मन की नदी में चल रही है ख्वाइशों की कश्ती
आते हैं भंवर सुख दुःख के कश्ती को भटकाने
रिश्तों के तूफ़ान भी आते हैं मुझे विचलित करने
पर क्या करूँ भटकती नहीं हु फिर भी मैं
मुझे मेरे लक्ष्य का पता है और ये भी कि मुझे
ये छोटे मोटे तूफ़ान मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकते
और मैं निरंतर बढ़ती ही जा रही हूँ शिखर की ओर
मुझे नहीं पता की मेरी मंजिल मुझे मिलेगा या नहीं
पर मैं दृढ़ निश्चय करके बैठी हूँ की कोई मुझे
न तो हिला सकता है न ही गिरा सकता है ।
खुद को इतना मजबूत बना डाला है कि किसी
के बुरा भला कहने का मुझ पे कोई असर नहीं
मेरा काम तो ये है की निरंतर प्रगति के पथ पर
आगे ही आगे बढ़ती ही चली ही जाऊँ ।
राखी शर्मा
Friday, April 10, 2015
मेरा निश्चय
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