Monday, August 26, 2013

हाय रे औरत तेरी किस्मत -भाग दो

फुलवा की शादी का दिन था ।एक दुल्हन की तरह वो भी सजी धजी ।पैर उसकी आँखों में वो चमक न थी जो होनी चाहिए थी। आखिर उसके अरमान शादी के हवन कुंद में जलकर सुवाहा जो होने जा रहे थी ।घर में ख़ुशी का माहौल था। फुलवा के दिल में जो विराना था उसकी किसी को खबर नहीं थी।उसकी बहने सब जानती थी।महुआ सबकुछ जानती थी पर वो करती भी तो क्या। खैर शादी की सारी रस्मे हो चुकी थी। बस विदाई बाकी थी। और वो भी हो गयी। नीरा की आँख भर आई क्युकी फुलवा उसे हमेशा सबसे बचाती थी माँ को कभी मारने नहीं दिया उसने नीरा को। फुलवा के घर से जाते ही दिनचर्या पहले जैसे हो गयी। वहां फुलवा अपनी ससुराल पहुँच गयी थी। ससुराल जाते ही उसका मन और खिन्न हो गया। सब अजनबी थे। वो ये ही सोच रही थी कि क्या हो गया सब ।सारी औरते उसके पास बैठी थी।तभी एक आवाज़ सुनकर वो चौक पड़ी। उसकी खोयी मुस्कान वापस आ गयी। और आँखों में चमक उसके सामने गोविन्द खड़ा था ।पर घूँगट की आड़ में वो उसे देख नहीं पाया था।अब वो घडी आ पहुंची थी जब फुलवा और मनोज आमने सामने थे। मनोज बहुत ही सीधा साधा था पर फुलवा को चाहता बहुत था। पर फुलवा वो तो पता नहीं किस भूलभुलैया में घूम रही थी। मनोज जितना फुलवा के पास आने की कोशिश करता फुलवा उतना ही उससे दूर जाने की पर आखिर कब तक।मनोज उस पर जबरजस्ती नहीं करना चाहता था वो ये ही सोच रहा था की अभी वो दोनों अजनबी हैं पर एक मर्द कैसे अपने आप को संभालता और तब जब की जिसे वो सबसे ज्यादा चाहता हो वो उसके पास हो।उसने फुलवा को अपनी बाहों में भर लिया और फुलवा भी कब तक खुद को कैसे संभालती।फुलवा की आँखों में नींद का नाम नहीं था ।खुद को आईने में देख कर सोच रही थी की एक ही रात में उसकी जिन्दगी बदल गयी। पौ फट चुकी थी। फुलवा अपनी साडी  समेटकर उठी और नहाने चली गयी। मनोज का घर ठीक ठाक था ।वहां बहुत बड़ा आँगन था ।आँगन में खुले बाल सुखा रही थी तभी कुछ आहट हुई वो भाग कर कमरे में चली गयी और मनोज से जा टकराई ।मनोज भी शायद तैयार नहीं था और दोनों धडाम से गिर पड़े और फुलवा का सर दीवार से जा टकराया और खून की धारा बह निकली। नयी नवेली दुल्हन का ये हाल देखकर मनोज डर गया ।भागकर उसने फुलवा को उठाया और अपनी माँ को आवाज दी और खुद डॉक्टर को बुलाने चल पड़ा।चोट गहरी थी बस सब लगे बहु की सेवा करने में ।पे फुलवा की आँखे को गोविन्द की एक झलक पाने को बरक़रार थी। मनोज काफी परेशान था। बस वो लग गया फुलवा की देख रेख में। फुलवा  को अगले दिन अपने घर जाना था पगफेरी की रस्म के लिए।मनोज के साथ चल पड़ी वो घर ।उसकी बहाने उसके माथे पर पट्टी देखकर सहम गयी ।माँ का मन भी कई सवालो से घिर गया पर जब सब पता चला तो हसे बिना नहीं रह सके सब। उसकी माँ ने गोविन्द से उसे वहीँ छोड़ जाने की बात रखी ।