तेरे ख़तों जो आज भी पढ़कर लगता है की जिन्दा है तेरी मोहब्बत कहीं
आँखों में मेरी पसरी ख़ामोशी को पढ़ कभी तू बसी है तस्वीर इनमे कहीं
लबों का रंग आज भी गुलाबी है मेरा बस्ते हैं इनमे तेरव लबों के अहसास कहीं
दिल में झाँक कर देख मेरे कभी आज भी लगी है तेरी तस्वीर दीवारों पे कहीं
हाथों की मेहंदी बेरंग है मगर लगता है छुपा हुआ इसमें आज भी तेरा नाम कहीं
करती तो हूँ मैं कोशिश तेरी मोहब्बत को मिटाने की पर लिखी है रूह पे ये दास्ताँ कहीं
होती तो हूँ रूबरू मैं रोज़ हज़ारों से लेकिन तुझे देखने की चाहत बसी है मन में कही
कैसे बेवफा हो जाऊं खुद से मैं ऐ हमदम समाई है तेरी गुमनाम मोहब्बत मुझमे कहीं ।
राखी शर्मा
Friday, May 29, 2015
जिन्दा है तू मुझमे
Wednesday, May 27, 2015
दिल रोये हमारे
वो मेरे दिल के जख्म देख के रोये
मैं अपने ज़ख्म दिखा के रोई
वो अपने गम बता के रोये औरमैं
अपने गम छुपा के रोई
बरसों पहले वो मुझसे बिछड़ के रोये और
बरसो बाद मैं उनसे रूबरू होकर रोई
ताल्लुक़ बड़ा गहरा है उनसे वो मेरे सीने में तूफ़ान उठा के रोये
और मैं अपने दिल की आग को दबा के रोई
राखी शर्मा
Tuesday, May 19, 2015
मन की बात
पानी तो बरसता है पर उस से मन की प्यास नहीँ बुझती
ठंडी हवांये तो चलती है सर्दियों में पर मेरी तपिश तब भी कम नही होती
खुशबू तो फैलाता है बसंत मगर उसकी खुशबु तेरी खुशबु को मुझसे दूर नही कर पाता
गर्मियों की तपिश से मेरी तपिश का क्या मुकाबला मुझसे विरह मेरा कोई नही छीन पाता
मन में जो खलिश है वो कहीं बढ़कर है उन सब दुखों से जो ये ज़माना मुझे दे जाता
आखिर क्या बात है जो ये ज़माना एकाकी सी मेरी हस्ती का मजाक है बनाता
गुलाम मेरा मन जो जकड़ा है तेरी यादों की जंजीरो में क़ैदी
बनकर
खोकला कर दिया है इसने मुझे अंदर से जंजाल मेरे दिल का निकल क्यों नही जाता
कैफ़ियत की हद है ज़ालिम दूर रहकर भी तू कभी मेरे इस दिल से निकल नही पाता
कागज़ की तरह हुयी हस्ती मेरी जिसपे जो स्याही से एक बार लिखा वो मिट नही पाता
सीना छलनी है मेरी कभी झाँक कर तो देख बाहर से हर ज़ख्म नज़र नही आता
कोई भी मुकाम क्यों न लूँ मैं पर एक तेरी मोहब्बत का मुकाम पाना मेरी हसरत बन जाता
मिट जायेगी क्या रूह मेरी तड़प कर जब तक तेरी यादों का सफर उसकी याद से उतर नही जाता ।
राखी शर्मा
Saturday, May 2, 2015
उसका असर
रूह में मेरी इस तरह उतर गया वो मेरा चाहनेवाला
कि अब तो मेरा फ़क्त ये बदन रह गया है
ले गया अपने साथ मुझे भी वो जो मेरा रहनुमा नहीं था
अब वो ही एकलौता मेरी यादों का हमसफ़र बन गया है
इस बदन का तो बस खाका रह गया ऐ मेरे मुंतज़िर
मेरी रूह मेरे ख्याल और ख्वाबो में इस तरह घर कर गया है
अब तो जान बाकी रह गयी है मुझमे एक अमानत उसकी
वर्ना वो तो मेरी धड़कनो को भी अपने मुताबिक़ कर गया है।
राखी शर्मा
उसका असर
रूह में मेरी इस तरह उतर गया वो मेरा चाहनेवाला
कि अब तो मेरा फ़क्त ये बदन रह गया है
ले गया अपने साथ मुझे भी वो जो मेरा रहनुमा नहीं था
अब वो ही एकलौता मेरी यादों का हमसफ़र बन गया है
इस बदन का तो बस खाका रह गया ऐ मेरे मुंतज़िर
मेरी रूह मेरे ख्याल और ख्वाबो में इस तरह घर कर गया है
अब तो जान बाकी रह गयी है मुझमे एक अमानत उसकी
वर्ना वो तो मेरी धड़कनो को भी अपने मुताबिक़ कर गया है।
राखी शर्मा