तेरे प्यार का ज्वर इस कदर हो गया है
के किसी दावा से मुझे आराम नहीं आता
तेरे स्पर्श से और भी तपन बढ़ जाती है मेरी
मेरे इस दिल को कहीं आराम नहीं आता
मेरे अधरों पर बस तेरे अधरों की प्यास है
कोई पैमाना मेरी अब प्यास नहीं बुझाता
आकर बाँहों में भर ले मुझे जो सुकून मिले
के ये समां फिर से लौटकर नहीं आता
रेत तपती है जैसे रेगिस्तान में ऐसे ही मई भी
क्यों तू आपने प्यार की बारिश को नहीं बरसाता
आकर देख ले मुझे तू तेरे प्यार के मारे हम
हमे तो मैखानो में जाना नहीं सुहाता
एक हुक सी उठती है तेरे प्यार मुझ में
तू आकर मेरे गले से लग क्यों नहीं जाता
कुछ इस तरह समां जा मुझमे के रूह को चैन मिले
के तनहा हमसे अब रहा नहीं जाता
राखी
Thursday, February 13, 2014
तेरे प्यार का ज्वर
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Bahut khub likha Rakhi.. bilkul alag tarike se saare ehsaas itne achhe tarike se likha hai..Bahut badhia!! Keep writing!!
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