Friday, June 28, 2019

रुदन कंठ से न निकले
दुखों का ज्वारभाटा है
ऐसे कैसे जीवन पूरा हो
खुशियों का सन्नाटा है

समाधि हुआ जीवन खुशहाल
हर तरफ नज़रों के भेदी बाण
कहाँ मिली है स्वतंत्र भूमि
कण कण मांगे बलिदान

रुदन क्रंदन आत्माओं का
जिव्हा करे न कोई मलाल
अंतिम सांस तक भटके प्राणी
करता नही ईश्वर कमाल

कचोटती है मन की पीड़ा हरपल
किस से जाकर करें सवाल
मूक बन बैठा हर कोई यहां
कैसे काटे माया जाल

मेरा अंतस भी घबराता है
ये कौन मुझे सताता  है
अंदर है या बाहर कोई
व्यक्तित्व कौन लजाता है ।

मैंने पिया हर शब्द गरल
जीवन हुआ नही सरल
आशाएं फिर भी क्यों
फिरती मेरे मानस पटल

हुआ कैसा ये मुक्ति बोध
उसमें भी लगे कई अवरोध
कैसे मकड़जाल से निकले
प्रभु तेरा ये बालक अबोध
#राखी

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