Friday, August 30, 2013

हाय रे औरत तेरी किस्मत -भाग तीन

तीन दिन बाद मनोज घर आया।उसके आने के बाद गोविन्द का घर आना बंद हो गया। फुलवा अब ये जान चुकी थी की उसकी जिन्दगी में अब गोविन्द को पाने की कोई उम्मीद नहीं बची है।फुलवा एक मेहनती लड़की जल्द ही उसने घर का सब काम संभाल लिया।घर के लोग उससे बड़े खुश थे। बहुत बड़ा परिवार था उसका अब। पर उसकी जिन्दगी का खालीपन वो कोई नहीं भर सकता था। क्या एक औरत सिर्फ हवस की भूखी होती है ?उसके अंदर जस्बात नहीं होते?अगर नहीं होते तो क्या मनोज के साथ वो खुश नहीं रहती।एक कहावत है जाके पैर न फटी बेवाई सो क्या जाने पीर पराई।ये सही भी है ।जब तक अपने उपर बितती है तभी ही पता चलता है। वो जी तो रही थी पर वो खुश नहीं थी। एकांत के वो लम्हे उसे भाते नहीं थे। डरने लगी थी वो और हमेशा उन लम्हों से खुद को बचने की कोशिश में रहती थी। मन की कुंठा किसी से कह भी तो नहीं सकती थी।
वहां उसकी महुआ की शादी एक अधेड़ के साथ तय करदी उसकी माँ ने।उसके दो बच्चे थे। ज़मींदार था वो और महुआ वो तो सब कुछ बिना बोले ही सहती जा रही थी। गरीबी देखि थी उसने शायद इस्सी वजह से उसका मुंह बंद था। फुलवा  ने विराध भी भी किया पर महुआ ने उससे रोक दिया ।क्योंकि इसे पता था की उसकी शादी से उसके घर के लोगो का भी फायदा है। महुआ का विवाह हो गया और दो बच्चो की जिम्मेदारी संभाल ली उसने। पर शादी के बाद उसने कभी अपनी माँ और बहनों को काम पर जाने की नौबत नहीं आने दी। महुआ पर दो लडको की जिम्मेदारी थी दोनों उम्र में ग्यारह और तेरह साल के थे पर अमीर बाप के बिगडैल बच्चे थे ।महुआ को सब पता था कि वो सारा दिन यहाँ वहां घुमने के अलावा दुसरो को अरेशान करने के अलावा कुछ नहीं करते थे पर वो उनकी सौतेली माँ थी कहती भी तो क्या?उसने धीरे धीरे बच्चो से अपनापन बढाया। एक दिन वो घर में अकेली थी छोटा बेटा  वहां खेल रहा था अच्चानक उसे चोट लगी उसने भागकर बच्चे को गोद में उठा लिया। और मरहम पट्टी की। छोटा उससे घुलमिल गया ।एक दिन छोटे ने बताया की उनकी माँ मरी नहीं थी उसे मार दिया गया था। महुआ ये सुन कर डर गयी ।वो सोचने लगी की आखिर क्यों उसके पति ने अपनी पत्नी को मार डाला।घर के नौकरों से भी पूछने की उसकी हिम्मत नहीं थी। पर वो समझ चुकी थी की कुछ तो जरुर है और वो पता लगा के रहेगी।
उधर फुलवा माँ बन चुकी थी ।उसने एक सुन्दर बच्चे को जनम दिया था ।बच्चे के आने से उसकी जिन्दगी का खालीपन भरने लगा था। मनोज भी खुश था।अनु और नीरा की भी जिन्दगी चल रही थी।अनु शादी नहीं करना चाहती थी ।वो शहर जाने के सपने देखा करती थी।उसने अपने ख्वाबो की दुनिया बसा ली थी और उसी में जीती चाहती थी।एक दिन अपने ख्वाबों को पूरा करने की चाह में वो देर रात घर से निकल गयी। सुबह उसने ट्रेन पकड़ी और जा पहुंची एक बड़े शहर में। मुंबई रेलवे स्टेशन पर उतरी तो उसने सोचा भी नहीं था उसकी जिन्दगी में अगला मोड़ कितनी जल्दी आने को है।वो स्टेशन से बाहर आई और शहर की चकाचौंध में खो गयी। चलते चलते वो थक गयी ।भूख भी लगी थी। उसने दस रूपए निकाले और वडा पाव्र लेकर खाने लगी। वो चली जा रही थी कि पीछे से कार से टकरा गयी और फिर उसे होश न रहा। आख खुली तो खुद को एक आलिशान घर में पाया।

