आज कुछ अलग सा ख़्याल ज़हन में आया है
इश्क़ का एक सवाल मन में घर कर आया है
क्यों आखिर बेज़ार होकर इश्क़ में आदमी
शराब को तन्हाईओं का हमसफ़र बनाता है
शराब में डूबकर खुद को अपने ख्यालों को एक
शख्स के लिए इतना कम ज़ोर बनाता है
क्या औरत भी इसी तरह शराब नही पि सकती
क्या इस मय में खोकर वो सब भुला नही सकती
पर औरत शायद इतनी कमज़ोर नही जो टूट जाए
दिल टूट जाए तो क्या मनोबल उसका टूट न पाये
शराब में खोकर आदमी जो खुद को भुला देता है
दिल टूट जाये तो जिंदगी भी कभी कभी मिटा देता है
पर औरत फिर उठ जाती है खुद को जोड़ ने के लिए
फिर से शायद एक बार टूट कर बिखर जाने के लिए ।
अधूरी वो भी होती है तन्हाई में अश्कों से दामन भिगोती है
पर जिंदगी के सफर को वो यूँही बस यूँही जीती है ।
राखी
Monday, April 20, 2015
एक ख़्याल
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