Saturday, April 4, 2015

गली का कुत्ता

गली का आवारा लगने वाला कुत्ता
रोज़ आता है मेरे गेट पर शाम को
अब तो उसकी आदत में शुमार हो गया है
रोज़ आना मुझे बुलाना रोटी लेना और चले जाना
और फिर वापस आना और मुझे कृतज्ञता से देखना
मेरे चारों तरफ चक्कर लगाना और अपनी ख़ुशी जताना
बड़ा ही विस्मय से भरा दृश्य होता है मेरे लिए
जब वो अपना आभार प्रकट करता है
फिर वो आवारा कैसे हुआ उस से ज्यादा
शिष्ट और कृतज्ञ तो इंसान भी नहीं है
फिर भी दिल में जगह नहीं बहुत लोगो
इन सड़क पर घूमने वाले पशुओं के लिये
क्या ये भी हमारे समाज का अभिन्न अंग नहीं
जिस वो नहीं आता मैं बैचैन सी उसकी रह देखती हूँ
शायद मैं भी जुड़ गयी हूँ उस बेजुबान से जो मुझे
बिना बोले ही सब समझ देता है की क्या चाहता है वो
क्या ये उसकी सभ्यता का परिचायक नहीं की वो घर
के बाहर ही इंतज़ार करता है एक रोटी के लिए
फिर वो आवारा कैसे हुआ ...............
राखी शर्मा

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