Saturday, April 18, 2015

तुझसे इश्क़ क्यों न हो

लरज़ जाती हूँ मैं आज भी जब वो मुझे चुपके से देखता है ।
उसकी आँखों की चिलमन की कसम कयामत होती है जब वो आँखे खोलता है ।
उसके कांपते होठ जब मुझे पुकारते है बेबस होकर फिर रुक जाते हैं ।
ज़लज़ला आ जाता है मेरे जिस्म में जब वो अपनी बाहों में घेरता है ।
उसकी वफायें देखो मेरी जानिब वो मुझसे भी कहीं ज्यादा सोचता है
कैसे न हो उस से इश्क़ मुझे जो अपनी जिंदगी को मेरी ख्वाइशों में तोलता है ।
उसपे कुर्बान मेरी सारी जिंदगी है जो खुद से ज्यादा मुझे तवज्जो देता है ।
उसकी हर एक सांस मेरे लिए है वो अपनी सारी क़ायनात मुझमे देखता है।
राखी शर्मा

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