गोविन्द तो कुछ कह ही नहीं पाए पे फुलवा ने ही रुकने से मन कर दिया। उसने महुआ को गोविन्द के बारे में बताया और उसका घर न रुकने का कारन भी।बस आ गयी वो मन में गोविन्द से मिलने की आस लिए।जब घर पहुंचे तो  घर में ग़मगीन महौल था ।फूफा जी की तबियत काफी ख़राब थी और बुआ जी ने बुलवा भेज था की कोई आ जाये ।पर जाये कौन बाबूजी तो पहले ही बीमार थे। आखिर मनोज को ही जाना पड़ा। मनोज जाना नहीं चाहता था। क्युकी फुलवा को भी चोट लगी थी। उसने फुलवा से पुछा तो वो कुछ न बोली।खैर वो चला गया ।रात हो चली थी फुलवा को भी दर्द के मारे नींद नहीं आ रही थी। ठण्ड भी थी। वो उठी और शाल लेकर बाहर आई। बाहर चूले में आग थी उसने हाथों  को सेकने  के लिए अंगारे एक मिटटी के बर्तन में भरे और अन्दर जाने लगी तभी वो सन्न रह गयी सामने गोविन्द खड़ा था। उसके चेहरे पर हैरानी थी।लालटेन की हलकी रौशनी में भी वो फुलवा को पहचान गया और उसके मुह से बस ये ही निकला फुलवा तू। फुलवा जल्दी से कमरे में भागी पर गोविन्द भी उसके पीछे हो लिया। फुलवा के मन में तो जैसे सितार बजने लगे। इससे पहले वो कुछ कह पाती गोविन्द ने उसके माथे को छुआ और पुछा की ये सब कैसे। फुलवा की आँखों से अश्रुधरा बह निकली और वो भाग कर गोविन्द की बाहों में समां गयी।गोविन्द को कुछ समझ नहीं आया ।उसने फुला को खुद से अलग करना चाहा पर फुलवा वो तो खो ही गयी थी।
फुलवा ने सारी व्यथा गोविन्द से कह दी। रात गहरी हो चुकी थी गोविन्द मनोज का चचेरा भाई था। वो फुलवा से बोल की अब उसे जाना है ।फुलवा उसे जाने नहीं दे रही थी। गोविन्द उससे अगले दिन मिलना का वादा कर जाने लगा तो फुलवा ने उसे धक्का दे दिया वो पलंग पे गिर पड़ा और फुलवा उसके सीने पे सर रख कर लेट गयी। फुलवा को कब नींद आई उससे पता न चला। सुबह उसकी आँख खुली तो वो अकेली थी। उसे लगा जैसे उसने रात कोई सपना देखा हो। वो आज पहले से ठीक थी। उसने आज खुद को अच्छे से संवारा और श्रींगार किया ।उसे रात का इंतज़ार था।दिनभर तो वो औरतो से घिरी रहरी थी। शाम को गोविन्द डॉक्टर को लेकर आया ।वो पट्टी कर गया और दावा दे गया ।मनोज की माँ ने गोविन्द से कहा की वो अपनी भाभी का ध्यान रखे।अब तो वो ही हो गया जो फुलवा चाहती थी। गोविन्द और उसकी नन्द उसके पास रहे ।नन्द को भी नींद आ गयी वो भी सोने चली गयी। सन्नाटा चारो तरफ फ़ैल गया था।फुलवा गोविन्द के साथ के लिए तड़प रही थी ।वो जानती थी की अगर मनोज आ गया तो वो गोविन्द को करीब कभी नहीं जा सकेगी। कहीं पर गोविन्द के दिल में फुलवा को पाने की चाह थी ।आखिर कब तक दिल के समंदर की लहरों को रोक पाते दोनों ।आखि र दोनों एक दुसरे के हो ही गए। और वो रात फुलवा की जिन्दगी में कभी न भूलने वाली रात बन गयी।
क्रमशः

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