Monday, August 26, 2013

हाय रे औरत तेरी किस्मत -भाग दो

फुलवा की शादी का दिन था ।एक दुल्हन की तरह वो भी सजी धजी ।पैर उसकी आँखों में वो चमक न थी जो होनी चाहिए थी। आखिर उसके अरमान शादी के हवन कुंद में जलकर सुवाहा जो होने जा रहे थी ।घर में ख़ुशी का माहौल था। फुलवा के दिल में जो विराना था उसकी किसी को खबर नहीं थी।उसकी बहने सब जानती थी।महुआ सबकुछ जानती थी पर वो करती भी तो क्या। खैर शादी की सारी रस्मे हो चुकी थी। बस विदाई बाकी थी। और वो भी हो गयी। नीरा की आँख भर आई क्युकी फुलवा उसे हमेशा सबसे बचाती थी माँ को कभी मारने नहीं दिया उसने नीरा को। फुलवा के घर से जाते ही दिनचर्या पहले जैसे हो गयी। वहां फुलवा अपनी ससुराल पहुँच गयी थी। ससुराल जाते ही उसका मन और खिन्न हो गया। सब अजनबी थे। वो ये ही सोच रही थी कि क्या हो गया सब ।सारी औरते उसके पास बैठी थी।तभी एक आवाज़ सुनकर वो चौक पड़ी। उसकी खोयी मुस्कान वापस आ गयी। और आँखों में चमक उसके सामने गोविन्द खड़ा था ।पर घूँगट की आड़ में वो उसे देख नहीं पाया था।अब वो घडी आ पहुंची थी जब फुलवा और मनोज आमने सामने थे। मनोज बहुत ही सीधा साधा था पर फुलवा को चाहता बहुत था। पर फुलवा वो तो पता नहीं किस भूलभुलैया में घूम रही थी। मनोज जितना फुलवा के पास आने की कोशिश करता फुलवा उतना ही उससे दूर जाने की पर आखिर कब तक।मनोज उस पर जबरजस्ती नहीं करना चाहता था वो ये ही सोच रहा था की अभी वो दोनों अजनबी हैं पर एक मर्द कैसे अपने आप को संभालता और तब जब की जिसे वो सबसे ज्यादा चाहता हो वो उसके पास हो।उसने फुलवा को अपनी बाहों में भर लिया और फुलवा भी कब तक खुद को कैसे संभालती।फुलवा की आँखों में नींद का नाम नहीं था ।खुद को आईने में देख कर सोच रही थी की एक ही रात में उसकी जिन्दगी बदल गयी। पौ फट चुकी थी। फुलवा अपनी साडी  समेटकर उठी और नहाने चली गयी। मनोज का घर ठीक ठाक था ।वहां बहुत बड़ा आँगन था ।आँगन में खुले बाल सुखा रही थी तभी कुछ आहट हुई वो भाग कर कमरे में चली गयी और मनोज से जा टकराई ।मनोज भी शायद तैयार नहीं था और दोनों धडाम से गिर पड़े और फुलवा का सर दीवार से जा टकराया और खून की धारा बह निकली। नयी नवेली दुल्हन का ये हाल देखकर मनोज डर गया ।भागकर उसने फुलवा को उठाया और अपनी माँ को आवाज दी और खुद डॉक्टर को बुलाने चल पड़ा।चोट गहरी थी बस सब लगे बहु की सेवा करने में ।पे फुलवा की आँखे को गोविन्द की एक झलक पाने को बरक़रार थी। मनोज काफी परेशान था। बस वो लग गया फुलवा की देख रेख में। फुलवा  को अगले दिन अपने घर जाना था पगफेरी की रस्म के लिए।मनोज के साथ चल पड़ी वो घर ।उसकी बहाने उसके माथे पर पट्टी देखकर सहम गयी ।माँ का मन भी कई सवालो से घिर गया पर जब सब पता चला तो हसे बिना नहीं रह सके सब। उसकी माँ ने गोविन्द से उसे वहीँ छोड़ जाने की बात रखी ।