Saturday, November 29, 2014

ये कैसी मोहब्बत


मेरी रूह तक कांप गयी है उससे ओ पत्थर दिल
तेरी बातों के नश्तर मेरे दिल में चुभ गए
बस एक ही मलाल रह गया है मेरे दिल में
कि तू इतना बेदर्द कैसे हो गया है मेरे लिए
तुझे पता है मैंने बेपनाह मोहब्बत की है तुझसे
पर अब तू अगर मेरे पास आके भीख भी मांगेगा न
तो भी मुह फेर लुंगी तुझसे मैं ये याद रखना तू
क्योंकि तुझ जैसे पत्थर दिल के साथ रहकर
मैं भी दरख़्त बन गयी हु और महसूस नहीं होते
मुझे अब कैसे भी मोहब्बत के जज़्बात
ये कैसी मोहब्बत है तेरी जिससे रूबरू हुई
हूँ मैं जिससे अब थी मैं अनजान
राखी शर्मा

No comments:

Post a Comment