Saturday, August 17, 2013

तेरे ग़म की पनाहों में

जब भी जिक्र हुआ तेरा मोहब्बत के अफसानो में
हमारा नाम ही आया है तेरे दीवानों में
तुम तो मोहब्बत करके भूल गए हमे और हम जीते रहे
मरते रहे तेरी ही यादों के मकानों में
दुनिया ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी मुझे इल्जाम देने में
पर फिर भी जी रही हूँ मै उनके तानो में
जिन्दगी ख़तम भी नहीं होती है मेरी कोशिश बहुत कीमैंने
छुटकारा नहीं मिलता तेरे बीते अफसानो से
प्यार का जहर इस कदर भर गया है मुझमे की अब बस
टूट ही जाती हु तेरे नाम के आ जाने से
नशा है ये शराब से बढकर अब समझ आया दिखता
है साफ़ मेरी आँखों के टूटे पैमानों में
मेरी बज़्म में भी तूही है आकर देख ले तू अब यहाँ कयोंकि.
जिक्र तेरा अब भी है मेरे आशियानों में
सुर्ख जो ये आँखे हो गयी इनका सबब जान ले तू आकर
दिल के सूखे रेगिस्तानो में
अब तो घर भी मेरा कब्रिस्तान हो गया क्योंकि आता
नहीं भी है इन वीरानों में
दिल का टूटना कुछ इस कदर कर गया असर मुझ पर
कि उमर ही गुज़रेगी अब मेखानो में
पीना शौक तो न था मेरा पर क्या करूँ मैं आज भी
मेरी रूह भटकती है तेरे ही गलियारों में
रंज मुझे ये नहीं कि तू छुट गया पर कैसे छोड़ दू
खुद को तेरी यादों के शामियानो में
जब भी दिया गम ही दिया उसने और छोड़ दिया मुझे
अकेला इस गम के अंधियारों में
गम का आलम और ये दुनिया क्या समझेगी मुझे रहती
हूं बस अपने गम की पनाहों में
राखी

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