गोविन्द तो कुछ कह ही नहीं पाए पे फुलवा ने ही रुकने से मन कर दिया। उसने महुआ को गोविन्द के बारे में बताया और उसका घर न रुकने का कारन भी।बस आ गयी वो मन में गोविन्द से मिलने की आस लिए।जब घर पहुंचे तो  घर में ग़मगीन महौल था ।फूफा जी की तबियत काफी ख़राब थी और बुआ जी ने बुलवा भेज था की कोई आ जाये ।पर जाये कौन बाबूजी तो पहले ही बीमार थे। आखिर मनोज को ही जाना पड़ा। मनोज जाना नहीं चाहता था। क्युकी फुलवा को भी चोट लगी थी। उसने फुलवा से पुछा तो वो कुछ न बोली।खैर वो चला गया ।रात हो चली थी फुलवा को भी दर्द के मारे नींद नहीं आ रही थी। ठण्ड भी थी। वो उठी और शाल लेकर बाहर आई। बाहर चूले में आग थी उसने हाथों  को सेकने  के लिए अंगारे एक मिटटी के बर्तन में भरे और अन्दर जाने लगी तभी वो सन्न रह गयी सामने गोविन्द खड़ा था। उसके चेहरे पर हैरानी थी।लालटेन की हलकी रौशनी में भी वो फुलवा को पहचान गया और उसके मुह से बस ये ही निकला फुलवा तू। फुलवा जल्दी से कमरे में भागी पर गोविन्द भी उसके पीछे हो लिया। फुलवा के मन में तो जैसे सितार बजने लगे। इससे पहले वो कुछ कह पाती गोविन्द ने उसके माथे को छुआ और पुछा की ये सब कैसे। फुलवा की आँखों से अश्रुधरा बह निकली और वो भाग कर गोविन्द की बाहों में समां गयी।गोविन्द को कुछ समझ नहीं आया ।उसने फुला को खुद से अलग करना चाहा पर फुलवा वो तो खो ही गयी थी।
फुलवा ने सारी व्यथा गोविन्द से कह दी। रात गहरी हो चुकी थी गोविन्द मनोज का चचेरा भाई था। वो फुलवा से बोल की अब उसे जाना है ।फुलवा उसे जाने नहीं दे रही थी। गोविन्द उससे अगले दिन मिलना का वादा कर जाने लगा तो फुलवा ने उसे धक्का दे दिया वो पलंग पे गिर पड़ा और फुलवा उसके सीने पे सर रख कर लेट गयी। फुलवा को कब नींद आई उससे पता न चला। सुबह उसकी आँख खुली तो वो अकेली थी। उसे लगा जैसे उसने रात कोई सपना देखा हो। वो आज पहले से ठीक थी। उसने आज खुद को अच्छे से संवारा और श्रींगार किया ।उसे रात का इंतज़ार था।दिनभर तो वो औरतो से घिरी रहरी थी। शाम को गोविन्द डॉक्टर को लेकर आया ।वो पट्टी कर गया और दावा दे गया ।मनोज की माँ ने गोविन्द से कहा की वो अपनी भाभी का ध्यान रखे।अब तो वो ही हो गया जो फुलवा चाहती थी। गोविन्द और उसकी नन्द उसके पास रहे ।नन्द को भी नींद आ गयी वो भी सोने चली गयी। सन्नाटा चारो तरफ फ़ैल गया था।फुलवा गोविन्द के साथ के लिए तड़प रही थी ।वो जानती थी की अगर मनोज आ गया तो वो गोविन्द को करीब कभी नहीं जा सकेगी। कहीं पर गोविन्द के दिल में फुलवा को पाने की चाह थी ।आखिर कब तक दिल के समंदर की लहरों को रोक पाते दोनों ।आखि र दोनों एक दुसरे के हो ही गए। और वो रात फुलवा की जिन्दगी में कभी न भूलने वाली रात बन गयी।
क्रमशः

