Monday, April 20, 2015

एक ख़्याल

आज कुछ अलग सा ख़्याल ज़हन में आया है
इश्क़ का एक सवाल मन में घर कर आया है
क्यों आखिर बेज़ार होकर इश्क़ में आदमी
शराब को तन्हाईओं का हमसफ़र बनाता है
शराब में डूबकर खुद को अपने ख्यालों को एक
शख्स के लिए इतना कम ज़ोर बनाता है
क्या औरत भी इसी तरह शराब नही पि सकती
क्या इस मय में खोकर वो सब भुला नही सकती
पर औरत शायद इतनी कमज़ोर नही जो टूट जाए
दिल टूट जाए तो क्या मनोबल उसका टूट न पाये
शराब में खोकर आदमी जो खुद को भुला देता है
दिल टूट जाये तो जिंदगी भी कभी कभी मिटा देता है
पर औरत फिर उठ जाती है खुद को जोड़ ने के लिए
फिर से शायद एक बार टूट कर बिखर जाने के लिए ।
अधूरी वो भी होती है तन्हाई में अश्कों से दामन भिगोती है
पर जिंदगी के सफर को वो यूँही बस यूँही जीती है ।
राखी

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