Saturday, September 6, 2014

बन जा चंडी काली

ऐ औरत तू अबला नहीं
तू तो सृष्टि की जनमदाता है
क्यों सहती है इतने अत्याचार
क्या तुझे खुद पे रहम नहीं आता ह
तू तो वो ज्वाला है जो पानी में आग लगा दे
सामने खड़ा हो छाए कोई भी तू पल में उसे ख़ाक बना दे
इस कलयुग में जबकि तेरी दुर्गति तेरी समाज ने कर दी
इज्ज़त और आबरू तेरी हेवानो ने अपने सुपर्द कर दी
तो तू भी बन चंडी कलिका दुष्टों का संहार कर
हाहाकार मच जाये कुछ ऐसे दुष्टों का नाश कर
जब तू अपना रूद्र रूप संसार को न दिखाएगी
तेरी असमर यूँही हमेशा खतरे में रह जाएगी
ले शमशीर हाथ में और कर से वार पे वार
ऐसे ही बचा पायेगी तू अपनी और बाकि स्त्रियों की लाज
राखी शर्मा

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