Sunday, August 25, 2013

हाय रे औरत तेरी किस्मत -कहानी भाग 1

नीरा वैसे तो एक आम लड़की  थी पर उसकी कहानी कोई नहीं जानता। बिहार के सुदूर इलाके में जन्मी थी वो। घर में उसके अलावा तीन बड़ी बहनें और थी ।पिता तो उसके पैदा होने से पहले ही चल बसे थे। नीरा छोटी थी पर वक़्त की ठोकरों ने उसे बड़ा बना दिया था। जब से होश संभाला उसने फटे कपड़ो के अलावा कुछ नहीं मिला था तन ढकने को। पर फिर भी वो खुश थी अपनी जिंदगी में। उसकी माँ और बड़ी बहाने रोज खेतो में काम करने जाया करती थी। नीरा को भी अपने साथ ले जाती थी। वो पांच साल की अबोध बच्ची कुछ कर तो नहीं पाती थी पर फिर भी सबको पानी पिलाने की जिम्मेदारी उसी की थी। वो बच्चो के साथ मिटटी में खेल करती थी। गोरा रंग हिरनी सी आँखे और मासूम चेहरा उसकी खासियत थे। उसकी माँ अपनी सारा दिन जी तोड़ मेहनत करती थी । घर में चुल्हा जलने का एक येही जरिया था। उसकी  सबसे बड़ी बहन तेरह साल की थी ।समय अपनी गति से चल रहा था ।बस रोज की वही भागदौड़ में जीवन का पता ही नहीं चलता था। नीरा अब दस साल की हो चली थी ।नीरा की माँ अब उसकी बहनों की शादी करना चाहती थी ।
पर गरीबी ने उसके हाथ बांध रखे थे।सावन आ गया था सब बहने मेला देखने जा रही थी ।गाँव की सारी लडकियां एक साथ मिलकर चल पड़ी दुसरे गाँव ।नीरा की बड़ी बहन फुलवा अनु महुआ भी नीरा का हाथ थामे चल रही थी। मेले की रोनक तो देखते ही बनती थी ।सब की आँखे चकाचौंध हो गयी। सारी खुश थी ।फुलवा के चेहरे पर हलकी सी मुस्कराहट थी।
वो  किसी को देखकर शर्मा रही थी ।जाने कौन था वो नौजवान जो उसे एकटक देखे जा रहा था ।फुलवा भी उसे देखती और फिर नजरे झुक लेती। उसके मन की देहलीज पैर प्यार दस्तक दे चूका था और वो उस अनजाने अजनबी से आँखे चार कर बैठी थी। आने वाली जिन्दगी से बेखबर वो उस अजनबी के प्रेमपाश में बंधी जा रही थी ।शाम हो चली थी सब लडकियां गाँव कीतरफ वापस चल पड़ी। फुलवा का मन नहीं था अजनबी को छोड़ के जाने का ।आखिर उसने पूछ ही लिया उसका नाम ।गोविन्द ये सुनकर वो बहुत खुश हुयी और गोविन्द भी उससे मिलने का वादा  करके अपने घर चला गया। अब फुलवा को कहीं चैन नहीं था ।उसे तो हर घडी गोविन्द से मिलने की तड़प थी। उसकी हालत उसकी बहनों से छिपी नहीं थी। वो रोज महुआ को लेकर नदी किनारे जाया करती थी। पर गोविन्द को तो जैसे सुध ही नहीं थी। फुलवा की सहेली की शादी थी । शादी में फुलवा भी गयी।जब वापस घर आ रही थी तो पीछे से किसी ने आवाज दी। आवाज़ सुनकर वो पलती तो सामने एक नौजवान खड़ा था ।फुलवा ने देखा पर कुछ बोली नहीं ।वो नौजवान फुलवा  संग ब्याह करना चाहता था पर फुलवा का दिल तो किसी और का कैदी था। उसने नौजवान ने फुलवा से बात करनी चाही पर फुलवा कुछ न बोली और वहां से भाग गयी।वो नौजवान मनोज था जो फुलवा पर फ़िदा हो चला था। अगले दिन तडके वो फुलवा की माँ से मिला और अपनी इच्छा जताई। उसकी माँ को क्या ऐतराज होता ।फुलवा की माँ ने तुरंत हाँ कर दी। और शादी पक्की हो गयी। शादी में अभी समय था पर फुलवा रात दिन जल रही थी ।वो  ये शादी नहीं करना चाहती थी। वो अब भी नदी किनारे गोविन्द का इन्तजार किया करती थी। सर्दी आ गयी थी ।हर तरफ कोहरा और ठण्ड का फैलाव था ।नीरा माँ माँ के साथ गयी थी खेतो में महुआ भी साथ थी।घर में फुलवा थी ।उसकी शादी नजदीक आ रही थी। उसकी माँ ने उसे अब खेतो में ले जाना बंद कर दिया था।फुलवा ने घर का काम निबटाया और मटका लेकर अपनी सहेली के साथ चल दी।
नदी किनारे सब औरतें अपने काम में लगी थी पर फुलवा न जाने किस उधेड़बुन में थी। उसकी सहेली ने आवाज लगे घर नहीं चलना है क्या? उसे तो तब पता चला की वो कहाँ है।अब भी शायद वो गोविन्द की यादों से निकल नहीं पायी थी। हलकी धुप और सर्द मौसम उसे सुहावना नहीं लग रहा था। उसकी शादी का दिन आ गया था पर वो खुश नहीं थी। किसी से कह भी तो नहीं सकती थी और अगर कहती  भी तो क्या ।जैसे ढूँढती अपने गोविन्द को इतनी बड़ी दुनिया में ।

 

Tuesday, August 20, 2013

मेरे बाद

मरने के बाद मेरी बात करोगे मेरी सारी बातों को याद करोगे
मिलेंगे नहीं तुम्हे हम फिर अपनी आँखों को आंसुओं से आबाद करोगे
आँखे बंद होंगी हमारी  होंठ सिले होंगेऔर सांसें रुकी होंगी   तब तुम्हे अहसास होगा हमारे बिना तुम्हारी जिन्दगी कितनी अधूरी होगी
तुम बात करोगे मुझे पर मेरी जुबां खामोश होगी
तुम पूछोगे सवाल मुझसे पर मै निरूतर होउंगी
मैं जिन्दगी से हारी हुई कफ़न में लिपटी रहूंगी
पर आत्मा मेरी सबको  देख रही होगी
तुम्हे भी अहसास तो हो जायेगा मुझसे दूर होकर
कि मर मिटी मै तुम्हारे लिए ये जिन्दगी खोकर
सब होंगे वहां एक मेरे सिवा आँखों में आंसू लिए
मै तो चल पडूँगी सबको छोड़ के उस खुद से मिलने के लिए
मेरी लाश को हाथ मत लगाना भूलकर भी तुम
क्योंकि तुम्हारा स्पर्श मुझे मरने पर मुझे महसूस होगा
तड़प जाउंगी मरने के बाद भी वो लम्हा कितना मनहूस होगा
क्योंकि मेरे मरने कि सिर्फ तुम ही वजह ही वजह होगे
और मेरे साथ साथ तुम भी गुनाहगार होगे

