर त्यौहार पर पापा से नए कपडे लाने की जिद लगाऊ
धीरे धीरे उनकी नन्हो पारी से जब मैं किसी की रानी बन जाऊ
मेरी शादी हो और दोनों मुझे विदा करने से पहले आंसू बहाएं
और मैं बेचारी इतनी दुखी हो की उनके आमने मैं रो भी न पाऊं
दोनों स्नेह मैं अपने दमन में समेटकर अपने पिया के घर चली जाऊ
और पीछे अपने उनका दिल लगाने को अपनी यादें छोड़ जाऊ
हाय काश वक़्त ये सारे मंजर  मुझे दिखाए
इन दोनों को अगले जनम में मेरे माँ और पापा बनाये। राखी शर्मा

Thursday, October 2, 2014

नारी

नारी मन की वेदनाओं को छिपा के रखती
नारी सब दुखो को आश्रुओं में बहा देती
बस ये ही कमजोरी बन जाते इसके
ये हर नासूर को बी सह जाती

अंतर वेदनाओं को इसकी कोई समझ न पाया
सबने इसके कोमल हृदय को घात लगाया
क्या रिश्तेदार क्या इसके अपने सबने
ही तोड़े इसके सुनहरे कोंमल सपने

क्यों आखिर इसको समाज में हीन समझा जाता
क्यूँ इसके नारी होने को कोस जाता
आखिर कौन से अपराध का ये दंड पाती
क्यों हे हमेशा से ये मर्दों के हाथो कुचली जाती

एक नारी का मन कभी खोलकर देखो तुम
कितनी ज्वाला भरी पड़ी है उसके अंतस मे
कितने भाव और संवेदनाएं समेटे है वो खुद में
एक नीरीह जीव बनी मूक बनी रोती है एकाकी में

अगर कर सको तो नारी का सम्मान करो
काम ये  भी तुम महान करो
उसके दिल को कभी प्यार से भर दो
उसकी भी कभी कुछ आशाएं पूरी कर दो

मत कुम्हलाने दो एक फूल है नारी
जो बस छूने से चोट खाए इतनी कोमल है नारी
कर दो इसको आज़ाद हर दुःख से तुम
क्युकी तुम्हारी ही अर्धांगिनी है ये नारी
राखी

नारी

नारी मन की वेदनाओं को छिपा के रखती
नारी सब दुखो को आश्रुओं में बहा देती
बस ये ही कमजोरी बन जाते इसके
ये हर नासूर को बी सह जाती

अंतर वेदनाओं को इसकी कोई समझ न पाया
सबने इसके कोमल हृदय को घात लगाया
क्या रिश्तेदार क्या इसके अपने सबने
ही तोड़े इसके सुनहरे कोंमल सपने

क्यों आखिर इसको समाज में हीन समझा जाता
क्यूँ इसके नारी होने को कोस जाता
आखिर कौन से अपराध का ये दंड पाती
क्यों हे हमेशा से ये मर्दों के हाथो कुचली जाती

एक नारी का मन कभी खोलकर देखो तुम
कितनी ज्वाला भरी पड़ी है उसके अंतस मे
कितने भाव और संवेदनाएं समेटे है वो खुद में
एक नीरीह जीव बनी मूक बनी रोती है एकाकी में

अगर कर सको तो नारी का सम्मान करो
काम ये  भी तुम महान करो
उसके दिल को कभी प्यार से भर दो
उसकी भी कभी कुछ आशाएं पूरी कर दो

मत कुम्हलाने दो एक फूल है नारी
जो बस छूने से चोट खाए इतनी कोमल है नारी
कर दो इसको आज़ाद हर दुःख से तुम
क्युकी तुम्हारी ही अर्धांगिनी है ये नारी
राखी

Monday, September 29, 2014

तुमसे बिछड़ने के बाद

तुमसे बिछड़ने  के बाद

क्या कहु क्या हाल हुआ जीना मेरा मुहाल हुआ
तुमसे बिछड़ने के बाद मेरा कितना बुरा हाल हुआ
जिन्दगी में एक कमी सी रह गयी
आँखों में नमी सी रह गयी
मेरी किस्मत और मेरे मन में भी एक बवाल हुआ
तुमसे बिछड़ के मेरा कैसा हाल हुआ

