Sunday, August 25, 2013

हाय रे औरत तेरी किस्मत -कहानी भाग 1

नीरा वैसे तो एक आम लड़की  थी पर उसकी कहानी कोई नहीं जानता। बिहार के सुदूर इलाके में जन्मी थी वो। घर में उसके अलावा तीन बड़ी बहनें और थी ।पिता तो उसके पैदा होने से पहले ही चल बसे थे। नीरा छोटी थी पर वक़्त की ठोकरों ने उसे बड़ा बना दिया था। जब से होश संभाला उसने फटे कपड़ो के अलावा कुछ नहीं मिला था तन ढकने को। पर फिर भी वो खुश थी अपनी जिंदगी में। उसकी माँ और बड़ी बहाने रोज खेतो में काम करने जाया करती थी। नीरा को भी अपने साथ ले जाती थी। वो पांच साल की अबोध बच्ची कुछ कर तो नहीं पाती थी पर फिर भी सबको पानी पिलाने की जिम्मेदारी उसी की थी। वो बच्चो के साथ मिटटी में खेल करती थी। गोरा रंग हिरनी सी आँखे और मासूम चेहरा उसकी खासियत थे। उसकी माँ अपनी सारा दिन जी तोड़ मेहनत करती थी । घर में चुल्हा जलने का एक येही जरिया था। उसकी  सबसे बड़ी बहन तेरह साल की थी ।समय अपनी गति से चल रहा था ।बस रोज की वही भागदौड़ में जीवन का पता ही नहीं चलता था। नीरा अब दस साल की हो चली थी ।नीरा की माँ अब उसकी बहनों की शादी करना चाहती थी ।
पर गरीबी ने उसके हाथ बांध रखे थे।सावन आ गया था सब बहने मेला देखने जा रही थी ।गाँव की सारी लडकियां एक साथ मिलकर चल पड़ी दुसरे गाँव ।नीरा की बड़ी बहन फुलवा अनु महुआ भी नीरा का हाथ थामे चल रही थी। मेले की रोनक तो देखते ही बनती थी ।सब की आँखे चकाचौंध हो गयी। सारी खुश थी ।फुलवा के चेहरे पर हलकी सी मुस्कराहट थी।
वो  किसी को देखकर शर्मा रही थी ।जाने कौन था वो नौजवान जो उसे एकटक देखे जा रहा था ।फुलवा भी उसे देखती और फिर नजरे झुक लेती। उसके मन की देहलीज पैर प्यार दस्तक दे चूका था और वो उस अनजाने अजनबी से आँखे चार कर बैठी थी। आने वाली जिन्दगी से बेखबर वो उस अजनबी के प्रेमपाश में बंधी जा रही थी ।शाम हो चली थी सब लडकियां गाँव कीतरफ वापस चल पड़ी। फुलवा का मन नहीं था अजनबी को छोड़ के जाने का ।आखिर उसने पूछ ही लिया उसका नाम ।गोविन्द ये सुनकर वो बहुत खुश हुयी और गोविन्द भी उससे मिलने का वादा  करके अपने घर चला गया। अब फुलवा को कहीं चैन नहीं था ।उसे तो हर घडी गोविन्द से मिलने की तड़प थी। उसकी हालत उसकी बहनों से छिपी नहीं थी। वो रोज महुआ को लेकर नदी किनारे जाया करती थी। पर गोविन्द को तो जैसे सुध ही नहीं थी। फुलवा की सहेली की शादी थी । शादी में फुलवा भी गयी।जब वापस घर आ रही थी तो पीछे से किसी ने आवाज दी। आवाज़ सुनकर वो पलती तो सामने एक नौजवान खड़ा था ।फुलवा ने देखा पर कुछ बोली नहीं ।वो नौजवान फुलवा  संग ब्याह करना चाहता था पर फुलवा का दिल तो किसी और का कैदी था। उसने नौजवान ने फुलवा से बात करनी चाही पर फुलवा कुछ न बोली और वहां से भाग गयी।वो नौजवान मनोज था जो फुलवा पर फ़िदा हो चला था। अगले दिन तडके वो फुलवा की माँ से मिला और अपनी इच्छा जताई। उसकी माँ को क्या ऐतराज होता ।फुलवा की माँ ने तुरंत हाँ कर दी। और शादी पक्की हो गयी। शादी में अभी समय था पर फुलवा रात दिन जल रही थी ।वो  ये शादी नहीं करना चाहती थी। वो अब भी नदी किनारे गोविन्द का इन्तजार किया करती थी। सर्दी आ गयी थी ।हर तरफ कोहरा और ठण्ड का फैलाव था ।नीरा माँ माँ के साथ गयी थी खेतो में महुआ भी साथ थी।घर में फुलवा थी ।उसकी शादी नजदीक आ रही थी। उसकी माँ ने उसे अब खेतो में ले जाना बंद कर दिया था।फुलवा ने घर का काम निबटाया और मटका लेकर अपनी सहेली के साथ चल दी।
नदी किनारे सब औरतें अपने काम में लगी थी पर फुलवा न जाने किस उधेड़बुन में थी। उसकी सहेली ने आवाज लगे घर नहीं चलना है क्या? उसे तो तब पता चला की वो कहाँ है।अब भी शायद वो गोविन्द की यादों से निकल नहीं पायी थी। हलकी धुप और सर्द मौसम उसे सुहावना नहीं लग रहा था। उसकी शादी का दिन आ गया था पर वो खुश नहीं थी। किसी से कह भी तो नहीं सकती थी और अगर कहती  भी तो क्या ।जैसे ढूँढती अपने गोविन्द को इतनी बड़ी दुनिया में ।

 

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