Saturday, August 17, 2013

तेरे ग़म की पनाहों में

जब भी जिक्र हुआ तेरा मोहब्बत के अफसानो में
हमारा नाम ही आया है तेरे दीवानों में
तुम तो मोहब्बत करके भूल गए हमे और हम जीते रहे
मरते रहे तेरी ही यादों के मकानों में
दुनिया ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी मुझे इल्जाम देने में
पर फिर भी जी रही हूँ मै उनके तानो में
जिन्दगी ख़तम भी नहीं होती है मेरी कोशिश बहुत कीमैंने
छुटकारा नहीं मिलता तेरे बीते अफसानो से
प्यार का जहर इस कदर भर गया है मुझमे की अब बस
टूट ही जाती हु तेरे नाम के आ जाने से
नशा है ये शराब से बढकर अब समझ आया दिखता
है साफ़ मेरी आँखों के टूटे पैमानों में
मेरी बज़्म में भी तूही है आकर देख ले तू अब यहाँ कयोंकि.
जिक्र तेरा अब भी है मेरे आशियानों में
सुर्ख जो ये आँखे हो गयी इनका सबब जान ले तू आकर
दिल के सूखे रेगिस्तानो में
अब तो घर भी मेरा कब्रिस्तान हो गया क्योंकि आता
नहीं भी है इन वीरानों में
दिल का टूटना कुछ इस कदर कर गया असर मुझ पर
कि उमर ही गुज़रेगी अब मेखानो में
पीना शौक तो न था मेरा पर क्या करूँ मैं आज भी
मेरी रूह भटकती है तेरे ही गलियारों में
रंज मुझे ये नहीं कि तू छुट गया पर कैसे छोड़ दू
खुद को तेरी यादों के शामियानो में
जब भी दिया गम ही दिया उसने और छोड़ दिया मुझे
अकेला इस गम के अंधियारों में
गम का आलम और ये दुनिया क्या समझेगी मुझे रहती
हूं बस अपने गम की पनाहों में
राखी

Wednesday, August 14, 2013

तुम मेरा अतीत

वक़्त बहुत हो गुआ तुझसे मिले पर इन आँखों में तेरी तस्वीर क्यों है
तोड़ दिया जिसने दिल मेरा और यकीं मोहबत से वो आज भी प्यार के काबिल क्यों है
जिसकी यादो को चुन चुन के जीवनसे निकाल दिया मैंने
वो फिर भी मेरी जिन्दगी में शामिल क्यों है
उसकी चाहत रास न आई फिर भी मेरे दिल पर उसका असर क्यों है
ख़तम हो गया है जो मेल उस से पैर आज भी जीवंत उसका प्यार मुझमे क्यों है
वो है भी नहीं मेरे आस पास पर मेरी रगों में दौड़ता उसका इश्क क्यों है
हर सवाल का जवाब है मेरे पास पर उसके सवाल पर मेरी जुबान चुप क्यों है
रखा नहीं उस से कोई रिश्ता मैंने पर उसकी याद में डूबा ये दिल क्यों है
बर्बाद कर गया वो मुझे इस क़दर पर फिर भी उस पर ये रहम क्यों है
क़ैद कर दिया मुझे उसे अपनी यादो में पैर इस कदर टूट कर इश्क क्यों है
राखी

संभावना

शादी के कई साल तक
साथ रहने के बाद भी
बिछड़ना चाहते थे वो
क्योंकि एक सी दिनचर्या
ने नीरसता भर दी थी
उनके संबंधो में
तब वो बहाने खोजने लगे
और एक दुसरे की कमियों को
बढ़ा चढा कर बोलने लगे
धीरे धीरे आई समंधो की खट्टास से
उनका संग रहना असंभव हो चला था
ऐसे में किसी को बिना बताये वे अलग अलग रहने लगे
फिर जब तन्हयिओन में निपट अकेले हो गए
तब उन्हें याद आया कि एक ही घर में रहते हुए
हँस कर मिलना साथ साथ चाय नाश्ता लेना
दिनभर गप्पे हाकना कभी झाड पोछ और
कभी धुले कपडे तह करना शाम की चाय
रात का खाना और टहलते हुए दूर निकल जाना
उसके बाद भी बहुत कुछ एक साथ
नींद के आगोश में जाने तक वे फिर लौट आये
साथ साथ रहने केलिए
घर को फिर सजाया जा रहा है
और साथ में रहना खुद को शिखाया जा रहा है

