Tuesday, May 19, 2015

मन की बात

पानी तो बरसता है पर उस से मन की प्यास नहीँ बुझती
ठंडी हवांये तो चलती है सर्दियों में पर मेरी तपिश तब भी कम नही होती
खुशबू तो फैलाता है बसंत मगर उसकी खुशबु तेरी खुशबु को मुझसे दूर नही कर पाता
गर्मियों की तपिश से मेरी तपिश का क्या मुकाबला मुझसे विरह मेरा कोई नही छीन पाता
मन में जो खलिश है वो कहीं बढ़कर है उन सब दुखों से जो ये ज़माना मुझे दे जाता
आखिर क्या बात है जो ये ज़माना एकाकी सी मेरी हस्ती का मजाक है बनाता
गुलाम मेरा मन जो जकड़ा है तेरी यादों की जंजीरो में क़ैदी
बनकर
खोकला कर दिया है इसने मुझे अंदर से जंजाल मेरे दिल का निकल क्यों नही जाता
कैफ़ियत की हद है ज़ालिम दूर रहकर भी तू कभी मेरे इस दिल से निकल नही पाता
कागज़ की तरह हुयी हस्ती मेरी जिसपे जो स्याही से एक बार लिखा वो मिट नही पाता
सीना छलनी है मेरी कभी झाँक कर तो देख बाहर से हर ज़ख्म नज़र नही आता
कोई भी मुकाम क्यों न लूँ मैं पर एक तेरी मोहब्बत का मुकाम पाना मेरी हसरत बन जाता
मिट जायेगी क्या रूह मेरी तड़प कर जब तक तेरी यादों का सफर उसकी याद से उतर नही जाता ।
राखी शर्मा

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