दिन और रात का पता नहीं मुझे
अब तो हरसू हर पल तेरा ख्याल है
बस एक बात खटकती है दिल में
की आखिर ऐसा क्यों मेरे साथ हुआ
कौन सी कसम तोड़ी मैंने जो इस तरह
रहम न मेरे साथ हुआ
राखी शर्मा

Monday, September 22, 2014

जो तुम आ जाते एक बार

जो तुम आ जाते एक बार

जो तुम आ जाते एक बार
करती मैं तुमसे बाते हज़ार
चले गए मुझे यूँ अकेला छोड़ के
मुझसे यूँ मुंह मोड़ के
मुझे करना नहीं था तुम पे ऐतबार

ये सफर बहुत ही मुश्किल है
तनहा तनहा यूँ ही काटना
बहुत ही मुश्किल है मेरा
जीवन तुम्हारे बिन ढालना
मेरा तो जीना ही है अब बेकार

काश के ये मोहब्बत मैंने तुमसे
यूँ बेहद  तो न की होती
काश के मेरे बाग़ ऐ दिल ने
तेरे लिए यूँ आहें न भरी होती
जाने क्यों कर बैठी थी तुमसे मैं प्यार

हाथो की मेहन्दी को निहार जाओ
अपनी बातों का कोलाहल सुना जाओ
मेरी सुरमई आँखों में झांक तो लो
मेरी बात एक बार सुन तो लो
दिखा जाओ अपनी भी मोहिनी सूरत एक बार

खैर अपने जाने की वजह तो बता जाओ
एक बार ये ही बताने वापस आ जाओ
क्यों तुम्हे मेरी सदा सुने नहीं देती
क्यूँ मेरी ये तड़प दिखाई नहीं देती
आ जाओ कर लो फिर से आँखे चार
राखी शर्मा

Sunday, September 21, 2014

ख्वाबो में

आखिर क्यूँ तुम मेरे ख्वाबो में आती हो
क्यों तुम न होकर भी मुझे अपना अहसास दिलाती हो
क्या रिश्ता है मेरा तुमसे जो तुममानस पटल से लिपट जाती हो
बंद आँखों में भी तुम्हे देख केर मैं खूब रोती हूँ
तुम्हारे नेह के आंसुओं से अपनी पलके भिगोती हूँ
तुम्हारा वो कोमल स्पर्श पाने को मैं मचलती हूँ
क्यों ख़्वाबों में भी मैं तुम्हारा प्रेम पाने को तरसती हु
आखिर क्यों मैं तुमसे इतना प्यार करती हूँ
और नसीब में नहीं तुम तो क्यों मैं तुम्हारे लिए आहें भरती हूँ
शामिल मेरी जिन्दगी में तुम नहीं हो
पर ख्वाबों में हमेशा तुम्हारी  ही दुनिया बस्ती है
काश ये ख़्वाबों की बातें सच हो जाए
और मुझे वापस उस खुद से मेरी बेटी मिल जाए
राखी शर्मा

Saturday, September 20, 2014

मैं कौन हूँ

तू  ही बता कौन हु मैं
तेरे प्यार की बारिश की प्यास में
तपती  रेत हु मैं
तुझेचाँद समझकर हर पल निहारती
वो चकोर हु मैं
तू स्वाति नक्षत्र की बूंद है और तेरी प्यास लिए हुए वो चातक हु मैं
तेरे चहरे को देख कर जो तृप्त हो जाए
वो प्यास हु मैं
तेरे रोम रोम में बसने वाला अहसास हु मैं
तेरे दिल को जो आशना समझती है वो राहगीर हु मैं
तेरे प्यार को अपना अधिकार समझने वाली वो स्त्री हु मैं
तुझपे अपना अधिकार ज़माने वाली प्रेयसी हु मैं
सब कुछ छोड़ कर तुझसे श्रिंगार करने वाली प्रियतमा हु मै
इस जनम में तेरे  प्यार को तरसने वाली तेरी अधूरी कहानी हु मैं
रह रह कर जो तेरी आँख से बरसता है वो अश्को की रवानी हु मैं
तेरे दिल की धडकनों की रफ़्तार हु मैं
और जिसे तू कभी न भूल पायेगा वो तेरा प्यार हु मैं
राखी शर्मा