अनमोल पल

जब भी बारिश की बूंदे मेरा तन भिगोती हैं एक अजीब सी कसक दिल में होती है
बूंदों में हम भीग तो जाते हैं पर हमारे दिल में एक हलचल जरुर होती है।
नर्म बाहों के घेरे हमे जब आकर घेर लेते हैं उनसे निकल ने को हम मचलते हैं
अधरों की भाषा अधर ही समझते हैं उनमे कितनी प्यास है ये तो लब ही जानते है
तुम्हारे उंगलियो का बरबस ही मुझे छू जाना कितनी कोमल हूँ मैं ये बस अहसास समझते हैं
मौन आखों की अभिव्यक्ति को बस आँखे ही पहचानती हैं
क्या तुम्हारे दिल में है क्या मेरे दिल में है धड़कन ही जानती है
साँसों से साँसे उल्जहती है और दिल में तूफ़ान उठते हैं
बारिश के इस मौसम में दोनों तरफ आग बराबर लगती है
धड़कन से धड़कन जुडती है और आँखों से आँखे मिलती हैं
वो घडी जहाँ में ऐसे है जिसको ये दुनिया तरसती है।
मधुर कल्पना के वो पल  जो हमको मिलते हैं हर बार दिल
में वोही भाव उमड़ते हैं
मोहब्बत के वो अनमोल पल  जी भर कर हम जीते हैं
कभी न ख़तम जो प्यास हो उसे बुझाने की कोशिश करते हैं।

कैसे बताऊँ तुझे

दूर दूर रहती हूँ इसी कारण तुमसे क कहीं डूब न जाऊं इन आँखों के समन्दर में
मुझसे एसइ भूल न हो जाए जो रुसवा करे तुमको और और जीने न दे मुझको
लिख रही हूँ छोटी पाती पर प्रेम की दास्ताँ दिखता नहीं है मुझे साफ़ रास्ता
घना कोहरा छाया रहता है आँखों पर सुनती हूँ रोज तुम्हारी धड़कन रफ्ता रफ्ता
तेरी आखों में मैंने अपना चेहरा देखा है तेरी बातों में अपना अक्स देखा है
कई बार तेरे आँखों के आंसू में खुद को बहते हुए देखा है।
तेरी आँहो की पुकार इतनी दूर से भी सुनाई देती है
तेरे बिना बोले ही तेरी हर बात सुनाई देती है।
तुझे कहना है बहुत कुछ परकैसे कहूँ मै
अब तू ही बता ये प्यार का दर्द कैसे सहूँ  मैं

Tuesday, August 13, 2013

Tumko hi dekha hai

Subah ke ugate suraj me maine tumko hi dekha hai
Taaro khili in raato me maine tumko hi dekha hai
Chandrama ki chandni me maine tumko hi dekha hai
Fulo ki muskano me maine tumko hi dekha hai
Apne aap se tumko maine baate karte dekha hai
Har jagah sirf sirf aur sirf maine tumko hi dekha hai
Karke mujhko diwana tum najar chura kar chale gaye
Meri jindgi viraan karke tufaan uthakar chale gaye
Mujhse kya hai khata hui ye bina batakar chale gaye
Jina ek majburi hai tum mujhe tadpakar chale gaye
Meri duniya me kyu aaye jo yun ruthkar chale gaye
Apni in najro ko maine tumhe dhoondte dekha hai
Duniya mujhse kehti hai tumko bhula ker ji lu main
Apne sare jakhmo ko sine me dafan kar lu nain
Meri ye majburi hai ke tunko kaise bhuku main
Aisa kaisa kar lu main koi kya jaane kya hu mai
Tumhari un yaadoan ko khud se juda kaise kar lu main
Aaj is dil se maine tufaan gujarte dekha hai
Ghar basa liya maine per fir bhi kuch kami si hai
Tumhare binmeri jindgi kuch aduri si hai
Mere jivan ke palchhin tumahre  bina nahi katte hain
Tumko dekhne ke liye mere nain taraste rehte hain
Mere is chatak dil ko bus megha ki chahat
hai
Apne is chatak ko maine tumhe bulate dekha hai

Monday, August 12, 2013

Uski yaadein

Quaid hu mai teri yaado ke pinjre me
Pancchi ki tarah
Jaise wo fadfadata hai wahan se nikalne ko
Aise hi mai bhi tadapti hu teri yado ke pinjre se nikalne ko
Mar ke hi molegi aazadi mujhe aur raah takti hu ab marne ko
Kaash ki mere pyar me wo mukaam hota
Tujhe ye rab meri jindgi me likh deta
Bahut khushkismat hote tujhe pa ke hum
Chahe tujhe dekar wo hume wo saare
gum de deta
Kabhi kabhi taras aata hai apne aap per
Kyu ithi ruswayion bhi dil tujhe dil tujhe bhool nahi pata
Kabhi nahi mil sakta tu hume phir bhi dil se jud gaya ye kaisa nata
Chatak ki tarah mera dil pyaasa hai bus uski mohabbat ke liye
Dur rehkar hum tadapte hai uski ek jhalak ke liye

Teri yaad

Toda hai usne mera dil phir bhi ussi se pyar hai
Lakh dhokediye hai usne mujhe fir bhi ye uske liye bekarar hai
Ye to mera nasib hai jo sath nahi hai mere
Per dil to aaj bhi sirf tera hi talabgaar hai
Wo huye dur humse jab humare paas rehna tha
Wo rahe chupchap jab bahut kuch unhe kehna tha
Kaise hai n ishq ki raaho pe chalne wale chod diya hume
Abto akele hi hume sab kuch sahna tha
Na rahi koi kwahish ab to bus marne ki aarju hai
Jisne mujhe marne pe najbur kiya haiwo teri justju hai
Meri ye aankhe surkh lal ho gayi hain teri yaad me
Raate lambi aur tanha ho gayi hai teri yaad me
Tujhse jane kaisa nata jud gaya hai mera
Ye kamsin kali murjhaya phool ho gayi hai teri yaad me

