Monday, October 13, 2014

काश अगले जनम में वो मेरे पापा माँ बन जाएँ

काश के ये रिश्ते इतने मजबूत हो जाएँ
के अगले जनम में भी हम आप से रिश्ता बनाएं
अगर वो मेरे पापा बन जाए और वो मेरी माँ बन जाये
हाय कितनी हसीं होगी जिन्दगी मेरी जब दोनों मुझे अपने बाँहों के झूले में झुलाये
और पापा बनके मुझे रात को लोरी गा के सुलाए
मम्मी को  मैं करू तंग और पापा मुझे उसके गुस्से से बचाए
वो आलम इतना सुंदर हो जब दोनों मिलकर मेरा बर्थडे मनाये
जब मुझे बुखार हो तो पापा मुझे प्यार से खाना  खिलाये
है कमाल हो जब दोनों मुझ पर अपना प्यार लुटाये
हो जाये क़यामत जब दोनों एक साथ मुझे पे गुस्सा दिखाए
काश कभी हिम साथ साथ घुमने  जाएँ और मुझे दोनों अपनी गोद में बिठाकर फोटो खिचाये
माँ को हर वक़्त तंग करू और उन शरारतों में पापा मेरा साथ निभाएं
पापा से करू मैं ढेर सारी बातें और रात को उनकी गोद में सर रख के सो जाऊं
जब मां के सर में दर्द हो तो अपने नन्हे हाथों से उनका सर मैं दबाऊँ
पापा जब मेरे ऑफिस से आये तो पानी का गिलास ले के दौड़ के जाऊ
और पैर फिसल जाये मेरा और मैं फर्श पे गिर जाऊं
पापा  प्यास भूल मुझे गोद  में उठा के साइन से लगा ले और मैं धीरे धीरे मुस्कुराऊ
माँ को चिंता हो जाये और फिर झूठा गुस्सा दिखाए मैं उनके आंसू फिर भी देख पाऊ
पापा माँ के साथ बैठ के अपने नन्हे से घर को मैं सजाऊं
हर त्यौहार पर पापा से नए कपडे लाने की जिद लगाऊ
धीरे धीरे उनकी नन्हो पारी से जब मैं किसी की रानी बन जाऊ
मेरी शादी हो और दोनों मुझे विदा करने से पहले आंसू बहाएं
और मैं बेचारी इतनी दुखी हो की उनके आमने मैं रो भी न पाऊं
दोनों स्नेह मैं अपने दमन में समेटकर अपने पिया के घर चली जाऊ
और पीछे अपने उनका दिल लगाने को अपनी यादें छोड़ जाऊ
हाय काश वक़्त ये सारे मंजर  मुझे दिखाए
इन दोनों को अगले जनम में मेरे माँ और पापा बनाये। राखी शर्मा

Thursday, October 2, 2014

नारी

नारी मन की वेदनाओं को छिपा के रखती
नारी सब दुखो को आश्रुओं में बहा देती
बस ये ही कमजोरी बन जाते इसके
ये हर नासूर को बी सह जाती

अंतर वेदनाओं को इसकी कोई समझ न पाया
सबने इसके कोमल हृदय को घात लगाया
क्या रिश्तेदार क्या इसके अपने सबने
ही तोड़े इसके सुनहरे कोंमल सपने

क्यों आखिर इसको समाज में हीन समझा जाता
क्यूँ इसके नारी होने को कोस जाता
आखिर कौन से अपराध का ये दंड पाती
क्यों हे हमेशा से ये मर्दों के हाथो कुचली जाती

एक नारी का मन कभी खोलकर देखो तुम
कितनी ज्वाला भरी पड़ी है उसके अंतस मे
कितने भाव और संवेदनाएं समेटे है वो खुद में
एक नीरीह जीव बनी मूक बनी रोती है एकाकी में

अगर कर सको तो नारी का सम्मान करो
काम ये  भी तुम महान करो
उसके दिल को कभी प्यार से भर दो
उसकी भी कभी कुछ आशाएं पूरी कर दो

मत कुम्हलाने दो एक फूल है नारी
जो बस छूने से चोट खाए इतनी कोमल है नारी
कर दो इसको आज़ाद हर दुःख से तुम
क्युकी तुम्हारी ही अर्धांगिनी है ये नारी
राखी

नारी

नारी मन की वेदनाओं को छिपा के रखती
नारी सब दुखो को आश्रुओं में बहा देती
बस ये ही कमजोरी बन जाते इसके
ये हर नासूर को बी सह जाती

अंतर वेदनाओं को इसकी कोई समझ न पाया
सबने इसके कोमल हृदय को घात लगाया
क्या रिश्तेदार क्या इसके अपने सबने
ही तोड़े इसके सुनहरे कोंमल सपने

क्यों आखिर इसको समाज में हीन समझा जाता
क्यूँ इसके नारी होने को कोस जाता
आखिर कौन से अपराध का ये दंड पाती
क्यों हे हमेशा से ये मर्दों के हाथो कुचली जाती

एक नारी का मन कभी खोलकर देखो तुम
कितनी ज्वाला भरी पड़ी है उसके अंतस मे
कितने भाव और संवेदनाएं समेटे है वो खुद में
एक नीरीह जीव बनी मूक बनी रोती है एकाकी में

अगर कर सको तो नारी का सम्मान करो
काम ये  भी तुम महान करो
उसके दिल को कभी प्यार से भर दो
उसकी भी कभी कुछ आशाएं पूरी कर दो

मत कुम्हलाने दो एक फूल है नारी
जो बस छूने से चोट खाए इतनी कोमल है नारी
कर दो इसको आज़ाद हर दुःख से तुम
क्युकी तुम्हारी ही अर्धांगिनी है ये नारी
राखी