Tuesday, September 22, 2015

एक पैगाम तेरे नाम

मेरा पैगाम तो तुझ तक पहुंचा होगा
जब ख़त तूने मेरा खोला होगा
आँखों से आंसू तो छलके होंगे
जब आखिरी सलाम मेरा पढ़ा होगा
छोड़ दिया मैंने इंतज़ार करना अब
तुझे अब ये समझ आ गया होगा
रूह में उतर गया था जो इश्क़ तेरा
उसे कतरा कतरा अब ढलना होगा
मैं तो छोड़ चली हूँ राहे जिंदगी में तुझे
अब अकेले ही ये सफ़र तय करना होगा
याद तो आउंगी मैं तुझे हमेशा ही याद रख
पर तेरे आंसुओं के सैलाब को रुकना होगा
पत्थर दिल को तेरे मोम न बना सकी मैं कभी
पर अब पल पल उसे जल के पिघलना होगा
रूह तेरी पुकारेगी मुझे पर मैं सुन न सकुंगी
तेरी आवाज़ को अपना रुख बदलना होगा
तूने जो गिराई हैं बिजलियाँ मुझ पे जरा गौर करना
उनकी तपिश में अब तुझको जलना होगा
मोहब्बत कभी न मिटी है न मिट पायेगी कभी
तुझे मगर मुरझाकर भी खिलना होगा
गुरूर तो टूटेगा एक दिन तेरा ओ साकी
क्योंकि आदमी है तूझे मिटटी में मिलना होगा
उस दिन मेरा ये ख़त पढ़ना निकल कर तू
जब तुझे जिंदगी छोड़ मौत की राह पे चलना होगा
मेरे ख्याल तुझे जीने भी नही देंगे तड़पेगा तू मौत को
जिस अज़ाब से मैं गुजर रही हूँ तुझे भी गुज़रना होगा ।
#राखीशर्मा

Sunday, September 13, 2015

प्यार के ब्यान

कुछ अहसास प्यार के आज बयां हो ही गए
वो तेरी हसीं बाँहों के पल मुझे मिल ही गए
आखिर क्यों रोका था तूने खुद को अब तक ये बता
क्यों कर रखा था इस प्यार को मुझसे जुदा
बेकरारी में भी करार की आज हद नही रही
इस दिल को आज जैसी  प्यार की तालाब नही रही
वो तेरी बाँहों में मिलने वाला सुकून जन्नत से बढ़कर है
तेरा प्यार मेरे लिए इस दुनिया से हटकर है
वो बेचैनियों का आलम अब भी बाहें पसारे है
रह रह कर दिल  मेरा अब भी तुझको पुकारे है
ये कैसी बेकरारी तुम मुझमे छोड़ गए हो
मुझको खुद से कुछ इस कदर जोड़ गए हो
अहसास अब भी वैसा ही है मेरे लबों पे तेरे लबों का
मेरे पास लफ्ज़ ही नही है इनको ब्यान करने का
ये कैसी रुमानियत तुमने मुझमे भर दी है
मेरी दिल की धड़कन भी अपने मुताबिक कर दी है
#राखी

Friday, September 11, 2015

इतना सा अफ़साना

छ लम्हे साथ जो बिताये हमने वो कैद है यादों में
जी थी जिन्दगी मैंने जो वो तेरे साथ जस्बातों में
वो रास्ते का सफ़र जब मैं तुम्हारे साथ थी
चली जब दोनों के दिलों में वो प्यार की बयार थी
नैनो ने नैनो की मौन भाषा बिन कहे ही समझ ली थी
कुछ इज़हार और इकरार की बातें हम दोनों ने जो की थी
बेपर्दा इश्क बिना कहे ही आँखों से ब्यान हो गया
मोहब्बत का अफसाना वो उस सफ़र में जवान हो गया
नर्म हाथों का स्पर्श मेरे हाथों पर आज भी वैसा ही है
इतने दिनों बाद भी प्यार का खुमार वैसा ही है
तू तो एक हवा का झोका था जो तूफ़ान बन के आया
मेरी रूह को तूने अपनी रिमझिम प्यार की बारिश से भिगाया
वो फ़साना प्यार का दिल में जिन्दा रहेगा मरते दम तक
जब भी तनहा होती हूँ मैं आवाज तेरी ही सुनती हु दूर तलक
पता है मुझे वो पलछिन अब लौट के फिर न आयेंगे
मेरे नैन शायद तुम्हे कभी देख न पाएंगे
अफसाना ये तेरी मेरी मोहब्बत का किसको सुनाऊ
कैसे मैं अपने इस दुखी दिल को तेरे बिना राहत दिलाऊं
काश के किस्मत वो लम्हे एक बार फिर ले आये
के तू फिर ऐसी ही किसी सफ़र में मुझसे रूबरू हो जाये
राखी शर्मा

Monday, September 7, 2015

एक सच ये भी

वो रोज़ जलाती है खुद को उस आग में
चंद रुपयों के लिए और बुझाती है पेट की आग
आखिर सवाल उसका नही उसके साथ उसके अपनों का भी तो है जिनसे बंधी है वो और न जाने
कब तक इस आग में झुलसेगी वो
क्यों जिस्म को बेचने की सज़ा आखिर उसे मिली
आत्मा को झकझोर के रख देता है ये सवाल
रोज़ नोची जाती है उसकी अस्मिता और वो
खुद को फिर अगले दिन के लिए संभाल लेती है
ये समाज कहता है की ये उनका पेशा है और शायद ये सच भी है पर ये मज़बूरी की दास्तान भी तो है
क्या कीमत नही देता ये पुरुष और गुनहगार वो अकेली
क्या खरीदार नही जानता की ये नैतिकता नही क्या
वो कुसूरवार नही क्या वो नही हर रहा उसके सपने
हाँ वो वैश्या है और ये ही उसका धंधा है पर क्या
तूने ये सोचा है कभी हे पुरुष की तू कौन है खरीदार
या व्याभिचारी ???????

#राखीशर्मा