Tera ahsaas

Ek khishbu si bus gayi hai teri mujhme
Aaj hi ishq se mera tasawur hua hai
Maine itni pyss to mehsus nahi ki kabhi yteri pehle
Jitna mujhe iska ahhsas hua haiteriteri bahoan me jism jab taar taar hua
Ishq me mukkamal mera jahan hua
Tumse dur hu main ab is baat ka ahsaas hua
Teri bheene khushbu me khoi rehti hu mai
Teri yaadon ke samander me dubi rehti hu mai
Tu paas nahi hota to bechain rehti hu mai
Tu paas ho to khamosh rehti hu mai
Teri aankho ki chhuaan ko mehsus karti hu mai
Dur hokar bhi dur nahi is dil ko yehi samjhati rehtihu mai
-RAKHI

Tu hi bus

Yun hi dewani nahi mai teri kuch to tujme baat hai
Jo mujhe jine ko majbur kare wo tere pyar ka ahsaas hai
Bhar di meri jindgi me itni khushiyaan bus tujse hi jude sare khwab hai
Jab bhi khayaal aata hai tera hi aata hai
Is dil dimag se tu kabhi nahi jata hai
Khamoshiyoan se hi humari bastein hoti hai
Aur dil mand mand muskurata hai
Ye raunak hai tere pyar ki is jism pe
Ke har taraf tera hi aks najar aata hai
-rakhi

Tu hi khuda

Roti hai ye aankhe tujhe yaad karke
Ab tu hi is dil ka khuda ho gaya
Hum kosish bahut karte hai sambhalne ki khud ko
Per tujh pe humara sab fida ho gaya
Ye saanse hi reh gayi hai is jism me
Aur sab kuch mera tere hi naam ho gaya
Ab dur nahi raha jata tujhse oh humdum
Katl nighaon se mera sareaam ho gaya
Mere labo ki pyas paani se nahi bhujhti
Ke khali sara hjaamho gaya
Aaja aaker sambhal le tu mujhko
Dekh to tere bina mera haal ho gaya

Mohabbat

Teri in aankho ki kasam kaise batau mai
Ye raaz dil me ab kaise chupaun mai
Tu chahe kuch bhi kah le mujhe
Mujhe tujhse mohabbat hai kaise batau mai
Teri aankho me hi duniya basti hai meri
Teri bahoan me hi sukoon milta hai
Mai ab kya jau kaaba aur kaashi mere dilbar
Ab tu hi is dil ka aur mera khuda hai
Tujhse milne ki chahhat hai mujhe bus aur kya
Tera hi didar chahiye bus aur kya
Roke ye jamana roke ye khudai
Tujhse milne ko neri jaan pe ban aayi
-rakhi

Ek baar tera dedar ho jaye

Mujhe ji lene de ye jindgi ji bhar ke
Kya pata kab iski kahani khatam ho jaye
Bus ek baar tujhe bahoan me bhar lu
Phir koi malal nahi chahe mujhe maut aa jaye
Chhoti si hi sahi per ek mulakaat ho jaye
Mai lakh buri sahi per tera ek najar didar ho jaye
Kya itnabhi haq nahi ki tere khwaab dekhu main
Aakhir kabhi to mohabbat mujh se rubru ho jaye
Bus itni si chahat hai meri ki tujh pe mera dil fanaa ho jaye
Ye dil to tujpe fida ho hi chuka haiab meri jaan bhi tujh pe fida ho jaye
Bus ek baar mujhe marne se pehle tere masoomchehre ka didar ho jaye

Teri chahat

Tujhe chaha is tarah humne
Ki us khuda ko bhul gaye
Har waqt in aankho me tu hai
Apne liye dua ko bhul gaye
Firte hain maare maare hum dar dar
Teri ek jhalak pane ko
Itna tadape tereliye ki apne aap ko bhul gaye

Ilzaam

Jiske liye humne gunaah kiye mohabbat me
Usi ne humko gunahgaar bana diya
Marte na hum maut ke aane pe bhi
Uske ek iljaam ne hume murdaa bana diya
Khair ye uski bewafai hai ta ki kuch aur
Per usne hume apni gairmojudgi ka ahsaas dila diya
Sochte hain ab ye hum ki sisa kya tha usme
Jisne hume uska behtareen diwana bana diya
Wo aayega laut kar wapas hume ye aitbaar hai
Or us din ke liye hum humara dil aur najar bekarar hai
-rakhi

