Thursday, March 13, 2014

तू बस तू

सुकून तो तब मिले रूह को मेरी
जब वो इस जिस्म से आज़ाद हो
पर नामाकूल ये जो तेरा प्यार है न
मुझे ऐसा करने नहीं देता है
मेरी पाक मोहब्बत तेरी यादो के साए में चलती है
आँखों से मेरे बारिश इस कदर बरसती है
कुछ तो है तेरे मेरे दरमियान आज भी हम दम
जो दूर होकर भी मेरी आखे तेरे दीदार को तरसती हैं।

Friday, March 7, 2014

औरत

जब मै अपनी माँ की कोख में थी
तब से ही सोचती थी जब दादी कहती
की उसे तो पोता ही चाहिए पोती नहीं
जब मै पैदा हुई तो कोई ख़ुशी नहीं हुयी
सबके मुह लटके हुए और उदास थे

बचपन से ही मुझे त्याग और सहनशीलता
पाठ पढाया गया और झोक दिया इस
संसार की जरुरत पूरी करने में चूले में
मुझे स्कूल कभी जाने न दिया गया और
घर को ही मेरा संसार बना दिया गया

जब रखा मैंने जवानी की दहलीज़ पे कदम
ब्याह दी गयी मैं और मुझे भेज दिया गया
ससुराल एक ऐसी अनजान जगह जहाँ मेरा
कोई अपना नहीं सब पराये थे और मुझे तो पता ही न था कुछ भी बड़ी असमंजस में थी

जब डोली में बैठा जे विदा किया बाबा माँ ने
तो बस ये ही कहा अबी तेरे पति का घर ही तेरा घर
वहां जेक कभी किसी को जवाब नहीं देना आब्की सेवा करना और मै तो एक तक निहारती रह गयी
की आखिर मेरा घर है कहाँ मायका या ससुराल

अभी मुझे अपने सवाल का जवाब मिला भी नहीं था की आ गयी ससुराल और आते ही यहाँ मुझे मिली सास ननद जेठानी देवर और ससुर का दुलार
नयो दुल्हन का अहसास भी कितना सुंदर होता है
वो जानता है जो दुल्हन बनता है और कोई नहीं

फिर वो पल भी आया जब रूबरू हुयी मैं अपने पति से
पर ये क्या टूट गया मेरा दिल उसी रात क्युकी मई तो सिर्फ एक कटपुतली थी उसके लिए और कुछ नहीं
मन में सवालों के कई सैलाब आये और चले गए
पैर उफ्फ्फ तक न करी मैंने औरत जो थी

कुछ साल बाद वो आया जिसके आते ही खिल गया मेरा मअत्रीतव और वो लाया जीवन में बहार
आँचल में खेला मैंने लुटाया उसपे दुलार
आँखों जा तारा वो दिल का दुलारा वो मेरा
पयर सा बेटा मेरा सब कुछ वो और कोई नहीं

पहले एक था फिर मैं चार बेटो की माँ बनी
बस एक बेटी की आस थी वो ही नहीं मिली
सबकी जरूरतों को पूरा किया सबकी ताड़ना झेली
उफ़ नहीं की मैंने कभी औरत थी सहनशीलता मेरा गहना था येही सिखा था मैंने जनम से

अब मैं बूढी हो चली थी अब झेल रहो हूँ एक बेटे से दुसरे बेटे के घर दुसरे से तीसरे के घर
और अब तो वृद्धा आश्रम में रहने लगी हूँ सबसे तंग आकर और येही सोचती हूँ की इश्वर अपने पास बुला ले अब और सहा नहीं जाता

उपर जा कर पुछूनगी भगवान् से तूने मुझे औरत ही क्यों बनाया
मर गयी मई जब गयी भगवान् के पास और बोली क्यों दी मुझे ऐसी जिन्दगी जो नरक से भी बध्तर थी
क्यों में धरती पे औरत की ऐसी हालत की

भगवान् हस के बोले सुन तू अबला नहीं तूने अपने को अबला बनाया क्यों सहे जुल्म विरोध क्यों नहीं जताया
कलयुग में तू अपने हक की क्या उम्मीद रखती है
ये तो वो चीज़ है जो छीनने से मिलती है
उठ उठा ले हथियार कर ले आगाज़ और
जा इस समाज को ललकार
फिर देख कैसे तेरी बात मानी जाएगी
और तू भी दुर्गा और काली की तरह पूजी जाएगी
राखी शर्मा

Monday, March 3, 2014

होली

इस बार तुझसे ऐसी खेलूंगी होली पिया
अपने प्यार में तोहे में ऐसा रंगुंगी पिया
की उतर न पाए जो कभी लाली ऐसी
लगाउंगी तेरे सोने  से मुख पे पिया
मेरे गोर रंग पे गुलाल हरा लगाना तुम पिया
मेरी चुनरी को पानी से भीगना तुम पिया
अबके ऐसी होली खेले हम दोनों सराबोर
खड़ी हो देखे साडी दुनिया हमको पिया
भीगू मैं भिगो तुम हो जाये उपर से बरसात पिया
हमारा दिल हमारी धड़कन हो जाये बस एक पिया