क्यूँ है

वक़्त बहुत हो गया तुझसे मिले पर इन आँखों में तेरी तस्वीर क्यों है
तोड़ दिया जिसने दिल मेरा और यकीं मोहबत से वो आज भी प्यार के काबिल क्यों है
जिसकी यादो को चुन चुन के जीवनसे निकाल दिया मैंने
वो फिर भी मेरी जिन्दगी में शामिल क्यों है
उसकी चाहत रास न आई फिर भी मेरे दिल पर उसका असर क्यों है
ख़तम हो गया है जो मेल उस से पर आज भी जीवंत उसका प्यार मुझमे क्यों है
वो है भी नहीं मेरे आस पास पर मेरी रगों में दौड़ता उसका इश्क क्यों है
हर सवाल का जवाब है मेरे पास पर उसके सवाल पर मेरी जुबान चुप क्यों है
रखा नहीं उस से कोई रिश्ता मैंने पर उसकी याद में डूबा ये दिल क्यों है
बर्बाद कर गया वो मुझे इस क़दर पर फिर भी उस पर ये रहम क्यों है
क़ैद कर दिया मुझे उसे अपनी यादो में पर इस कदर टूट कर इश्क क्यों है
हर रोज जलती हूँ कतरा कतरा उसकी याद में
आज भी उसकी यादों का मुझपे हक क्यूँ है।
राखी

Thursday, September 18, 2014

ऐ चाँद तुम तनहा क्यों रहते हो

ऐ चाँद तुम क्यों तनहा रहते हो
क्या तुम भी मेरी तरह बेचैन रहते हो
क्या तुम्हे भी अपने दिलदार के आने की आस है
क्या मेरी तरह ही तुम्हारी इन आँखों में उसके लिए प्यास है
क्या तुम भी उसके लिए पल मरते हो
क्या तुम भी मेरी तरह उसके दीदार को तरसते हो
क्या तुमने भी उसके इंतज़ार में पलके बिछायी हैं
क्या तुमने भी उसके लिए अश्को की झड़ी लगाई है
क्या तुम भी विराग वेदना में पल पल जलते हो
क्या तुम भी अपने लिए उसकी चाह करते हो
ऐ चाँद तुमने भी क्या हर पल उसको चाहा है
क्या मेरी तरह तुमने उसे अपने दिल और रूह में बसाया है
क्या तुम भी होके बेकरार उसकी राह तकत हो
क्या मेरी तरह तुम भी अपनी रूह को उसकी याद में नीलाम करते हो
ऐ चाँद तुम इतने तनहा क्यों रहते हो क्या मेरी तरह तुम भी दिलबर से मिलने को बेचैन रहते हो।
राखी शर्मा

Wednesday, September 17, 2014

रैनबसेरा

तेरा प्यार  एक रैन बसेरा ही तो है
जिसकी कसक खीच लाती है मुझे तेरे पास
और मैं बिन डोर खिची चली आती हु कुछ बल बिताने
तेरी बाँहों के उस रैनबसेरे में जो मुझे
पता है मेरा नहीं
पर फिर भी जो सुकून उन कुछ पलों में मिलता है
वो कहीं और कहाँ वो तो कहीं भी नहीं है
जिन्दगी के हसीं पल हैं गुजरते हैं तेरे साथ मेरे
जबकि मुझको भी ये पता है ये सब छण भंगुर है
पर फिर भी मुझे उन लम्हों को जीने की तलब है
और ये तलब तब तक रहेगी जब के मुझमे जान है
है तो तेरा प्यार रैनबसेरा पर इसमें ही मेरा जीवन है
और मैं कल्पना मात्र से पुलकित हो जाती हूँ
जब भी वहां रुकने की बात होती है
बस खुद से ये ही इल्तजा मेरी
कि इसका साया यूँ ही बना रहे।
राखी शर्मा

