Monday, January 19, 2015

नारी हूँ न

रोज़ टूट कर मैं फिर जुड़ जाती हूँ
नारी हूँ न अपना फ़र्ज़ निभाती हूँ
दिल के टुकड़े तो होते हैं कई बार मेरे
उन टुकड़ों को जोड़ कर मैं नया दिल बनाती हूँ।
नारी हूँ...........
ये कैसा विरोधाभास है मेरे जीवन का
जीवन को अपने अकारण ही जीती चली जाती हूँ।
कई रूप है मेरे उन सब का भी बोझ ढोती चली जाती हूँ।
अपने मन को मार के सब की खवाइशें पूरी करती चली जाती हूँ।
नारी हूँ..........
मैं अपनी ज़ात की फितरत को हमेशा ही निभाती हूँ
प्रेम भी है मुझे और प्रेमी के लिए बलिदान भी कर जाती हूँ
कोई कायर कहे मुझे तो कहे पर जिम्मेदारियों पर खरी उतर जाती हूँ।
अपनी जिंदगी मैं हमेशा दूसरों के नाम कर जाती हूँ।
नारी हूँ..........
येही विडम्बना है मेरी बस एहि मेरा नसीब है
दूसरों के लिए जिन ही मेरी जिंदगी का उसूल है
अब जब उसी रब ने किया है मेरा फैसला तो फिर
हाँ मैं कहती हूँ की उस रब का दिया हर ज़ुल्म मुझे कबूल है ।
नारी हूँ..........
राखी शर्मा

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