Thursday, September 18, 2014

ऐ चाँद तुम तनहा क्यों रहते हो

ऐ चाँद तुम क्यों तनहा रहते हो
क्या तुम भी मेरी तरह बेचैन रहते हो
क्या तुम्हे भी अपने दिलदार के आने की आस है
क्या मेरी तरह ही तुम्हारी इन आँखों में उसके लिए प्यास है
क्या तुम भी उसके लिए पल मरते हो
क्या तुम भी मेरी तरह उसके दीदार को तरसते हो
क्या तुमने भी उसके इंतज़ार में पलके बिछायी हैं
क्या तुमने भी उसके लिए अश्को की झड़ी लगाई है
क्या तुम भी विराग वेदना में पल पल जलते हो
क्या तुम भी अपने लिए उसकी चाह करते हो
ऐ चाँद तुमने भी क्या हर पल उसको चाहा है
क्या मेरी तरह तुमने उसे अपने दिल और रूह में बसाया है
क्या तुम भी होके बेकरार उसकी राह तकत हो
क्या मेरी तरह तुम भी अपनी रूह को उसकी याद में नीलाम करते हो
ऐ चाँद तुम इतने तनहा क्यों रहते हो क्या मेरी तरह तुम भी दिलबर से मिलने को बेचैन रहते हो।
राखी शर्मा

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