Tuesday, September 16, 2014

एक अजनबी

एक अजनबी से मेरी यूँही मुलाकात हो गयी
जिन्दगी के सफ़र में मैं उसके साथ हो गयी
मेरा हर दुःख मे मेरे हर सुख में शामिल है वो
मेरे हर  दिल के बाग़ का माली है वो
वो जबसे मिला है खुद को भूल गयी हूँ
उसकी सुरमई आँखों में डूब गयी हूँ मैं
वो हर लम्हा मेरे साथ साए की तरह रहता है
तुम्हे छोड़कर नहीं जाऊंगा हर पल मुझसे ये कहता है
ये बंधन उससे न जाने मेरा कैसा है
जो किसी को समझ न आये शायद ऐसा है
वो अजनबी दोस्त जब से मिला है जिंदगी खिल गयी
मेरे खवाबों को उसके अहसासों के पंखों से उड़ान मिल गयी
जाने कैसा रिश्ता जुड़ गया है उससे मेरा
पल की खबर उसकी रखने को बेचैन रहता मन मेरा
न जाने ये कैसे अहसास मुझे में जागने लगे हैं
मुझे हर घडी उसी के ख्याल अब सताने लगे है
अजनबी होकर भी वो मुझे अपना सा लगता है
उससे  रूबरू मिलना ही अब मेरे जीवन का सपना है
राखी शर्मा

Friday, September 12, 2014

अफसाना तेरा मेरा

अफसाना मेरी जिन्दगी का बस इतना सा है
तुझसे मिलना मुझसे बस एक सपना सा है
कुछ लम्हे साथ जो बिताये हमने वो कैद है यादों में
जी थी जिन्दगी मैंने जो वो तेरे साथ जस्बातों में
वो रास्ते का सफ़र जब मैं तुम्हारे साथ थी
चली जब दोनों के दिलों में वो प्यार की बयार थी
नैनो ने नैनो की मौन भाषा बिन कहे ही समझ ली थी
कुछ इज़हार और इकरार की बातें हम दोनों ने जो की थी
बेपर्दा इश्क बिना कहे ही आँखों से ब्यान हो गया
मोहब्बत का अफसाना वो उस सफ़र में जवान हो गया
नर्म हाथों का स्पर्श मेरे हाथों पर आज भी वैसा ही है
इतने दिनों बाद भी प्यार का खुमार वैसा ही है
तू तो एक हवा का झोका था जो तूफ़ान बन के आया
मेरी रूह को तूने अपनी रिमझिम प्यार की बारिश से भिगाया
वो फ़साना प्यार का दिल में जिन्दा रहेगा मरते दम तक
जब भी तनहा होती हूँ मैं आवाज तेरी ही सुनती हु दूर तलक
पता है मुझे वो पलछिन अब लौट के फिर न आयेंगे
मेरे नैन शायद तुम्हे कभी देख न पाएंगे
अफसाना ये तेरी मेरी मोहब्बत का किसको सुनाऊ
कैसे मैं अपने इस दुखी दिल को तेरे बिना राहत दिलाऊं
काश के किस्मत वो लम्हे एक बार फिर ले आये
के तू फिर ऐसी ही किसी सफ़र में मुझसे रूबरू हो जाये
राखी शर्मा

Wednesday, September 10, 2014

फिर कब मुझसे बात करोगे

पहली नजर में तुम्हे पहचान गयी मैं
अचानक तुम्हे देखा तो सहम गयी मैं
जिन्दगी से तुम्हे खो दिया था मैंने
तुम वापस आये तो तुम में खो गयी मैं
मेरी दुनिया फिर कब आबाद करोगे
फिर कब मुझसे बात करोगे

जिस दहलीज़ पर तुमसे मिली थी
प्यार की कलियाँ जहाँ फूल बनी थी
आज भी वो आँगन तुम्हे बुलाता है
जहाँ हमने अपने प्यार की कहानी लिखी थी
क्या मेरे साथ फिर से वहां चलोगे
फिर कब मुझसे बात करोगे

याद है मुझे वो तुम्हारी आखिरी मुलाकात
था तुम्हारे हाथों में मेरा कोमल हाथ
आँखों में तुम्हारी आंसुओं की झड़ी थी
बहुत दिर तक रहे हम दोनों साथ साथ
क्या आज भी मेरा हाथ थाम के चलोगे
फिर कब मुझसे बात करोगे

पर ये क्या तुम तो मुह मोडकर चले गए
मेरी आँखों के आंसू यूँही छोड़कर चले गए
कैसी हो तुम अब  भी गूंज रहा है कानो में
मूक करके मुझको फिर छोड़ क्र चले गए
फिर कब मुझसे मुलाकात करोगे
फिर कब मुझसे बात करोगे