Katil hai tu

Wo hume katl karta to duniya ko pata chal jata
Usne to hume pyar se mara hai
Kya wafa ke waade kiye the usne
Usper humne apna sab hara hai
Chalaye aise khanjar ki pata hi nahi chala
Ki pyar se mara hai ya nafrat se mara hai
Aise zakhm de gsya wo zalim haume
Ke ab na to maut aati hai aur na jindgi se gujara hai
Haal e dol kaise bayaan kareke usne is kadar ujada hai
Jiske liye aankho me khwaab sanjoye humne
Ussi ne mere khwaabo ka janaja nikala hai
Jite ji bana diya mujhe ek chalti firti lash
Aur meri mayyat ko bewafai ke  fulo se sawara hai
-rakhi

Jhoota

Raund dala mere pyar ko tune ek hi pal me
Kwahishe tut gayi sari meri ek hi pal me
Nahi janti mai aisa kyu kiyA tune mere sath
Bikhar gayi aarjuyein  meri ek hi pal me
Namakool dil ab bhi sochta hai tere bare me
Isse kaise samjhaun to aitbaar ke layak nahi hai
Tera pyar jhuta tha aur mere pyar ke tu layak nahi hai
Bus tootgaye sare riste tujhse ek hi baat pe
Samay ne kuch to shikhaya hume tere sath se
Aur tu khela hai aaj tak mere har jazbaat se

Bewafa riste

Jindgi me risto ne humse kabhi wafa nahi ki
Aur hum sare rishtoan se wafadari nibhate rahe
Ek rishte ne badal di humari soch kuch aise
Ke sabse aithbaar uth gaya ho jaise
Kya jarurat thi pyar ki agar usse fareb hi karna tha
Hum to pehle hi toot chuke the kya aise hi humko bikharna tha
Ab khuda se fariyaad hai ye meri
Ke jism se roooh alag kar de wo meri
Rakhi

Ek sapna adhura

Jindgi ki madhur kalpana ho tum
Jo kabhi hua nahi wo ahsaas ho tum
Tumse milkar hi tumhe mai bataungi
Ki mere jindgi  kitne khas ho tum
Jab jab maine aankhe band ki hai
Teri hi surat ubhri hai in aankho me
Teri maasoom si hasi lahrai hai ahsaaso me
Pata nahi kabhi tumhe mil paaungi ya nahi mai
Tumhara wo chamakta chehra dekh paungi mai
Gehra lagaav ho gaya hai mujhe  tumse
Jaane kab roobru hogi tum mujhse
Dil mera kehta hai ki tum  ekdum sacchi ho
Jisse mai kabhi na mil paayi  wo meri bacchi ho

Tere pyar me

Tumse mil kar bhichadna  koi itefaq to nhi ho sakta
Ye hi shikhane aaye ki khudgarj itna pyar to nahi ho sakta
Shiddat se jise mai ne chaha tha jise wo dilbar
Mujhse se itna jyada naaraj to nahi ho sakta
Chod diya sab kuch maine bus tujh pe hi aas lagayi
Per meri to ye naummedi mujhe jaane kahan ke aayi
Lut gayi tere pyar me is kadar mai ki uff bhi na kar payi
Aa gaya wo mukaam jindgi  meri ki ab mai jinda laash hu
Isme gunah tera nahi mai hi is saja ki haqdaar hu
Galti meri hi hai jo tumse lagan lagai maine
Har Apni cheez daav pe lagai tumhare liye lagai maine
Ab jondgi se na koi aas hai na hi koi sapna baki hai
Tufaan me lut chuki is naav ka na koi saaki hai
Rakhi

Tera aasar

Teri cheahre ki masoomiyat man moh lrti hai
Teri nighaon ki roshni aandar tak bhigo deti hai
Tu mujhe jine or marne nahii deta
Khud bhi tu aaker meri sudh nahi leta
Kaisi ye berukhi hai ye mujh se teri
Tere bina jindgi adhoori hai meri
Main dil se nikaal nahi paati tere khayalo ko
Kya jawab du mai man ke sawaalo ko
Teri har ada mujh me bus gayi hai aur rakhi
Apna har rang bhulkar tere rang me rang gayi hai

Gunaahgaar kaun

Gunaahgaar tum hote to koi gam nahi hota
Saja bhi mili to hum pe raham na hota
Per ye kaisi saja hum bhugat rahe hain
Roj katra katra hum jaane kaisi aag me jal rahe hain
Nibhai thi humne insaaniyat ki rasme
Kho diya humne sab kuch uspe bharosa karke
Gumaan nahi tha ki mitti me mil jayenge
Is wafa ke badle aisi sakht saja payenge
Najre karam ae khuda ab tu hi kar humpe
Sahi ka faisla tu hi karega kasam se
Agar mai gunaahgaar hu to sath na mera dena
Per agar wo kasoorwaar hai to chod na usko dena
Teri rehmatoan per hi bus ab mujhe aitbaar hai
Khuda tu jahan bhi hai jaisa bhi hai tujhse hi saccha pyar hai
Ab to bus rooh ko teri hi pyaas hai
Aur aankho ko tere dedaar ki aas hai