Friday, May 29, 2015

जिन्दा है तू मुझमे

तेरे ख़तों जो आज भी पढ़कर लगता है की जिन्दा है तेरी मोहब्बत कहीं
आँखों में मेरी पसरी ख़ामोशी को पढ़ कभी तू बसी है तस्वीर इनमे कहीं
लबों का रंग आज भी गुलाबी है मेरा बस्ते हैं इनमे तेरव लबों के अहसास कहीं
दिल में झाँक कर देख मेरे कभी आज भी लगी है तेरी तस्वीर दीवारों पे कहीं
हाथों की मेहंदी बेरंग है मगर लगता है छुपा हुआ इसमें आज भी तेरा नाम कहीं
करती तो हूँ मैं कोशिश तेरी मोहब्बत को मिटाने की पर लिखी है रूह पे ये दास्ताँ कहीं
होती तो हूँ रूबरू मैं रोज़ हज़ारों से लेकिन तुझे देखने की चाहत बसी है मन में कही
कैसे बेवफा हो जाऊं खुद से मैं ऐ हमदम समाई है तेरी गुमनाम  मोहब्बत मुझमे कहीं ।
राखी शर्मा

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