आँख खुली मेरी और मैं सन्न रह गयी
एक अश्रुधारा मेरी आँखों से बह गयी
भूल गयी थी मैं की तुम मर चुके हो
तुम्हारी सूरत मेरे जहन में फिर घूम गयी
फिर कब मेरे सपने में आकर मुझसे  आत्मसात करोगे
फिर कब मुझसे बात करोगे
फिर कब मुझसे बात करोगे..................
राखी शर्मा

Tuesday, September 9, 2014

मेरा मन एक बच्चा

मेरे अंदर का बच्चा काफी कुछ सह जाता है
सहमा सहमा डरा डरा जुबान से कुछ नही कह पाता है
कहीं उदास है टूटे सपनो से तो कही  आशा अधूरी है
जो उसको बेबस करती वो आज भी उसकी मज़बूरी है
चाहता तो है वो भी उड़ना अरमानो के पंख लगा के
करता रहता है बार बार कोशिश अपने पंख फडफडा के
गुमसुम  सा मूक सा रहता है वो मुझसे बस ये कहता है
क्यों मुझे आज़ादी नहीं क्यों ये जुल्म ज़माने के सहता है
बच्चा है आखिर जिद पकड़ के बैठ ही जाता है
और उसे समझाने को फिर मेरा दिमाग जोर लगाता है
राखी शर्मा

Monday, September 8, 2014

जिन्दगी फिर भी खूबसूरत है

जिन्दगी मेरी खूबसूरत न सही पर बदसूरत भी नहीं
रहती हूँ मैं बदहवास सी पर फिर भी मुझे कोई दुःख नहीं
रोज सुबह से जो यात्रा शुरू होती है तेरी यादों के साथ मेरी
लगती है मुझे अकेले ये कुचे ये गलियाँ दिन में भी अँधेरी
फिर भी जिन्दगी को खूबसूरत बनाने की कोशिश करती हूँ
और हर रात मैं उधेड़बुन में तेरे साथ बिताये पलों से गुजरती हूँ
अकेले क्यों फिर भी जी रही हूँ मैं ये समझ नहीं आता है
फिर लगता है कि जिन्दगी तो मेरी खूबसूरत ह मुझे जीना नहीं आता है
पहाड़ों पे अकेले मैंने कई घंटे बैठ कर देखा है
और ख़ूबसूरती क्या होती है ये मौन रहकर ब्यान करना सिखा है
बहती नदियों की कल कल मुझसे ये कहती है
अकेली तो मैं भी हूँ पर फिर भी जीवन पथ पे निरंतर बहती हूँ
ये वोही कुचे और गलियाँ हैं जो मुझे अहसास दिलाते है 
कि जिन्दगी खूबसूरत है और हम भी उस पे यूँही बढ़ते जाते हैं
ये ठूंट खड़े पेड मुझ तक ये पैगाम पहुंचाते हैं
की कैसे अपनी इच्छाओं में दृड रहना है ये सिखाते हैं
अब तो बस जिन्दगी की खूबसूरती को निहारना मेरा काम है
और खुल के जीना है मुझे और मौत ही मेरा आखिरी आयाम है ।
राखी शर्मा

Sunday, September 7, 2014

भूख और रोटी

भूख और रोटी
कितना गहरा नाता है न इनमे
लगता है जैसे दोनों एक दुसरे की पूरक हो
कैसे आखिर इनके महत्व को नाकारा जाए
जब भूख लगती है रोटी की तो बस आदमी कितना बेबस हो जाता है
भूख ही तो है तो आदमी को कभी हैवान तो कभी शैतान  बना देती है
मैं पूछती हूँ क्या भूख केवल रोटी की है
नहीं भूख पैसे की भूख शोहरत की
भूख हवस की और भूख है अरमानो की
क्या इनसब की भूख केवल रोटी मिटा सकती है?
नहीं पर सबसे बड़ी भूख वो है जो पित में लगती है
जिसको सिर्फ और सिर्फ रोटी मिटा सकती है
और ये जो बाकि भूख हैं इनको तो खुद भगवान् भी नहीं मिटा सकता
क्युकी भूख एक बार जब लगती है तो फिर हर बार लगती है
चाहे वो भूख रोटी की हो या किसी और की
ये भूख ही है जो इंसान की फितरत को पल में बदल देती है
गौर कीजियेगा कि क्या मैं गलत कह रही हूँ...........?
राखी

