Wednesday, August 20, 2014

मेरा जीवन एक हादसा

मेरा जनम एक हादसा ही तो है
मैं लड़की जो हूँ
बचपन से मुझे त्याग और बलिदान सिखाया जाता है
थी छोटी तब दादी का लाड प्यार भाई के लिए मुझसे ज्यादा
थोड़ी बड़ी हुई तो माँ और पिताजी ने मुझे स्कूल में डाला
जब घर नहीं पहुँचती थी तक सबकी आँखे द्वार पे रहती थी
लेट न हुआ कर आकार मेरी माँ कहती थी
बड़ी हुई तो कालेज जाने लगी
मेरे ब्याह की चिंता  माँ बाप को सताने लगी
मुझे कोई आज़ादी नहीं दी थी अपना वर चुनने की
मगर मेरी ख्वाइश थी पढ़ लिखकर कुछ बन ने की
पर मुझे झोक दिया गया समाज की
रीतियों के कुंड में
कर दिया मेरा ब्याह छोटी सी उम्र में
सोचा मैंने भी शायद येही मेरी नियति है
और शादी के बंधन में बंधना हर लड़की का जरुरी है
पर ये क्या ससुराल जाते ही सारे सपने टूट गए
सबकी बात सुनते सुनते मेरे सपने मुझसे रूठ गए
चुलाह चौका मेरी ही जिम्मेदारी बन गयी थी
और मेरी हर ख़ुशी और की ख़ुशी पर बलि चढ़ गयी थी
बच्चे हुए तो सोचा दोबारा जीवन जी लुंगी मैं
पर उनकी देख रेख करते करते खुद को भूली मैं
अब बुढ़ापे में मेरी और भी मट्टी पालित हो रही है
मेरी बहुएं हर पल मेरी मरने की बात जोह रही हैं
कभी इस बेटे तो कभी उस बेटे के घर घुम रही हूँ
अपनी जिन्दगी से आजकल इस कदर मैं झूझ रही हु
बस बैठकर येही सोचती हूँ  मैं
मेरा जीवन और कुछ नहीं एक हादसा ही तो है।
राखी शर्मा

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