Saturday, September 6, 2014

बन जा चंडी काली

ऐ औरत तू अबला नहीं
तू तो सृष्टि की जनमदाता है
क्यों सहती है इतने अत्याचार
क्या तुझे खुद पे रहम नहीं आता ह
तू तो वो ज्वाला है जो पानी में आग लगा दे
सामने खड़ा हो छाए कोई भी तू पल में उसे ख़ाक बना दे
इस कलयुग में जबकि तेरी दुर्गति तेरी समाज ने कर दी
इज्ज़त और आबरू तेरी हेवानो ने अपने सुपर्द कर दी
तो तू भी बन चंडी कलिका दुष्टों का संहार कर
हाहाकार मच जाये कुछ ऐसे दुष्टों का नाश कर
जब तू अपना रूद्र रूप संसार को न दिखाएगी
तेरी असमर यूँही हमेशा खतरे में रह जाएगी
ले शमशीर हाथ में और कर से वार पे वार
ऐसे ही बचा पायेगी तू अपनी और बाकि स्त्रियों की लाज
राखी शर्मा

इंतज़ार

अजीब सी कशिश है तेरी आँखों में
जो मुझसे भुलाई नहीं जाती
इनमे डूबने की चाहत दिल से
मिटाई नहीं जाती
टूट कर दिल जार जार हो गया
ये दूरियां फिर भी मिट नहीं पाती
दूर होकर तेरी दुनिया से दिल
की दुनिया बसी नहीं जाती
कर देती है मजबूर जिन्दगी
पर तेरी यादें दिल से हटाई नहीं जाती
और परेशान हो जाती हु जब
तेरी तस्वीर आँखों से भुलाई नहीं जाती
इश्क इस कदर हो गया है तुझसे के
तेरे बिना दुनिया रास नहीं आती
अपना गम किसी से कह भी तो नहीं सकते
क्युकी परायों से ये बातें बताई नहीं जाती
तुम पास नहीं हो मेरे इस लिए
औरो से प्यास बुझाई नहीं जाती
हर चेहरे में तुझे ढूँढ़ते हैं
पर तेरी तस्वीर हमे कहीं नज़र नहीं आती
आ जाओ अब हमारे पास तुम के इंतज़ार की घड़ियाँ हमसे जी नहीं जाती
राखी

Friday, September 5, 2014

दर्द जिन्दगी है या जिन्दगी में दर्द है

जुदाई का एक नाम दर्द और मेरी जिन्दगी बस एक तुम
तुमसे दूर रहकर बन गयी है दर्द जिन्दगी
और तुम्हारे नाम पर जाने कितने दर्द दिए है इसने मुझे
तुम्हरे बिन तनहा अकेले जीने का दर्द
लम्हा लम्हा अपने आंसू पिने का दर्द
समझ में ही नहीं आया की जिन्दगी दर्द है या दर्द जिन्दगी
पर जो भी है बड़ी ही सिद्दत से इसने रुलाया है
कई अरसो से इसने गम को सिर्फ बढाया है
आलम  ऐ तन्हाई इस कदर हमको अब भाने लगी है
की साथ में कोई और हो तो हमको कोफ़्त होने लगी है
ये कैसा मंजर मेरी आँखों ने दर्द का देखा है
हर बार तूने दिया जो जख्म है वो अनोखा है
क्या फर्क पड़ता है अब की जिन्दगी में दर्द है
जिस गम में जी रही हूँ मैं मेरा लहू भी अब सर्द है
बस एक नन्ही जी जान है जो इस शारीर में व्याप्त है
कब निकल जाये पता नहीं क्युकी ऐसे ही हालात है
मशरूफ हूँ अब तो मै इस जिन्दगी को जीने में
गम और आंसू लिए अपने इस सीने में
कुछ  भी हो हमे जीने तो है ये जहर का घुट पीना तो है
अब तो तू जिन्दगी और तुही दर्द है
जिन्दगी में दर्द है चाहे दर्द में जिन्दगी है
राखी शर्मा